Scindia Political Future: समर्थक छोड़ रहे सिंधिया का साथ, क्या खतरे में महाराज की सियासत ? - एमपी के महाराज
चुनावी साल में मध्य प्रदेश की सियासत के रंग भी कुछ अलग ही नजर आ रहे हैं. जिन समर्थकों के साथ मिलकर सिंधिया ने कांग्रेस की सरकार गिराई थी और बीजेपी ज्वाइन की थी. वहीं दांव अब के बरस कुछ उल्टा सा नजर आ रहा है. आए दिन कोई न कोई समर्थक बीजेपी छोड़ कर जा रहा है. जानिए ऐसे हालात में राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं.
भोपाल। साल 2024 के आम चुनाव से पहले क्या बीजेपी में सिंधिया की राहें मुश्किल होनी शुरु हो गई हैं. 2020 में सिंधिया की ताकत बनकर जो समर्थक बीजेपी में आए थे. उनका एन चुनाव के पहले पार्टी छोड़ना सिंधिया को कितना कमजोर करेगा. सिंधिया के गढ़ में समर्थकों का साथ छोड़ना सिंधिया की अपनी सियासत के लिए कितना बड़ा रिस्क है. वीरेन्द्र रघुवंशी जैसे बीजेपी नेता ने सिंधिया और उनके समर्थकों को वजह बताकर पार्टी छोड़ी है. बीजेपी में सिंधिया के भविष्य की पारी पर क्या बीजेपी के भीतर बढ़ता ये असंतोष असर दिखाएगा.
क्या बीजेपी में कमजोर पड़ रहे हैं सिंधिया:ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस वाले तेवर तो बीजेपी में शुरुआत से ही दिखाई नहीं दिए. 2020 में टाइगर बनकर बीजेपी में आए सिंधिया घी में शक्कर की तरह घुल मिल गए. बीजेपी में ऐसा कहा जाता रहा, लेकिन पार्टी में निचले पायदान पर खड़े उनके समर्थकों से लेकर खुद सिंधिया तक बीजेपी और सिंधिया के बीच एक अनजानी लकीर बनी रही. ये लकीर ही है जो वीरेन्द्र रघुवंशी जैसे बीजेपी विधायक के बयान के साथ सुनाई देती है. वीरेन्द्र रघुवंशी ने बीजेपी से त्यागपत्र की जो सबसे बड़ी वजह बताई. वो सिंधिया समर्थकों का पार्टी में बढ़ता प्रभाव, जिसकी वजह से पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता दरकिनार रहा है. क्या बीजेपी को लगे ये झटके सिंधिया की सियासी सेहत पर असर दिखाएंगे. अगर इस बयान को टीजर माना जाए तो अभी कितने और नेता कतार में हैं, जो घुटन से बाहर आने छटपटा रहे हैं.
सिंधिया पैलेस में राष्ट्रपति की खातिरदारी करते सिंधिया
बीजेपी की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं, "चुनावी राजनीति में एन चुनाव से पहले का समय ही होता है कि जब नेता अपना जमीन आसमान देखकर दौड़ लगाते हैं. वीरेन्द्र रघुवंशी जैसे नेताओं के बयान और दलबदल अपनी नई जमीन तलाशने का मौका है. कांग्रेस की सदस्यता लेने जा रहे वीरेन्द्र रघुवंशी ने तय स्क्रिप्ट के मुताबिक बीजेपी छोड़ने के साथ सिंधिया के बहाने बीजेपी के महाराज नाराज के मुद्दे को उछालने का मौका कांग्रेस को दे दिया है."
सिंधिया के गढ़ में मची भगदड़....ये अच्छी बात नहीं:हैरत की बात ये है कि कुल जमा तीन साल के बीजेपी में स्टे के बाद सिंधिया समर्थकों में भगदड़ की शुरुआत सिंधिया के गढ़ से हुई. शिवपुरी जिले में सिंधिया समर्थक रघुराज धाकड़ ने पार्टी छोड़ी. इनके अलावा राकेश गुप्ता जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जितेन्द्र जैन का पार्टी छोड़ना, इसे केवल स्थानीय नेताओं की दौड़ की तरह ना देखा जाए. ये तस्वीर बता रही है कि जो जमीन बनाते रहे हैं, सिंधिया की वो जमीन कार्यकर्ता खिसका रहे हैं. पोहरी जनपद के पूर्व उपाध्यक्ष रहे अरविंद धाकड़ ने बीजेपी छोड़ते समय जो आरोप लगाया, वो काबिल ए गौर है. धाकड़ ने कहा कि "तीन साल पहले जब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे, तो डबल इजन की सरकार मिलेगी, ये कहकर वोट मांगा, लेकिन पोहरी में विकास रुक गया. जनता परेशान है. जिस तरह से वीरेन्द्र रघुवंशी ने सिंधिया समर्थक मंत्री महेन्द्र संह सिसौदिया को निशाने पर लिया. बिल्कुल इसी तरीके से धाकड़ ने राज्य मंत्री और सिंधिया समर्थक सुरेश राठखेड़ा पर आरोप लगाए और कहा कि हमने उनके लिए वोट मांगे, लेकिन उन्होंने जनता के लिए कोई काम नहीं किया."
कांग्रेस की रणनीति, बीजेपी में बढ़े महाराज नाराज:कांग्रेस भी इसी रणनीति पर चल रही है कि बीजेपी में महाराज और नाराज की खाई को कितना बढ़ाया जा सके. दांव ये है कि बीजेपी के मुकाबले बीजेपी खड़ी हो जाए, इसमें दो राय नहीं कि 2020 के बाद की बीजेपी में एमपी में बड़े बदलाव आए हैं. बीजेपी का वो जमीनी कार्यकर्ता नाराज भी है. जिसने लंबे समय तक पार्टी को सींचा, लेकिन जब सत्ता में भागीदारी का समय आया तो अवसर किसी और को दे दिया गया. कांग्रेस इस रणनीति पर काम कर रही है कि बीजेपी के नाराजों को कांग्रेस का न्यौता दिया जाए. इनका बीजेपी छोड़ना ही पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को असंतोष को और हवा देगा. जाहिर है कि पार्टी में सिंधिया समेत सिंधिया समर्थकों की स्थिति असहज होती जाएगी.
सिंधिया पैलेस के बारे में बताते सिंधिया
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक:वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं "मध्यप्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार गिराकर सिंधिया के साथ सरकार बनाने में बहुत जल्दबाजी दिखाई. इसमें तो कोई दोराय नहीं है कि सिंधिया के बीजेपी में आने से मूल भाजपाईंयों की उपेक्षा हुई है. जो अब चुनाव आते-आते पार्टी परिवर्तन के नए तेवर के साथ दिखाई दे रही है. इसका दूसरा एक पहलू ये भी है कि सिंधिया समर्थक भी बीजेपी को उस तरह से स्वीकार नहीं कर पाये. बीजेपी और कांग्रेस के बुनियादी ढांचे में जो फर्क है, उसकी वजह से कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने के बाद सिंधिया समर्थक सहज भी नहीं रह पाए और उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी. देवलिया कहते हैं सिंधिया समर्थकों के बीजेपी छोड़कर जाने से सिंधिया राजनीतिक रुप से कमजोर होंगे. बीजेपी की सियासत और सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.