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घर में रखा था पिता का शव, आंसू पोछते हुए कांपते हाथों से बेटी ने दी परीक्षा

पिता की मृत्यु के बाद अर्थी को घर छोड़कर एक बेटी नम आंखों से पेपर देने पहुंची. दिल को झकझोर देने वाला यह मामला मध्य प्रदेश के दमोह जिले के ग्राम बनवार का है. घर में पिता का शव, आंखों में आंसू, कंपकपाते हाथ कुछ ऐसी ही हालत थी रिया की, लेकिन उसके अंदर पिता का सपना पूरा करने की जिद भी थी. यहीं सोचकर वह परीक्षा देने स्कूल जा पहुंची. उसके बाद घर आकर अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुई. इस मार्मिक घटना के बारे में जिसने भी सुना अपने आंसू नहीं रोक पाया.

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Published : Mar 19, 2023, 2:28 PM IST

daughter sits in exam leaving fathers dead body
पिता की मौत के बाद परीक्षा देने पहुंची छात्रा

पिता की मौत के बाद परीक्षा देने पहुंची छात्रा

दमोह।कहते हैं कि इंसान के जीवन में कभी-कभी हर्ष और विषाद के ऐसे भी क्षण आ जाते हैं जब वह तय नहीं कर पाता कि क्या करें और क्या न करें. दिल को झकझोर देने वाला ऐसा ही एक भावुक मामला जिले की जबेरा जनपद के अंतर्गत आने वाले ग्राम बनवार से निकल कर सामने आया है. दरअसल ग्राम बनवार में रहने वाले शिशु वाल्मीकि की शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी. मृत्यु के बाद परिवार का महोल गमगीन हो गया. रिश्तेदार और गांव के लोग जमा हो गए और अंतिम संस्कार करने की तैयारियां करने लगे. लेकिन इसी परिवार में जन्मी बिटिया रिया वाल्मीकि ने अपने कलेजे पर पत्थर रखा और वह रोती हुई परीक्षा देने स्कूल पहुंच गई.

रोती हुई पेपर देने स्कूल पहुंची छात्रा: असल में रिया कक्षा बारहवीं की छात्रा है और वह बनवार के ही विवेकानंद स्कूल में अध्ययनरत है. शनिवार को उसका रसायन शास्त्र का पेपर था. जब परीक्षा केंद्र में यह बात केंद्र अध्यक्ष और अन्य शिक्षकों को पता चली तो उन्होंने सांत्वना दी और उसे साहस बंधाया. रिया ने भी रोते हुए ही अपना रसायन शास्त्र का पर्चा हल किया और उसके बाद वह घर पहुंची. उसके बाद उसके पिता का अंतिम संस्कार हुआ.

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और तब हुआ अंतिम संस्कार: रिया का पेपर सुबह 9:00 बजे से था. जबकि उसके पिता की मौत सुबह 6:00 बजे ही हो गई थी. परिजन और रिश्तेदार भी रिया के पेपर से वापस लौटने का इंतजार करते रहे. जब वह लौटकर आई तो अपने पिता से लिपटकर खूब रोई. वह जानती थी कि उसके पिता अब उसे कभी नहीं मिलेंगे, लेकिन उसे इस बात का भी एहसास था कि उसके पिता चाहते थे कि बेटी पढ़ लिखकर खानदान का नाम खूब रोशन करे. शायद यही वजह थी कि उसने पिता के अंतिम संस्कार का इंतजार नहीं किया और वह पेपर देने स्कूल निकल गई.

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