जबलपुर।एक मॉडल हाई स्कूल जहां आज भी पूर्व छात्र शिक्षा का कर्ज चुकाने के लिए साल में कई बार आते हैं. 118 साल से ज्यादा पुरानी इस संस्था ने हजारों डॉक्टर, इंजीनियर, जज, वैज्ञानिक और अच्छे पदों पर काम करने वाले लायक छात्र पैदा किए. जबलपुर का यह सरकारी स्कूल सचमुच में शिक्षा का एक मॉडल है और सरकारी स्कूल में इमानदारी से पढ़ाई की है कोशिश आज भी जारी है और यहां के छात्र अभी भी प्रदेश के मैरिट में अपने स्थान बना रहे हैं इसलिए पूर्व छात्रों की कोशिश है कि यह सरकारी स्कूल कभी बंद ना हो.
मॉडल हाई की शुरुआत:जबलपुर के मॉडल हाई स्कूल की कहानी 1903 से शुरू होती है तब इसे पंडित लज्जा शंकर झा ने अपने घर में शुरू किया था और गुपचुप तरीके से अंग्रेजों से छुपाकर वह घर में बच्चों को पढ़ाया करते थे लेकिन 1905 में इसे एक स्कूल की शक्ल थी और एक स्कूल शुरू किया गया. 1905 से शुरू हुआ यह सिलसिला 2023 तक पहुंच गया है और इस सरकारी स्कूल को लगभग 118 साल हो गए हैं. जबलपुर में बड़े स्टेशन के पास हाई कोर्ट बिल्डिंग के ठीक सामने पंडित लज्जा शंकर झा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के नाम से इस स्कूल का बोर्ड आपको नजर आ जाएगा लेकिन इससे शहर में मॉडल हाई के नाम से जाना जाता है और यहां के छात्रों को मॉडेलियन कहा जाता है.
डॉक्टर, इंजीनियर, जज, वैज्ञानिक मॉडेलियन:इस मॉडल हाई स्कूल से पढ़े हुए छात्र इस समय देश और दुनिया में बहुत अच्छी पदों पर पहुंचे. जबलपुर में मॉडल हाई के पढ़े हुए हजारों छात्र डॉक्टर हैं जो अब सीनियर हो गए हैं. वर्तमान में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में काम कर रहे चार जज मॉडल हाई के पढ़े हुए हैं और कई छात्र हाई कोर्ट के जज होकर रिटायर हुए. कई छात्र नामी वकील बने. मॉडल हाई के पढ़े हुए कई छात्र आईआईटी में सिलेक्ट हुए और देश और दुनिया में वह अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं. सब की जानकारी मौजूदा प्रशासन के पास नहीं है लेकिन गाहे-बगाहे हर साल कोई नया मोडेलियन देश विदेश से आता है और इस संस्था के प्रति अपना कर्ज चुका कर जाता है.
डीआरडीओ के महानिदेशक का सहयोग:सबसे बड़ा डोनेशन डॉक्टर सुधीर कुमार मिश्रा ने दिया जो मॉडल हाई से पढ़कर निकले थे और डीआरडीओ के महानिदेशक पद पर पहुंचे और इसके अलावा भारत में ब्रह्मोस मिसाइल के कार्यक्रम के एमडी और सीईओ हैं. उन्होंने स्कूल के प्रति अपना कर्ज यहां पर एक अत्याधुनिक वर्चुअल लैब बनाकर और एक अत्याधुनिक हॉस्टल बनाकर पूरा किया और लगभग 3 करोड़ रुपए की राशि उन्होंने मॉडल हाई स्कूल को दी, जहां डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से एक प्रयोगशाला भी बनाई गई है.
एलुमनाई हर साल करती है मदद:इस स्कूल में अभी भी 1955 बैच के छात्रों का एलुमनाई संगठन है उसके बाद के ज्यादातर बैच के स्टूडेंट्स अपना-अपना एलुमनाई संगठन बनाए हुए हैं और वे साल में तीन कार्यक्रम करते हैं जिनमें अलग-अलग बैच के स्टूडेंट इकट्ठा होते हैं. स्कूल में ही कार्यक्रम होता है और फिर स्कूल की छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने स्तर पर भी लोग डोनेशन भी करते हैं. ऐसे सैकड़ों छात्र आज भी मॉडल हाई से जुड़े हुए हैं इसकी वजह से स्कूल में हर साल पूर्व छात्रों के जरिए ही लाखों रुपए की मदद मिल जाती है. इसी की वजह से स्कूल में कई अत्याधुनिक सुविधाएं विकसित हुई है और कुछ बुनियादी ढांचे में भी सुधार हुआ है.