ग्वालियर। शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर डबरा तहसील के गांव माधोपुर के रहने वाले एक दिव्यांग युवक बृजेश अटल ने एक हादसे में दोनों हाथ और एक आंख खो दिया था. हादसे के बाद उसके परिवारजनों ने यह सोच लिया था कि अब बच्चे की जीवन पूरी तरह थम गई है. वो न कुछ कर पाएगा और ना ही जिंदगी में आगे बढ़ सकेगा. लेकिन दिव्यांग बृजेश अटल ने अपनी सोच, जुनून और हौसले से पूरी जिंदगी की बाजी को ही पलट दिया. अपनी जिद और जुनून के आगे दिव्यांग बृजेश अटल वह सब काम करता है जो एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है. बृजेश छोटे-छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाता है और अपने परिवार का भरण पोषण करता है. खास बात यह है कि दिव्यांग अटल MPPSC Pre-Exam भी क्वालीफाई कर चुका है. भले ही एक हादसे में इस लड़के ने अपने दोनों हाथ गंवा दिए, लेकिन वह अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट की पिच पर चौके-छक्के लगाता है. गांव की पगडंडियों पर फर्राटे से साइकिल और मोटरसाइकिल दौड़ाता है. इसके साथ ही बृजेश लैपटॉप और मोबाइल को इस तरीके से चलता है जैसे कोई सामान्य व्यक्ति चला रहा हो. खास बात यह है कि वह अपनी मां के साथ खेत में भी उनका हाथ बंटाता है.
कमजोरी को बनाई ताकत: दिव्यांग बृजेश अटल के परिवार में उसकी मां और 1 भाई और 1 बहन हैं. बीमारी के चलते कुछ साल पहले पिता का निधन हो चुका है, इसलिए मां की देखरेख और परिवार की जिम्मेदारी भी दिव्यांग बृजेश की हाथों में है. बृजेश ने बताया कि ''साल 2005 में गांव में आई एक बारात में चल रहे पटाखों को जब पत्थर से फोड़ना चाहा तो धमाके में वह गंभीर रूप से घायल हो गया. उसके बाद इलाज के दौरान डॉक्टरों को उसके दोनों हाथ काटने पड़े और उसने अपनी एक आंख भी गंवा दी.'' बृजेश ने बताया कि इस हादसे के बाद वह पूरी तरह टूट गया. लेकिन अपनी जिद और जुनून के आगे बृजेश ने इस विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत बनाया और फिर उसने अपने आपको आम युवाओं की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. नतीजा यह रहा कि जब बृजेश ने दसवीं की परीक्षा पास की तो उसमें 63% और हायर सेकेंडरी में 77% से उत्तीर्ण हुआ. उसने यह साबित कर दिया कि इंसान सिर्फ अपने जुनून और जज्बे से कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है. बृजेश यहीं नहीं रुका बल्कि उसने BSC फिर MA और BEd भी अच्छे अंकों से पास किया.
कोचिंग पढ़ाकर उठाता है घर का खर्च: बृजेश अपने बल और बुद्धि के कारण पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा. यही कारण है कि बृजेश ने अभी हाल में ही एमपी पीएससी के एग्जाम को क्वालीफाई किया है. दोनों हाथ गंवाने के बावजूद उसने अपने हौसले में कोई कमी नहीं आने दी. बृजेश का कहना है कि ''उसका सपना है कि वह सिविल सेवा के जरिए एक अच्छा अधिकारी बने और इसके लिए लगातार प्रयासरत है. वह अपनी विकलांगता को अपने परिवार पर बोझ नहीं बनाना चाहता.'' यही कारण है कि वह अपने सारे दैनिक कार्य खुद करता है. छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ा कर अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाता है. बृजेश कटे हाथों से पेंसिल पकड़कर लिखता है तो ऐसा लगता है कि जैसे कोई सामान्य व्यक्ति लिख रहा है.