मुरादाबाद :'ईद मनाने के लिए मैं घर आया था. मैं अपने मोहल्ले की मस्जिद से नमाज पढ़कर लौट रहा था. देखा तो लोग कीचड़ से सने हुए थे. पता चला कि ईदगाह में गोली चल गई है. मैदान में लाशें बिखरी हैं. एक आदमी के पैर में गोली लगी थी. वह दर्द से कराह रहा था. बार-बार जान बचाने की भीख मांग रहा था. वह चीख-चीखकर कह रहा था कि उसे लाशों के बीच दबाकर ले जाया जा रहा है. एक इमाम साहब ने उसकी टांग पकड़ रखी थी. इससे खून बह रहा था. इसके निशान इमाम साहब के कपड़ों पर भी लग गए थे'.
दर्दभरे मंजर की ये दास्तां जिले में 13 अगस्त 1980 में हुए दंगों की तस्वीर बयां करती है. मुरादाबाद से सपा सांसद डॉ. एसटी हसन ने भी इन दंगों को देखा है. उस समय वह एमबीबीएस फाइनल ईयर के स्टूडेंट थे. वह छुट्टी पर घर आए थे. आज भी उनके दिल में दंगे की कई खौफनाक तस्वीरें कैद हैं. दंगों का जिक्र करते ही वह आंखों देखी बताने लग जाते हैं. मंगलवार को इन दंगों की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई. इसी के साथ एक बार फिर से लोगों के जेहन में खौफनौक मंजर की तस्वीरें उभरने लगीं. कई शख्स इन दंगों की खौफनाक कहानी बताते हैं. हालांकि दंगों की असल वजह क्या रही, ये उन्हें भी नहीं मालूम. ईद के दिन भड़के दंगों में 83 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 112 लोग घायल हो गए थे.
दंगों की असल वजह का पता नहीं, सुअर से हुई थी शुरुआत :साल 1980 के 3 अगस्त को ईद थी. त्यौहार पर मुस्लिम समुदाय में उल्लास था. ईद की नमाज पढ़ने के लिए लोग ईदगाह के मैदान में इकट्ठे हो रहे थे. सभी अपनी-अपनी पंगत में खड़े होकर ईद की नमाज अदा कर रहे थे, तभी एक सुअर नमाजियों के बीच आ गया. इसे लेकर नमाज पढ़ रहे लोगों ने पुलिस से इस बात का विरोध किया कि नमाजियों के बीच सुअर कैसे आ गया. इससे पुलिस और नमाजियों के बीच विवाद बढ़ गया. पुलिस और पीएसी के जवानों ने नमाजियों की तितर-बितर करने के लिए गोली चला दी. इसके बाद दंगा भड़क गया. यह दंगा पूरे दो महीने तक चलता रहा. बीएसएफ के आने के बाद इस दंगे पर काबू पाया गया.
घायल व्यक्ति को लाशों के बीच डाल दिया था :दंगों के बारे में पूछने पर सपा सांसद डॉ. एसटी हसन भावुक हो जाते हैं. वह बताते हैं कि 'मैं ईद की छुट्टी पर घर आया था. नमाज पढ़कर लौट रहा था तो पता चला कि ईदगाह के मैदान में गोली चल गई है. कीचड़ से सना एक सुअर नमाजियों के बीच पहुंच गया था. लोगों के विरोध को दबाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस ने न तो कोई आंसू गैस के गोले छोड़े, और न ही रबर बुलेट का इस्तेमाल किया. मेरे सगे मामा उस समय नमाज पढ़ रहे थे, उन्होंने मुझे बताया कि ईदगाह से ट्रकों में भरकर लाशें गईं थीं. एक आदमी की टांग में गोली लगी थी. वह इमाम साहब से कह रहा था कि मुझे बचा लो. यह लोग मुझे लाशों में दबाकर ले जा रहे हैं. इमाम साहब ने उसकी टांग पकड़कर उसे निकालने की कोशिश की, इस पर पीएसी वालों ने अपनी बंदूक की बट से वार किया. इसके बावजूद उन्होंने टांग नहीं छोड़ी. इस दौरान जख्मी टांग इमाम साहब के कपड़ों से टकरा गई. इससे उस पर खून का धब्बा लग गया. उस समय की मीडिया ने यह सब दिखाया था. लोगों ने आक्रोश में आकर गलशहीद की चौकी में आग लगा दी थी. तोड़फोड़ भी की गई थी. पीएसी ने जो किया वह बहुत ही भयानक था. घर में पीएसी घुस गई, लोगों को बर्बाद कर दिया. लोगों को जहां ले गई, वहां से लोग आज तक नहीं लौटे'.