जबलपुर।जबलपुर की बिंदु पांडे बीते लगभग 20 सालों से ओशो की संन्यासिन हैं. उनका कहना है कि उनके पति ओशो के संन्यासी हैं. शुरुआत में उन्होंने पति की वजह से ही ओशो को सुनना शुरू किया. लेकिन बाद में भी उन्हें इतने पसंद आने लगे कि आज खुद एक ओशो की संन्यासी हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो को मानना और ओशो की बताई राह पर जीना जीवन को सरल कर देता है. तनाव खत्म कर देता है.
ओशो का संन्यास अलग तरह का :बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थी के दूसरे कामकाज करते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो तनाव को मुक्त करने का तरीका बताते हैं. जीवन का लक्ष्य तय करवाते हैं और जीवन में आनंद कहां से आ सकता है, कैसे आ सकता है, यह तरीका बताते हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि ओशो को लेकर कुछ लोगों ने भ्रम फैलाया और गलत धारणाएं प्रचलित की. यदि सामान्य आदमी ओशो से जुड़ता है तो उसे समझ में आएगा कि वह ओशो कहते कुछ थे और उसे प्रदर्शित कुछ और किया गया.
पुलिस वाला संन्यासी :जबलपुर के पुलिस विभाग में नौकरी करने वाले संतोष मिश्रा ओशो के संन्यासी हैं. उनका कहना है कि लगभग 20 सालों से ओशो से जुड़े हुए हैं. उन्होंने अपने शरीर पर ओशो का टैटू भी बनवाया हुआ है. संतोष मिश्रा का कहना है कि हिंदू धर्म में संन्यास की अवधारणा है. लेकिन हिंदू धर्म का संन्यास हमें समाज से अलग कर देता है. परिवार से अलग कर देता है लेकिन ओशो के संन्यासी होने में आपको ना परिवार से अलग होना है और ना समाज से अलग होना है. ओशो जो दृष्टिकोण देते हैं, उसमें आप समाज और परिवार में रहते हुए भी संन्यास ग्रहण कर सकते हैं और ओशो के ध्यान करने के तरीकों से मन को शांत कर सकते हैं. तनाव खत्म कर सकते हैं. संतोष मिश्रा कहते हैं कि वे नौकरी में रहते हुए भी ओशो के बताए दर्शन का अभ्यास करते हैं. इससे उनका काम सरल हो जाता है. उन्हें तनाव नहीं होता और वह ज्यादा आनंद से अपने काम को अंजाम दे पाते हैं.