जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर से सनसनीखेज मामला सामने आया है. प्रभा मुखर्जी नाम की महिला के परिवार के सदस्य आनंद चौधरी ने आरोप लगाया है कि उनकी बुआ की लगभग 500 करोड़ की संपत्ति फल बेचने वालों ने फर्जी वसीयत के आधार पर अपने नाम करवा ली है. आनंद चौधरी की याचिका पर हाईकोर्ट ने वसीयत के आधार पर संपत्तियों के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है और जबलपुर पुलिस को इस मामले की जांच करने के आदेश दिए हैं.
वसीयत की जांच कराने की मांग: होशंगाबाद के निवासी आनंद चौधरी ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने अपनी बुआ प्रभा मुखर्जी की संदिग्ध मौत पर और उनकी वसीयत पर जांच करने की मांग की है. आनंद चौधरी ने अपनी शिकायत में कहा है कि ''प्रभा मुखर्जी के पास केबल बड़ा फुहारा इलाके में 25000 वर्ग फुट की एक कोठी थी. इसके अलावा जबलपुर और होशंगाबाद में 400 एकड़ जमीन थी. जबलपुर शहर में इस कोठी के अलावा कई दूसरे स्थानों पर जायजाद थी, बड़े प्लॉट्स और कई घर थे. उनकी संपत्ति की कुल कीमत कई सौ करोड़ में बताई जा रही है. जिसे फल वालों ने हड़प लिया.'' हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए केवल वसीयत के आधार पर जमीनों के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है और जबलपुर पुलिस को इस पूरे मामले की जांच करने के आदेश दिए हैं.
स्लो पॉइजन से महिला के बेटों की मौत:एडवोकेट प्रशांत पाठक का कहना है कि ''यह मामला 2008 के करीब से शुरू होता है जब प्रभा मुखर्जी के घर के सामने चौराहे पर दो युवक फल की दुकान लगाते थे. इन दोनों ही युवकों का नाम अशरफ बताया गया है. इन दोनों ने फल की दुकान लगाने के पहले प्रभा मुखर्जी के परिवार से अनुमति ली थी. इसके बाद इन दोनों युवकों ने प्रभा मुखर्जी से उनकी कोठी में एक कमरा किराए से ले लिया. कोठी बहुत बड़ी थी, इसमें प्रभा मुखर्जी और उनके दो लड़के रहते थे. इन दोनों की ही उम्र 32 से 35 वर्ष के लगभग थी. इनमें से एक लड़के की शादी हो गई थी लेकिन उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी. घर में कुल मिलाकर यह दोनों लड़के और प्रभा मुखर्जी रहती थी. लेकिन 2010 और 2015 के बीच प्रभा मुखर्जी के इन दोनों बेटों की मौत हो गई. दोनों के बारे में जो आरोप लगाया गया है कि उन्हें स्लो पॉइजन दिया गया था और यह अलग-अलग जगहों पर मृत अवस्था में पाए गए थे.
फल बेचने वालों के नाम सैकड़ों करोड़ की संपत्ति:एडवोकेट प्रशांत पाठक ने बताया कि ''प्रभा मुखर्जी का पहले ही अपने देवर के साथ संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा था और इनके परिवार में कोई दूसरा करीबी रिश्तेदार नहीं था. बड़ी कोठी थी. इसलिए आस-पड़ोस के लोग भी इन लोगों से बहुत मेलजोल नहीं रखते थे. वहीं इस इलाके में यह अकेला बंगाली परिवार था. सड़क पर बाजार की हलचल थी और पीछे कोठी में 2015 के बाद केवल प्रभा मुखर्जी रहती थी. इस बात की जानकारी सड़क पर फल बेचने वाले दोनों अशरफ को थी और केवल वही इस कोठी में आते जाते थे.''