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समाज की इकाई कुटुम्ब है, व्यक्ति नहीं: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि परिवार असेंबल की गई इकाई नहीं है, यह संरचना प्रकृति प्रदत्त है. इसलिए हमारी जिम्मेदारी उनकी देखभाल करने की भी है. आज हम इसी के चिंतन के लिए यहां बैठे है. हमारे समाज की इकाई कुटुम्ब है, व्यक्ति नहीं.

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Published : Mar 23, 2022, 1:56 PM IST

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गोरखपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि परिवार असेंबल की गई इकाई नहीं है, यह संरचना प्रकृति प्रदत्त है. इसलिए हमारी जिम्मेदारी उनकी देखभाल करने की भी है. आज हम इसी के चिंतन के लिए यहां बैठे है. हमारे समाज की इकाई कुटुम्ब है, व्यक्ति नहीं. पाश्चात्य देशों में व्यक्ति को इकाई मानते हैं, जबकि हमारे यहां हम व्यक्ति तो हैं लेकिन एक अकेले नहीं हैं. भागवत यहां तारामंडल स्थित गुरु गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. वहीं, उन्होंने कुटुम्ब के लिए छह मंत्र देते हुए भाषा,भोजन, भजन,भ्रमण,भूषा और भवन के जरिए अपनी जड़ों से जुड़े रहने का संदेश दिया. उन्होंने कहा कि मेरा परिवार स्वस्थ रहे, सुखी रहे, इसके साथ ही हमें समाज के भी स्वस्थ व सुखी रखने की चिंता करनी होगी.

तारामंडल स्थित बाबा गम्भीरनाथ प्रेक्षागृह में संघ के कार्यकर्ताओं के परिवार व विचार परिवार के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते उन्होंने कहा कि यहां पर कुटुम्ब प्रबोधन हो रहा है. इसी तरह सप्ताह में सभी परिवार कुटुंब प्रबोधन करें. इसमें एक दिन परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन ग्रहण करें. इसमें अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों की जानकारी दें. फिर आपस में चर्चा करें और एक मत बनाएं और उस पर कार्य करें.

उन्होंने कार्यकर्ताओ और उनके परिजनों को संबोधित करते हुए कहा कि हम सब लोग संघ के कार्यकर्ता के घर से है इसलिए हम लोग व्रतस्थ है. यह व्रत परिवार के किसी अकेले व्यक्ति का नहीं पूरे परिवार का है. संघ अपनी कुलरीति है, संघ समाज को बनाने का कार्य है इसलिए धर्म भी है. धर्म हमें मिलकर जीने का तरीका सिखाता है. परस्पर संघर्ष न हो इसके लिए हम अपना हित साधे, लेकिन दूसरे का अहित न हो इसकी चिंता करनी चाहिए. यही सनातन धर्म है, यही मानव धर्म है और यही आज हिन्दू धर्म है. सम्पूर्ण विश्व को तारण देने वाला धर्म है, जिसके लिए कमाई भी देनी पड़ती है.

आगे उन्होंने मणिपुर का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि हमे अपना परम्परागत वेश-भूषा पहनना चाहिए. कम से कम मंगल प्रसंग व अवसरों पर तो पहनना ही चाहिए. हम क्या है,हमारे माता-पिता कहां से आए इसकी जानकारी रखनी चाहिए. हमको इसकी भी चिंता करनी चाहिए कि हम अपने पूर्वजों की रीति का हम पालन कर रहे या नहीं. हमे पूरे परिवार के साथ बैठकर विचार करना चाहिए, साथ ही बच्चों के साथ खुले दिल से बात करना चाहिए. साथ ही मैं समाज के लिए क्या करता हूं यह हमे सोचना पड़ेगा.

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संघ के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संघ पर दो बार प्रतिबंध लगा,पर किसी स्वयं सेवक ने माफी नहीं मांगी. क्योंकि स्वयंसेवकों के साथ परिवार खड़ा रहा, परिवार सदा अड़ा रहा इसलिए संघ का काम निरन्तर चल रहा है. हम स्वयंसेवकों के परिजनों को संघ जानना चाहिए और संघ का काम कितना गंभीर है इसको भी सोचना चाहिए. हम इतने सौभाग्यशाली है, जो इस कार्य में लगे हैं. हमें इस बात को समझना चाहिए.

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