MP Mission Muskaan: MP में तकनीकी होती पढ़ाई, इंदौर के स्कूलों में एनीमेशन-कार्टून और टीवी पर लगती बच्चों की क्लास - अभिषेक दुबे तकनीकी शिक्षा की पहल
हमारे देश और प्रदेश में अब शिक्षा का स्तर बदल गया है. टेक्नोलॉजी के युग में अब बच्चे भी तकनीकी को अपनाकर पढ़ाई कर रहे हैं. जी हां एमपी के एक युवा ने अपनी सोच और समर्पण से तकनीकी पढ़ाई को सच साबित करके दिखाया है. एमपी सहित पड़ोसी राज्यों के सरकारी स्कूलों में बच्चे डिजिटल एनीमेशन कार्टून और टीवी के जरिए मनोरंजक ढंग से पढ़ाई कर रहे हैं.
इंदौर। डिजिटल और एनिमेशन टेक्नोलॉजी के युग में भारतीय बच्चे भी नई-नई तकनीकी और प्रोद्योगिकी को अपनाकर अपने सपने साकार कर सकें, इसके लिए अब मध्य प्रदेश समेत पड़ोसी राज्यों के सरकारी स्कूलों में इन दिनों डिजिटल एनीमेशन कार्टून और टीवी के जरिए मनोरंजक ढंग से उनके कोर्स की पढ़ाई कराई जा रही है. दरअसल यह मिशन मुस्कान ड्रीम्स नामक एक एनजीओ की अनूठी पहल है. जिसके जरिए एनसीईआरटी की पुस्तकों को सरकारी स्कूलों में टीवी पर मनोरंजक और एनीमेटेड कार्टून के जरिए पढ़ाते हुए बच्चों का भविष्य संवारने की सार्थक पहल हो रही है.
टीवी के जरिए बच्चों को मिलती शिक्षा
कैसे हुई अभियान की शुरुआत: दरअसल इस अभियान की शुरुआत तब हुई, जब ग्वालियर के एक किसान परिवार में जन्मे 31वर्षीय अभिषेक दुबे ने अपने एक दोस्त को आश्रय गृह में पढ़ाई करते देखा तो उन्हें महसूस हुआ कि आखिर क्यों शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले सिंगल माता-पिता के गरीब बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. इसके बाद 2013 में अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए, उन्होंने उन्नत शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए कुछ करने का फैसला किया. इसी दरमियान अभिषेक अपने वीकेंड के दिनों में आश्रय घरों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाने भी लगे. इसके बाद उन्होंने अपने साथ 200 वॉलिंटियर का एक ऐसा ग्रुप बनाया, जो अभिषेक के अभियान से प्रेरित होकर उनसे जुड़ गया. हालांकि कंप्यूटर इंजीनियर की पढ़ाई के बाद बच्चों को इस तरह की शिक्षा देने के फैसले से अभिषेक के माता-पिता सहमत नहीं थे, लेकिन जरूरतमंद बच्चों का भविष्य संवारने के लिए अभिषेक के इरादों के सामने उनके परिजनों को भी उनकी बात आखिरकार माननी पड़ी.
डिजिटल पढ़ाई की शुरूआत: इसके बाद अभिषेक ने 2017 में बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने डिजिटल टेक्नोलॉजी आधारित पढ़ाई की. मुस्कान लाने की दिशा में अपना मुस्कान ड्रीम्स नामक एनजीओ शुरू किया, एनजीओ बनाने के बाद उन्होंने अपने काम की शुरुआत 79 लड़कियों वाले एक सरकारी स्कूल से क्लास में डिजिटल शिक्षा आधारित पढ़ाई शुरू करने से की. इस स्कूल में पढ़ने के परंपरागत तरीके को डिजिटल शिक्षण विधि में बदलने के लिए किए गए साल भर के प्रयासों के बाद परिणाम यह निकला कि संबंधित स्कूल में लड़कियों की संख्या 129 तक पहुंच गई.
स्कूलों में टीवी पर लगती बच्चों की क्लास
डिजिटल शिक्षा को जिला स्तर पर बढ़ाया:इसके बाद अभिषेक को समझ आया कि वह जो कर रहे हैं, वह डिजिटल शिक्षा की दिशा में सही एवं कारगर है. इसके बाद उन्होंने जिला स्तर पर अपने मिशन को आगे बढ़ाते हुए जिला कलेक्टर और शासकीय स्कूलों के शिक्षकों के साथ संपर्क कर बिजली की उपलब्धता वाले सरकारी स्कूलों की कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए पढ़ाई के अभियान को आगे बढ़ाया. उनके इस प्रयोग में बच्चों के साथ शिक्षकों और प्रशासन की रुचि देखते हुए उन्होंने स्कूलों को सहयोग करने के साथ प्रौद्योगिकी की आधारित पढ़ाई के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण कंप्यूटर, टीवी स्क्रीन आदि प्रदान करते हुए स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते उपलब्ध शिक्षकों को ही विज्ञान और गणित जैसे विषयों को पढ़ाने की ट्रेनिंग देना भी शुरू कर दी.
कई राज्यों के बच्चे ले रहे लाभ: इसी दौरान उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए टिक टैक लर्निंग ऐप के जरिए एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ाने के लिए लर्निंग मॉड्यूल भी विकसित किया. जिसमें कोर्स के विषयों के सभी पाठ एवं अध्याय को हाई क्वालिटी वाली वीडियो सामग्री से एनीमेटेड स्वरूप में बदल दिया. लिहाजा रोचक वीडियो में अपनी पुस्तकों में उल्लेखित बोरिंग अध्याय एवं पाठ को समझने में बच्चों को भी मनोरंजक ढंग से सुविधा होने लगी. सभी स्कूलों में यह शुरुआत करने के लिए उन्होंने संबंधित स्कूलों के शिक्षकों से ट्रेनिंग के लिए फीडबैक और समर्थन लेना शुरू किया. इसके बाद धीरे-धीरे तमाम स्कूलों में उनकी अवधारणा को प्रौद्योगिकी आधारित पढ़ाई की दिशा में स्वीकार किए जाने लगा. इसके बाद धीरे-धीरे अभिषेक की टीम प्रत्येक स्कूल में दो से तीन साल तक पढ़ाई के तरीकों पर काम करने लगी. जिसके परिणाम स्वरूप अब स्थिति यह है कि अभिषेक और उनकी लंबी चौड़ी टीम मिलकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के 1,000 सरकारी स्कूलों के साथ जुड़ने के बाद बच्चों को कंप्यूटर टेक्नोलॉजी पर आधारित एनिमेशन और टीवी पर कार्टून के जरिए बच्चों को एनसीईआरटी की किताबों का ही कोर्स कराते हुए रोचक ढंग से पढ़ाई कराने का विकल्प बन चुकी है. अपने इस अभियान के साथ-साथ अभिषेक दुबे ने इन राज्यों के 1000 सरकारी स्कूलों की परंपरागत पढ़ाई वाली कक्षाओं को सीखने के मजेदार तरीकों के साथ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए कक्षाओं को डिजिटल हब में बदलने की मुहिम भी चला रखी है.
टीवी में कार्टून के जरिए लगती बच्चों की क्लास
अन्य संस्थाओं की भी मदद मिली: मुस्कान ड्रीम्स नामक यह संस्था अब स्कूलों पर अपनी निर्भरता कम करने की दिशा में अन्य सहयोगी संगठनों की भी मदद ले रही है. जिनमें परनोड रिकार्ड इंडिया फाउंडेशन, एलटीआई माइंडट्री, यश टेक्नोलॉजीज और एक्यूइटी नॉलेज पार्टनर्स जैसे निजी संगठन शामिल है. जो कम से कम दो वर्षों तक मुस्कान की पहल के लिए संसाधन, विशेषज्ञता और फंडिंग प्रदान कर रहे हैं. अभिषेक ने बताया "डिजिटल कक्षाओं में बच्चों के अनुभव को समझने के लिए जो सालाना सर्वेक्षण किया जा रहा है. उसके मुताबिक पहले की तुलना में 95.2 प्रतिशत बच्चे डिजिटल सीखने के अनुभव का आनंद लेना चाहते हैं. इस पहल के लिए खर्चों का प्रबंधन सीएसआर गतिविधियों के फंड और अमेज़ॅन इंडिया, लिंक्डइन, ओएनजीसी और हिंदुस्तान जिंक जैसे भागीदारों के कॉर्पोरेट सहयोग के माध्यम से किया जाता है."
मिशन की राह में चुनौतियां भी: दरअसल किसी भी नए इनोवेशन को सरकारी स्कूलों में अपनाना इतना आसान नहीं था. यही वजह रही कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों द्वारा डिजिटल और प्रौद्योगिकी आधारित पढ़ाई को स्वीकार कर पाना इतना आसान नहीं था. लिहाजा शिक्षकों के साथ जिला प्रशासन को समझने के तमाम प्रयासों के बाद स्कूलों में बदलाव लाने के प्रयास सफल हो सके. फिलहाल अब इस बात का भी मूल्यांकन किया जा रहा है कि जिन स्कूलों में प्रौद्योगिकी आधारित पढ़ाई की शुरुआत की गई है. वहां की पढ़ाई को लेकर नियमित मूल्यांकन भी हो, जिससे कि स्कूलों में उपलब्ध कराए गए डिजिटल उपकरण स्कूल की पढ़ाई का अभिन्न हिस्सा बना रह सके. अभिषेक के मुताबिक इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए, वह इस साल के अंत तक कर्नाटक के स्कूलों में परियोजना का विस्तार करने और 2025 तक 1 मिलियन छात्रों तक पहुंचने की योजना पर काम कर रहे हैं.
मुझे अपने फैसले और काम की संतुष्टि पर गर्व:अभिषेक दुबे ने बताया ड्रॉपआउट दर सरकारी स्कूलों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक है. मैं सरकारी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना चाहता था, क्योंकि जब वे वहां बेहतर तरीके से शिक्षित होंगे तो उन्हें ट्यूशन की आवश्यकता नहीं होगी. आज मैं जिन जरूरतमंद बच्चों के लिए जो भी कर सका. उसकी मुझे पूर्ण संतुष्टि और खुशी है, यदि मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के मुताबिक किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में होता तो महज एक कॉरपोरेट कर्मचारी होता, लेकिन आज मुझे अपने फैसले पर खुशी के साथ गर्व भी है कि मैं जरूरतमंद बच्चों के लिए कुछ अच्छा कर पा रहा हूं. मेरा मानना है कि किसी को भी अपने सपने नहीं छोड़ना चाहिए. सपनों में हकीकत बनने की ताकत होती है.