MP Assembly Election 2023: लहर में भी हारते हैं मंत्री... इस बार इन मंत्रियों की साख दांव पर
एमपी में बीजेपी चुनावी रणनीति की तैयारियों में लग गई है. इस बार भी बीजेपी के कई मंत्रियों की साख दांव पर है. पिछले कई चुनावों से प्रदेश में यह ट्रेंड देखा गया है कि सरकार के मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है. पढ़िए मंत्रियों के हार की पूरी कहानी...
एमपी में बीजेपी चुनावी रणनीति
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Published : Jul 19, 2023, 8:15 PM IST
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Updated : Jul 19, 2023, 8:47 PM IST
एमपी चुनाव 2023 में बीजेपी का क्या प्लान
भोपाल।चुनावी रण में उतरने की तैयारियों में जुटी बीजेपी ने अपने वजीरों की सियासी जमीनों को भांपना शुरू कर दिया है. दरअसल प्रदेश का चुनावी ट्रेंड रहा है कि मतदाता कई मंत्रियों पर दुबारा भरोसा नहीं जताती. पिछले चार चुनावों को देखें तो 20 फीसदी से ज्यादा मंत्री चुनाव दोबारा जीतकर नहीं आ पाते. पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों को देखें तो 30 मंत्री चुनाव हार गए. इसको देखते हुए पार्टी ने सभी मंत्रियों को अपने क्षेत्रों में पहले से ही सक्रिय कर दिया है. साथ ही उन्हें हिदायत भी दे दी गई है कि यदि अंदरूनी सर्वे में स्थिति कमजोर मिली तो टिकट कटना भी निश्चित है.
इन चुनावों में हारे यह दिग्गज:नेता भले ही दिग्गज हों, लेकिन जरूरी नहीं है कि मतदाताओं की कसौटी पर हर बार खरा उतर सकें. हर चुनाव में इसके उदाहरण सामने आते रहे हैं. 2018 के चुनाव में मंत्री अर्चना चिटनीस, जयभान सिंह पवैया, पूर्व मंत्री कैलाश जोशी के बेटे और पूर्व मंत्री दीपक जोशी जैसे कई मंत्रियों को चुनाव में जनता ने नकार दिया. इस चुनाव में शिवराज सरकार के 13 मंत्री अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सके. मंत्री तो हारे ही पार्टी भी सत्ता में वापसी करने में सफल नहीं हो सकी. इस चुनाव में शिवराज मंत्रीमंडल में रही दिग्गज नेत्री और महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस, राजस्व मंत्री उमा शंकर गुप्ता, वित्त मंत्री जयंत मलैया, जयभान सिंह पवैया, लाल सिंह आर्य, रूस्तम सिंह, दीपक जोशी, ललिता यादव, शरद जैन, अंतर सिंह आर्य, नारायण सिंह कुशवाहा, ओमप्रकाश धुर्वे, बालकृष्ण पाटीदार चुनाव हार गए.
2018 में बीजेपी के ये मंत्री
हालांकि जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हुई. ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित उनके समर्थक बीजेपी में आए और बीजेपी सत्ता में आ गई. प्रदेश के इतिहास में पहली बार 28 सीटों पर उपचुनाव हुआ. इस चुनाव में कमलनाथ सरकार के 12 मंत्रियों ने बीजेपी की टिकट पर अपनी चुनावी किस्मत आजमाई, लेकिन इनमें से 3 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा. इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंसाना को हार का मुंह देखना पड़ा.
2013 में बीजेपी के ये मंत्री
लहर में भी नहीं बचा सके अपनी साख: मंत्रियों के हारने का ट्रेंड इसके पूर्व भी रहा है, भले ही पार्टी बंपर सीटों से जीतती रही हो. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 230 में से 165 सीटें पर फतह हासिल की. यह 2008 के मुकाबले 22 सीटें ज्यादा थी. इसे प्रदेश में शिवराज के विकास की लहर माना गया, लेकिन इस लहर में भी सरकार के 9 मंत्रियों ने अपनी सियासी जमीन गवां दी. चुनाव हारे वालों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के परिवार से आने वाले अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई, डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया और लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे नेता थे. इसके अलावा मंत्री रहे करण सिंह, हरिशंकर खटीक, जगन्नाथ सिंह, दशरथ लोधी और कन्हैयालाल अग्रवाल भी चुनाव हार गए.
2008 में बीजेपी के ये मंत्री
इसके पहले हुए 2008 के चुनाव में भी ऐसा ही ट्रेंड रहा. पार्टी ने 143 सीटों पर विजय हासिल की, लेकिन सरकार के 8 मंत्री वापसी नहीं कर सके. हारने वाले मंत्रियों में गौरीशंकर शेजवार, रूस्तम सिंह, कुसुम महदेले, हिम्मत कोठारी, चौधरी चंद्रभान सिंह, अखंड प्रताम सिंह, निर्मला भूरिया, रमाकांत तिवारी शामिल हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक:राजनीतिक विश्लेषक केडी शर्मा कहते हैं कि मंत्री बनने के बाद क्षेत्र के लोगों, स्थानीय कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं भी काफी बढ़ जाती हैं. ऐसे में लोगों और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा चुनाव के समय भारी पड़ जाती है. कई बार मंत्री बनने के बाद नेता क्षेत्र में पर्याप्त समय नहीं दे पाते. हालांकि इस बार मंत्रियों को पहले ही चेता दिया गया है. इसलिए सभी मंत्री क्षेत्र में सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाकर लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक राघवेन्द्र सिंह कहते हैं कि "यह चुनाव पार्टी कांग्रेस ही नहीं, बल्कि बीजेपी के लिए भी करो या मरो वाला है. इसलिए बीजेपी एक-एक सीट की जमीनी स्थिति का पता लगा रही है और इसी के आधार पर टिकट वितरण किया जाएगा. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता पिछले चुनाव में मंत्रियों के हारने पर फिलहाल चुप हैं. मंत्रियों के हारने और टिकट वितरण में गुजरात पैटर्न पर प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल कहते हैं कि "गुजरात फार्मूला को डीकोड करने की जरूरत है. इसका मतलब विकासवाद और राष्ट्रवाद है. यही चुनाव लड़ने का तरीका है. हम जनता से किए हुए वादों को पूरा करते हैं.