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Geeta Sar : योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ,दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव... - bhagvadgita

सतोगुणी व्यक्ति देवताओं को पूजते हैं, रजोगुणी यक्षों व राक्षसों की पूजा करते हैं और तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं. योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ, दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव ओम से करते हैं. मूर्खता वश आत्म-उत्पीड़न के लिए या अन्य को विनष्ट करने या हानि पहुंचाने के लिए जो तपस्या की जाती है, वह तामसी कहलाती है. जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह सात्विक माना जाता है. Todays motivational quotes . Geeta sar .

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गीता

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Published : Jan 20, 2023, 7:21 AM IST

सतोगुणी व्यक्ति देवताओं को पूजते हैं, रजोगुणी यक्षों व राक्षसों की पूजा करते हैं और तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं. योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ, दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव ओम से करते हैं. मूर्खता वश आत्म-उत्पीड़न के लिए या अन्य को विनष्ट करने या हानि पहुंचाने के लिए जो तपस्या की जाती है, वह तामसी कहलाती है. जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह सात्विक माना जाता है. Todays motivational quotes . Geeta sar .

आज की प्रेरणा

योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ, दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव ओम से करते हैं. जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह सात्विक माना जाता है. जो दान प्रत्युपकार की भावना से या कर्म फल की इच्छा से या अनिच्छा पूर्वक किया जाता है, वह रजोगुणी कहलाता है. जो दान किसी अपवित्र स्थान पर, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है. श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान या तप के रूप में जो भी किया जाता है, वह नश्वर है. वह असत कहलाता है और इस जन्म तथा अगले जन्म में भी व्यर्थ जाता है.

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