भोपाल।गाय के जरिए भी सत्ता पाई जा सकती है क्या? इसका जवाब एमपी की सियासत में मिल सकता है. सत्ता में आते ही पूर्व सीएम कमलनाथ ने गौ शालाओं के लिए बड़ा बजट दिया, हाइटेक गौ शाला बनाने के लिए उनके मंत्री को विदेश भी भेजा. साथ ही प्लानिंग बनाई गई कि कैसे गौ शालाओं के जरिए लोगों को जोड़ा जा सकता है. लेकिन सरकार सिर्फ 15 महीने ही रही. अब कमलनाथ ने भोपाल में गौ सेवकों को बुलाकर उनकी मांगों की हामी तो भरी है, लेकिन वादा पूरा नहीं कर पाए, इसके लिए उन्होंने शिवराज सरकार को दोषी करार दिया. कमलनाथ ने कहा कि ''मैंने तो आप लोगों के लिए वादा पूरा करना चाहा, लेकिन सरकार के जाने के बाद बीजेपी आ गई. सीएम शिवराज ने आपके लिए कुछ नहीं किया.''
सियासत का सहारा बनी गाय: गायों की दुर्दशा से तो पूरा प्रदेश वाकिफ है, सड़कों पर आए दिए एक्सीडेंट हो रहे हैं. वजह है लगातार गायों की बढ़ती संख्या. किसान उन्हें तब तक रखता है जब तक वो दूधारु होती हैं. जैसे ही वो दूध देना बंद करती है या उम्र दराज हो जाती है तो उसे खुले में छोड़ दिया जाता है. अभी तक दूध देनी वाली गाय अब सियासत का सहारा बन गई है. अब गाय को वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रदेशभर से आए करीब 4 हजार गौ सेवकों की मदद से कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है.
कांग्रेस को गौ सेवकों का समर्थन:प्रदेश भर में करीब 27 हजार गौसेवक हैं जो कि अब कांग्रेस का समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं. इनका कहना है कि शिवराज सरकार ने सत्ता में आने के बाद इनके लिए कुछ नहीं किया. इन्होंने साफ कह दिया है कि अब हम कमलनाथ के लिए गांव-गांव जाकर प्रचार प्रसार करेंगे.
भाजपा ने कथावाचकों पर खेला दांव: बता दें कि प्रदेश के चुनावी दंगल में राजनीतिक पार्टी हर वर्ग को साधने की कोशिश कर रही हैं. कांग्रेस पार्टी भगवान बजरंगबली, भोलेनाथ और राम भगवान के बाद अब गौ माता के जरिए वोट बैंक बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वहीं, बीजेपी आदिवासियों के बीच भगवान राम की कथाएं करवाकर दिल जीतना चाहती है. कथावाचकों के जरिए बीजेपी लोगों का दिल जीतने की जुगत में है. कथावाचकों को भारी रकम मिल रही है. इस वक्त धीरेंद्र शास्त्री, प्रदीप मिश्रा, कथावाचिका जया किशोरी सहित कई संत चुनावी माहौल तक लगातार कथाओं के लिए बुक हैं.