झाबुआ।मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में बीते 4 दशकों से आदिवासी लोककला और खास पहनावे और परंपरा की पहचान बन चुकी झाबुआ की गुड़िया अब डाक आवरण के जरिए देश विदेश में नजर आएगी. दरअसल पहली बार डाक विभाग ने आदिवासी अंचल के इस कलात्मक प्रतीक को अपने डाक आवरण में स्थान दिया है जिससे कि विलुप्त होती इस लोक कला को वैश्विक पहचान मिल सके. इस डाक आवरण को समारोह पूर्वक जारी किया गया.
ऐसे मशहूर हुई झाबुआ की गुड़िया:झाबुआ के लेखापाल रहे स्वर्गीय उद्धव गिद्वानी ने करीब 40 साल पहले इस तरह की गुड़िया बनाना सीखा था उस दौरान उनकी कोशिश थी कि झाबुआ जिले की लोक संस्कृति कामकाज और पहनावे को गुड़िया के रूप में दर्शाया जाए धीरे-धीरे इस काम को गति मिली और जब इस तरह की कलात्मक गुड़िया की बिक्री होने लगी तो उन्होंने अपने काम से क्षेत्र की करीब आदिवासी महिलाओं को भी जोड़ा. इसके बाद यह गुड़िया बीते 4 दशकों में झाबुआ की लोक परंपरा का प्रतीक बन गई. झाबुआ में पहले इस गुड़िया को दुल्हन को उपहार में दिए जाने की परंपरा रही है लेकिन बाद में यह झाबुआ आने वाले देश विदेश के लोगों को स्मृति चिन्ह के रूप में दी जाने लगी.
लोक कला का प्रतीक:इसके बाद आदिवासी अंचल के पहनावे परिवेश तथा उनके द्वारा कृषि एवं अन्य कार्य करते हुए इसे कलात्मक रूप में दिखाना झाबुआ की लोक कला के रूप में चर्चित हो गया. फिलहाल स्थिति यह है कि उद्धव गिद्वानी के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र सुभाष सपरिवार झाबुआ की परंपरा और लोक कला के प्रतीक को वैश्विक रूप देने में जुटे हैं. फिलहाल भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा दुबई, स्विजरलैंड एवं गुजरात के जरिए कई देशों में यह गुड़िया निर्यात की जा रही है.