हैदराबाद: तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी सरकार के गठन का ऐलान कर दिया है. खास बात ये है कि तालिबान की सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से लेकर विदेश और वित्त मंत्री तक तमाम मंत्रीपद वैसे ही बांटे गए हैं जैसे कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में होता है. इस सरकार में कुल 33 चेहरे हैं लेकिन सरकार के बड़े पदों पर जिन चेहरों को जगह दी गई है वो आतंक का दूसरा नाम रहे हैं.
जबसे तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया है तबसे मुल्ला बरादर को सरकार का मुखिया बनाने की बातें सामने आ रही थी लेकिन प्रधानमंत्री का पद मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को दिया गया है. वैसे दुनिया के लिए इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला नाम सरकार के गृह मंत्री का है जिसे आतंक का दूसरा नाम कहें तो गलत नहीं होगा.
अमेरिका का मोस्ट वांटेड बना गृह मंत्री
इस सरकार में हक्कानी गुट के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. गौरतलब है कि हक्कानी आतंकवादी संगठन के मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिका की मोस्ट वांटेड लिस्ट में हैं और हक्कानी नेटवर्क तालिबान का सहयोगी है. इसलिये सरकार के गठन में हक्कानी की भी अहम भागीदारी है. बीते 2 दशक से भी ज्यादा वक्त में इस आतंकी संगठन ने कई हमलों को अंजाम दिया, जिसमें हजारों लोग मारे जा चुके हैं. हक्कानी की एक अदद ढंग की तस्वीर भी किसी मीडिया संस्थान या अमेरिका के पास नहीं है.
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार हक्कानी के उस अलकायदा से भी करीबी संबंध रहे हैं जिसने अमेरिका को 9/11 का जख्म दिया और फिर उसी अलकायदा को मिटाने के लिए अमेरिका ने 20 साल लंबी सैन्य कार्रवाई को अफगानिस्तान में अंजाम दिया. अमेरिका ने हक्कानी पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा है. हक्कानी पाकिस्तान की खुफिया एंजेसी आईएसआई का भी करीबी बताया जाता है.
कई बम धमाकों और आत्मघाती हमलों से लेकर नेटो की सेना पर हमले तक में हक्कानी नेटवर्क का हाथ रहा है. माना जाता है कि साल 2008 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजाई पर आत्मघाती हमले को भी हक्कानी ने अंजाम दिया था. साल 2011 में काबुल में अमेरिकी दूतावास के पास नेटो के ठिकानों पर हमले में चार पुलिस अधिकारियों समेत 8 लोगों की मौत हुई थी, इस हमले का दोषी भी हक्कानी गुट को ठहराया गया था.
तालिबान सरकार के 'मोस्ट वांटेड' मंत्री प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद
मोहम्मद हसन अखुंद तालिबान सरकार के मुखिया होंगे और प्रधानमंत्री के रूप में वो इस सरकार की अगुवाई करेंगे. अखुंद तालिबान के संस्थापकों में से एक हैं और वो पिछली बार 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के मंत्री और गवर्नर भी रह चुके हैं. वो तालिबान के संस्थापक और सुप्रीम कमांडर रहे मुल्ला उमर के सलाहकार भी रह चुके हैं.
तालिबान में अखुंद का प्रभाव सैन्य मामलों से ज्यादा धार्मिक मामलों में है. जानकार मानते हैं कि अखुंद का कट्टर धार्मिक पक्ष ने ही उनके प्रधानमंत्री बनने के दावे को मजबूत किया. अखुंद को सरकार का मुखिया बनाने से अफगानिस्तान में शरिया कानून को लागू करने में आसानी होगी. 2001 में मुल्ला अखुंद ने ही अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तुड़वाई थीं. अखुंद भी संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट में है.
मुल्ला बरादर, उप प्रधानमंत्री
अखुंद के बाद मुल्ला बरादर तालिबान सरकार में नंबर 2 की कुर्सी पर होंगे उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्ला बरादर तालिबान के सह संस्थापक हैं. इससे पहले वो तालिबान के सियासी मसलों से जुड़े कार्यालय के मुखिया रह चुका है. तालिबान के सह संस्थापक होने के नाते मुल्ला बरादर भी कुख्यात आंतकियों की सूची में शुमार है.
पिछले साल दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते पर भी मुल्ला बरादर ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के बाद ही अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ना शुरू किया था.
मुल्ला मोहम्मद याकूब
तालिबान सरकार में मुल्ला मोहम्मद याकूब को रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. याकूब तालिबान के संस्थापक और पूर्व सुप्रीम कमांडर मुल्ला उमर का बेटा है. ये पहली बार साल 2015 में तब नजर में आया था जब अपने पिता की मौत के बाद एक ऑडियो संदेश में आतंकी संगठन के भीतर एकता की बात कही थी. पिता की मौत के बाद संगठन में अहम जिम्मेदारी भी निभाई है.
शेर मोहम्मद स्टेनेकजई, उप विदेश मंत्री
अमेरिका के साथ तालिबान के समझौते की बात हो या फिर भारत के राजदूत से तालिबान की मुलाकात, शेर मोहम्मद स्टेनेकजई का नाम चर्चा में रहा. स्टेनेकजई को बड़ा पद और खासकर विदेश मंत्रालय मिलने के कयास लगाए जा रहे थे और इस सरकार में शेर मोहम्मद को उप विदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली है. ये तालिबान की पॉलिटिकल विंग का मुखिया है और मुजाहिदिनी संगठनों के साथ तालिबान में भी काम करने का लंबा अनुभव है. शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनेकजई का भारत से पुराना रिश्ता है. वो देहरादून की मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग ले चुके हैं. कुछ वक्त अफगान सेना में रहने के बाद तालिबान का दामन थाम लिया था.
अफगानिस्तान में तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की मिली जुली सरकार ऐसे कई नाम और भी हैं
मुल्ला अब्दुल सलाम हनाफी- इस सरकार में दो उप प्रधानमंत्री हैं. मुल्ला बरादर के अलावा अब्दुल सलाम हनाफी भी सरकार में उप प्रधानमंत्री होंगे. पिछले साल दोहा में हुए तालिबान-अमेरिका समझौते के दौरान हनाफी भी शामिल था.
आमिर खान मुत्ताकी- सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की गिनती भी तालिबान के सबसे खूंखार आतंकियों में होती है.
कारी फसीहुद्दीन- तालिबान सरकार में कारी फसीहुद्दीन को डिफेंस मिनिस्ट्री में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया गया है. फसीहुद्दीन की अगुवाई में ही तालिबान ने पंजशीर की लड़ाई लड़ी और जीती है. फसीहुद्दीन ताजिक मूल के प्रमुख तालिबान कमांडर हैं.
खैरुल्लाह खैरख्वाह, सूचना प्रसारण मंत्री- तालिबान सरकार का सूचना प्रसारण मंत्री अमेरिकी की जेल में 12 साल रह चुका है.
अब्दुल हकीम, कानून मंत्री- ये शख्स शरिया कानून के सबसे बड़े समर्थकों में से एक है और अब तक हजारों लोगों को कट्टरपंथी बना चुका है. जिसे अब इस सरकार में कानून मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी दी गई है.
कुख्यात आतंकी बने तालिबान सरकार के मंत्री अफगानिस्तान में आतंकियों की सरकार
कुल मिलाकर अफगानिस्तान में जिन 33 लोगों को सरकार में जगह दी गई है वो तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के वो चेहरे हैं जो अफगानिस्तान और आस-पास के इलाकों में आतंक का दूसरा नाम है. हक्कानी नेटवर्क के चीफ सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे कई आतंकी तो दुनिया की मोस्ट वाटेंड आतंकियों की लिस्ट में है. तालिबानी सरकार में विभाग भले किसी लोकतांत्रिक सरकार की तरह बांटे गए हों लेकिन इतिहास के आइने में देखें तो इनका मकसद सिर्फ आतंकवाद और शरिया कानून रहा है. जिसके चलते ये भारत समेत पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब रहे हैं.
तालिबानी सरकार के पीएम अखुंद, दोनों डिप्टी पीएम मुल्ला बरादर और अब्दुल सलाम हनफी, गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित आतंकी हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी के बारे में सूचना देने पर तो अमेरिकी सरकार की तरफ से इनाम घोषित है. ये तालिबानी सरकार आतंकवाद के खिलाफ यूएन समेत कई देशों की मुहिम के लिए सबसे बड़ा झटका हैं. इस सरकार के ज्यादातर चेहरों को अमेरिका ने आतंकी घोषित किया है लेकिन इस सरकार के आतंकी मंत्री आने वाले दिनों में दूसरे देशों के अपने समकक्ष नेताओं से बातचीत करते नजर आएंगे.
कट्टरपंथ है तालिबान और उसकी सरकार की बुनियाद भारत और तालिबान सरकार
तालिबान की नई सरकार में भारत के लिए कुछ भी अच्छा नहीं है. भारत के राजदूत और तालिबान के नुमाइंदों के बीच हुई बातचीत में भारत की तरफ से साफ कर दिया गया था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद और भारत के खिलाफ ना हो. इस सबसे बड़ी शर्त पर ही भारत के भविष्य के कदम टिके हैं लेकिन तालिबानी सरकार के गठन ने उस उम्मीद को कुछ धुंधला कर दिया है. तालिबान के अलावा हक्कानी गुट की इस सरकार में भागीदारी ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
दूसरी सबसे बड़ी मुश्किल पाकिस्तान है. कहा जा रहा है कि तालिबान की इस नई सरकार के गठन में पाकिस्तान और खासकर उसकी खूफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है. इसीलिये ऐन वक्त पर मुल्ला बरादर की जगह अखुंद को सरकार का मुखिया बनाया गया है. कई ऐसे चेहरों को शामिल किया गया है जो पाकिस्तान के हक में काम करेंगे.
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