हैदराबाद : अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल इन काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी छावनी में बने बंगले और क्वार्टर को किसी भी व्यक्ति द्वारा बेचने या कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जो सेना से संबंधित है. माना जा रहा है कि अब 2021 में इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किया जाएगा.
अब तक भारत में रक्षा भूमि के बारे में कोई सख्त नीति नहीं रही है जिसकी वजह से देश भर पड़ी सैन्य जमीनों पर बड़े पैमाने पर कब्जे हो चुके हैं. केंद्र सरकार करीब 220 साल पुराने डिफेंस लैंड पॉलिसी को बदलने जा रही है जिसके बाद सेना की जमीन का इस्तेमाल पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए किया जा सकेगा.
रक्षा मंत्रालय के पास इस वक्त 17.95 लाख एकड़ जमीन है. जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन कुल 62 सैन्य छावनियों से बाहर है. यह ज्यादातर जमीन जीटी रोड से सटी हुई है. दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय-ब्रिटिश सेना द्वारा बनाए गए कैंपिंग ग्राउंड, पुराने डिपो, छोड़ दी गई छावनियां, मैदान व पुराने हवाई क्षेत्र हैं, जो अब उपयोग में नहीं हैं.
क्या है नया विकास
नरेंद्र मोदी सरकार ने नए नियमों को मंजूरी दी है जो सशस्त्र बलों के लिए उनसे खरीदी गई जमीन के बदले समान मूल्य के बुनियादी ढांचे (ईवीआई) के विकास की अनुमति देते हैं. नए नियम रक्षा भूमि सुधारों की श्रृंखला से पहले आते हैं जो सरकार के विचाराधीन है.
रक्षा मंत्रालय (MoD) के अधिकारियों के अनुसार प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक रक्षा भूमि जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर का निर्माण केवल समकक्ष मूल्य की भूमि के लिए या उसके बाद ही आदान-प्रदान किया जा सकता है.
नए नियमों के तहत आठ ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिन्हें प्राप्त करने वाला पक्ष संबंधित सेवा के समन्वय से बुनियादी ढांचा प्रदान कर सकता है. इनमें निर्माण इकाइयां और सड़कें, अन्य परियोजनाओं के अलावा शामिल हैं. नए नियमों के अनुसार, भूमि का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा.
जल्द कैबिनेट के सामने होगा पेश
छावनी के बाहर की जमीन के लिए जिलाधिकारी दर तय करेंगे. वित्त मंत्रालय (MoF) ने प्रस्तावित गैर-व्यापगत आधुनिकीकरण कोष के लिए राजस्व उत्पन्न करने के लिए रक्षा भूमि के मुद्रीकरण को एकमात्र तरीका माना है. अधिकारियों के मुताबिक रक्षा आधुनिकीकरण कोष की स्थापना पर कैबिनेट नोट के मसौदे पर अभी अंतर-मंत्रालयी विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही इस पर अंतिम फैसला आने की उम्मीद है.
जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट के सामने रखा जाएगा. लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि चूंकि रक्षा भूमि पूरे देश में सबसे प्रमुख क्षेत्रों में हैं, वर्षों से राजनेताओं और नागरिक अधिकारियों ने मांग की है कि उनका उपयोग विकास गतिविधियों के लिए किया जाए.
अब ऐसा लगता है, यह हो रहा है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की अध्यक्षता में सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने पिछले साल सरकार को बताया था कि रक्षा भूमि मुद्रीकरण से प्राप्त आय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शायद ही पर्याप्त होगी.