नई दिल्ली : आधुनिक चिकित्सा एक बार फिर रोगियों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (एमएबी) के रूप में इलाज काे लेकर आश्वस्त कर रही है. एंटीबॉडी आधारित उपचार ने वायरल के प्रभाव को कम कर दिया है.
इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इसके आपातकालीन उपयोग काे मंजूरी देते हुए एक निजी दवा कंपनी को 2 लाख खुराक आयात करने की अनुमति दी है.
यानी यूएसएफडीए ने जिस इलाज को मंजूरी दी थी, वह अब हमारे देश में भी उपलब्ध होगा. विशेषज्ञाें की मानें ताे एंटीबॉडी उपचार वायरस के हल्के प्रभाव को रोकता है और परिणामस्वरूप 7 से 10 दिनों के भीतर पूरी तरह से ठीक हो जाता है.
हालांकि, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (एआईजी) के अध्यक्ष डॉ डी नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि उपचार केवल उन निर्धारित मामलों में दिया जाना चाहिए जिनमें काेविड -19 से अधिक खतरा होता है.
डॉ रेड्डी ने उपचार, सुरक्षा और कार्यान्वयन के बारे में विस्तार से बात की. पेश है कुछ खास सवालाें के जवाब
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी क्या है?
एंटीबॉडी कई प्रकार के होते हैं. इनमें से कुछ ही वायरल संक्रमण में प्रभावी हाेते हैं. नई एंटीबॉडी विकसित करने के लिए कॉकटेल या दवाओं का उपयोग किया जाता है. वर्तमान में, COVID-19 रोगियों के लिए Casirivimab और Imdevimab के एंटीबॉडी कॉकटेल को मंजूरी दी गई है.
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रयोगशाला-निर्मित प्रोटीन हैं. इसकी मौजूदा कीमत 70,000 रुपये है. प्लाज्मा थेरेपी में विभिन्न प्रकार के एंटीबॉडी होते हैं, लेकिन मोनोक्लोनल में केवल 2 प्रकार होते हैं, 5 एमएल की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी 5 लीटर प्लाज्मा के बराबर होती है.
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