भोपाल : आदिवासी दिवस पर छुट्टी न घोषित करने को लेकर कांग्रेस ने सोमवार को सरकार को जमकर घेरा. इस पूरे मामले में सरकार भी बैकफुट पर नजर आई. हालांकि, सरकार की तरफ से बिरसा मुंडा की जयंती मनाने और इसी दिन छुट्टी घोषित किए जाने की घोषणा से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी हुई है.
पॉलिटिकल पार्टियों का आदिवासी प्रेम आखिर क्यों हिलारों मारने लगा है. दमोह में कांग्रेस को मिली जीत और आगामी उपचुनाव इसके पीछे बड़ी वजह के तौर पर सामने आए हैं. जिस एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है वे आदिवासी बहुल हैं. कमलनाथ खुद आदिवासी बहुल जिले छिंदवाड़ा से आते हैं और आदिवासी वोट बैंक को साध कर 2023 में प्रदेश की पॉलिटिकल तस्वीर बदलने की चाहत रखते हैं. वहीं बीजेपी आदिवासियों को अपने पाले में रखकर अपना पिछला प्रदर्शन बरकरार रखना चाहती है. अब सवाल यह है कि किसके होंगे आदिवासी.
उपचुनाव से पहले कांग्रेस ने खेला आदिवासी कार्ड
मध्यप्रदेश में होने वाले उपचुनाव को देखते हुए कमलनाथ ने आदिवासी कार्ड खेला है. विधानसभा के मानसून सत्र के पहले ही दिन कांग्रेस ने आदिवासी मुद्दे पर हंगामा करते हुए शिवराज सरकार को आदिवासी विरोधी बताया और सदन में खूब हंगामा किया.
कांग्रेस की मांग आदिवासी दिवस पर शासकीय अवकाश घोषित किए जाने की थी. इस पूरे मुद्दे पर कांग्रेस आदिवासियों के साथ खड़ी नजर आई और छुट्टी का एलान न होने का मुद्दा सड़क से लेकर सदन तक गूंजा. कांग्रेस के दबाव में सीएम शिवराज ने आखिरकार छुट्टी का ऐलान तो किया, लेकिन 15 नवंबर को जनजाति दिवस पर इस दिन आदिवासियों का बड़ा प्रतीक माने जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती होती है. सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती मनाने का भी ऐलान किया है.
कांग्रेस का फोकस आदिवासियों पर
आदिवासी दिवस पर छुट्टी के एलान को लेकर कांग्रेस ने सरकार को सड़क से सदन तक घेरा और काफी हद तक दबाव बनाने में कामयाब भी रही. कांग्रेस विधायक दल की बैठक में बनी रणनीति के तहत कांग्रेस ने शिवराज सरकार को आदिवासी विरोधी बताकर करीब 23 फीसदी आबादी वाले आदिवासी वर्ग को अपनी ओर खींचने की कोशिश की. अपनी रणनीति के तहत पार्टी ने आदिवासी विधायकों को पहले विधानसभा परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने पारंपरिक वेशभूषा में खड़ा कर विरोध दर्ज कराया फिर सदन में आंसदी को घेरते हुए सरकार को आदिवासी विरोधी करार देते हुए जमकर नारेबाजी भी की.