जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित मुंडमाला तकनीक से बचा रहे हैं साल के जंगल. बोरर नाम के कीट को नियंत्रित करने के लिए उसके कीड़ों की सिरों की माला बनाई जाती है. इस माला को वन विभाग खरीदना है और इन कीड़ों को नियंत्रित करने का यह तरीका प्रभावी साबित हुआ है. इसकी वजह से न केवल मध्य प्रदेश बल्कि छत्तीसगढ़ और दूसरे प्रदेशों के साल वृक्ष के वनों को बचाया जा सका है.
साल की लकड़ी का महत्व:जबलपुर में इमारती लकड़ियों में साल की लकड़ी का विशेष महत्व है. साल की लकड़ी बेहद मजबूत और भारी होती है. इसके साथ ही साल के पेड़ एकदम सीधे 30-40 फीट ऊंचे हो जाते हैं. इसलिए इसका उपयोग बड़ी नाव बनाने में, घरों में इमारती लकड़ी के रूप में और कलाकारी करने में किया जाता है. साल के पेड़ कई सालों में तैयार हो पाते हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में साल के कई बड़े जंगल हैं.
साल बोरर के कीड़े की माला:लेकिन साल के जंगलों को लेकर वन विभाग साल बोरर नाम के एक कीड़े से हमेशा डरा हुआ रहता है. साल बोरर एक लगभग 2 इंच लंबा कीड़ा होता है. यह कीड़ा साल पेड़ के तने में पाया जाता है और यह ताने में छेद करके लार्वा और कीड़े की अवस्था में आता है. जब कभी साल के पेड़ के नीचे बुरादा दिखने लगता है तो वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सतर्क हो जाते हैं और वन विभाग साल जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को एक ट्रेनिंग देता है. जिसमें साल बोरर के कीट को पकड़ते हैं. इसके लिए साल के पेड़ों की छाल को निकाल कर उसकी रेजिन को कूटकर रखा जाता है. जिसकी सुगंध को सुघकर साल बोरर का कीड़ा उड़ा चला आता है. यही ग्रामीण इस कीड़े को पड़कर उसके सिर को तोड़कर एक माला बनाते हैं और सिरों की गिनती के अनुसार वन विभाग आदिवासियों को पैसे देता है.