भोपाल।कहते हैं कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो आपकी उम्र भी आपके सामने नहीं आती और अगर नारी कुछ ठान ले तो वह हर मुकाम से गुजर कर उसे कर दिखाती है. ऐसी ही एक मिसाल बनी हैं भोपाल की ज्योति रात्रे. उम्र है 54 साल, लेकिन 54 साल की जिस उम्र में लोग घुटनों के दर्द से परेशान रहते हैं और ऊपरी मंजिल की सीढ़ियां भी चढ़ने में उन्हें तकलीफ होती है, वहीं ज्योति ने इस उम्र में माउंट एवरेस्ट पर पहुंचकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है. ज्योति ने माउंट एवरेस्ट की 8200 मीटर तक की चढ़ाई को पूरा किया और वहां जाकर अपने भारत देश का तिरंगा लहराया.
एवरेस्ट की चोटी से 649 मीटर रह गईं पीछे: यह सुनने में जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं. इसके पीछे ज्योति के संघर्ष के साथ ही माउंट एवरेस्ट की सर्द और जमा देने वाली बर्फ के बीच की कई कहानियां भी हैं. ज्योति बताती हैं कि ''माउंट एवरेस्ट की चोटी की ऊंचाई 8848.86 मीटर है और यह उस चोटी से महज 649 मीटर नीचे तक ही पहुंची थी. मात्र आधा किलोमीटर से अधिक की दूरी पर ही चोटी सामने दिखाई दे रही थी. लेकिन उस समय वहां पर इतनी बर्फबारी हो रही थी कि एक कदम भी चल पाना मुश्किल था. जिसके चलते इनके गाइड यानी शेरपा ने इन्हें और इनके साथ मौजूद सभी लोगों को वापस बेस कैंप में नीचे पहुंचने के निर्देश दे दिए.''
मिसिंग लोगों को बचाया: माउंट एवरेस्ट के एक दर्दनाक वाक्ये को बताते हुए ज्योति कहती हैं कि ''उस समय तो लगा ही नहीं था कि जिंदा वापस बचकर आ पाएंगे. महज जब माउंट एवरेस्ट की चोटी 649 मीटर के करीब थी, तभी तेज हवाओं और बर्फ के तूफान ने उनका रास्ता रोक दिया. उन्हें रेडियो पर मैसेज मिला कि यहां से सभी को वापस लौटना है, वरना कई लोग मर जाएंगे. रेडियो पर ही सूचना मिली कि इनके कई साथी गुम गए हैं और कुछ की मौत भी हो गई है. तब ज्योति के शेरपा यानी गाइड उनके पास आए और कहा कि हमारे दूसरे शेरपा कहीं खो गए हैं, मिसिंग है, मिल नहीं रहे. इसलिए हमें वापस जाना होगा.'' लेकिन ज्योति ने हार नहीं मानी और कहा कि हमें उन्हें ढूंढना है. तब इनके गाइड ने बताया कि हम जिस जगह में है यह डेथ पॉइंट कहलाता है और यहां पर 7 से 8 घंटे से ज्यादा कोई जीवित नहीं रहता, इसलिए जो खो गए हैं उन्हें ढूंढने की जगह अपनी जान बचा कर हमें वापस जाना है. लेकिन ज्योति ने हार नहीं मानी और रात को ही दूसरे शेरपा यानी गाइड को ढूंढने के लिए निकल पड़ी और पूरी टीम की मदद से उन्होंने उन्हें खोज भी लिया, जो जीवित थे. ज्योति कहती हैं कि ''माउंट एवरेस्ट की भले ही चोटी पर मैं नहीं पहुंच पाई, लेकिन माउंट एवरेस्ट के उस पहाड़ पर भी पहुंचना और किसी की जिंदगी बचाना मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण पल रहा. इसको लेकर मुझे अपने आप पर गर्व है.''