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नगा शांति वार्ता के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है मोन हिंसा

नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव के पास सेना के 21 पैरा और असम राइफल्स के जवानों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम 16 नगा कोन्याक आदिवासियों की मौत हो गई है और कम से कम चार की हालत गंभीर बताई जा रही है. यह हिंसा नागा मुद्दे को सुलझाने के दशकों के प्रयास को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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मोन हिंसा

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Published : Dec 5, 2021, 8:54 PM IST

नई दिल्ली : दो सप्ताह पहले जब शहीद हुए असम राइफल्स के जवान (father of slain Assam Rifles jawan ) खतनाई कोन्याक (Khatnai Konyak ) के वृद्ध पिता ने अपने पतित पुत्र की अंत्येष्टि समारोह के दौरान एक दिल दहला देने वाला भाषण (heart-wrenching speech) दिया और अपने आदिवासियों से भारत का समर्थन करने और सीमाओं की रक्षा करते रहने का आग्रह किया, तब से वहां सुरक्षा बलों के प्रति नगाओं की भावना (sentiment of Nagas towards the security forces) में बदलाव आया है.

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में भारत-म्यांमार सीमा (India-Myanmar border) के पास 13 नवंबर 2021 को मणिपुर के विद्रोहियों द्वारा किए गए घातक हमलें खतनाई कोन्याक की मौत हो गई थी.

नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव के पास सेना के 21 पैरा और असम राइफल्स के जवानों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम 16 नगा कोन्याक आदिवासियों की मौत हो गई है और कम से कम चार की हालत गंभीर बताई जा रही है.

घटना ऐसे समय में हुई है जब नगा शांति वार्ता (Naga peace talks) नागालिम की राष्ट्रवादी समाजवादी परिषद (Nationalist Socialist Council of Nagalim ) के इसाक-मुइवा गुट के साथ 1997 में शुरू होने के बाद कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं होने के कारण अधर में लटकी हुई है.

2015 में सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर के बावजूद कुछ प्रारंभिक प्रगति के बाद, वार्ता की स्थिति अब स्पष्ट नहीं है.

दिलचस्प बात यह है कि नगालैंड में सरकार और विभिन्न विद्रोही समूहों (insurgent groups in Nagaland) के बीच संघर्ष विराम चल रहा है, जिसका उल्लंघन शनिवार की मुठभेड़ में हुआ.

दिसंबर में चल रहे हॉर्नबिल त्योहार (Hornbill festival), क्रिसमस और नए साल की पूर्व संध्या पर नगालैंड में शीर्ष उत्सव का समय होने के कारण, हत्याओं ने नगाओं में बहुत गुस्सा पैदा कर दिया और साथ ही सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (Armed Forces Special Powers Act) पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया है.

बता दें कि AFSPA एक विवादास्पद कानून है, जो सुरक्षा बलों को पूर्वोत्तर और कश्मीर के अशांत क्षेत्रों में देखते ही गोली मारने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की इजाजत देता है.

जब पिछली बार रिपोर्ट आई थी, तब नागा नागरिकों ने रविवार को मोन शहर में असम राइफल्स (Assam Rifles posts in Mon town) की चौकियों को आग लगा दी थी, जबकि विभिन्न नागा जनजातियों और आदिवासी 'होहो' (आदिवासी बुजुर्गों की परिषद) ने हत्याओं की कड़े शब्दों में निंदा की थी.

रिपोर्ट में सोमवार को मोन शहर में असम राइफल्स के जवानों द्वारा की गई गोलीबारी में और अधिक मौतों की बात कही गई है.

इन मौतों के परिणामस्वरूप विभिन्न नगा जनजातियों और विद्रोही गुटों के बीच एकता (unity among Naga tribes and insurgent factions ) की एक नई भावना पैदा हुई है, जहां भारत सरकार की बातचीत करने वाली टीम को टेबल पर एक बहुत ही दुर्जेय और केंद्रित विरोध का सामना करना पड़ेगा.

इसके अलावा नगाओं के बीच गुस्से की भावना भी अधिक युवाओं को विद्रोही संगठनों में शामिल (youths to join insurgent outfits) होने के लिए प्रेरित करेगी, जो निस्संदेह इस तथ्य से मदद मिलेगी कि म्यांमार-पूर्वोत्तर विद्रोहियों के लिए एक पारंपरिक गढ़-एक गृहयुद्ध जैसे उथल-पुथल और अराजकता की स्थिति में है.

पढ़ें - नगालैंड में फायरिंग में 15 की मौत, इलाके में तनाव, गृह मंत्री ने जताया दुख

साथ ही नगाओं के बीच गुस्से की भावना मणिपुर के नगाओं में भी फैल सकती है, जहां मार्च 2022 में राज्य विधानसभा चुनाव (state assembly elections) होने हैं.

मणिपुर में नगाओं के पास मणिपुर की 60 सीटों में से कम से कम 11 विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी परिणाम को प्रभावित करने की संख्या है. 2017 के राज्य चुनावों में, सत्तारूढ़ भाजपा ने 21 सीटें हासिल की थीं, जबकि कांग्रेस ने राज्य में सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में 28 सीटों पर जीत हासिल की थी.

नतीजतन नई दिल्ली में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के साथ नगाओं का असंतोष मणिपुर में भी सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के खिलाफ फैल सकता है.

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