नई दिल्ली : मोदी सरकार के कार्यकाल में जिन तीन एजेंसियों की चर्चा सबसे अधिक होती है, वे हैं - सीबीआई, ईडी और चुनाव आयोग. सीबीआई और ईडी जांच एजेंसियां हैं, जबकि चुनाव आयोग का मुख्य कार्य निष्पक्ष चुनाव कराना होता है. विपक्षी दल इन तीनों एजेंसियों की निष्पक्षता पर आरोप लगाते रहे हैं. इन एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्तियां किस तरह से की जाती हैं, उनको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गईं थीं. और अब सुप्रीम कोर्ट ने इन पर अपना फैसला भी सुना दिया है. इन फैसलों का लब्बो-लुआब यह है कि यहां पर अब केंद्र सरकार की 'मनमर्जी' नहीं चलेगी. इन पर कहीं न कहीं अंकुश लगा दिया गया है.
आइए जानते हैं कि इन एजेंसियों के प्रमुखों की नियक्ति किस तरह से की जाती है. सीबीआआई और ईडीदोनों ही जांच एजेंसियां हैं. विपक्षी दलों का आरोप रहा है कि सरकार इऩ दोनों एजेंसियों के माध्यम से अपने विरोधी पक्षों को टारगेट कर रही है. ये अलग बात है कि सरकार इन आरोपों को बेबुनियाद बताती रही है. सरकार का कहना है कि जो कोई भी भ्रष्टाचार में लिप्त होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी.
कुछ पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि किसी का यह संकल्प है कि वे भ्रष्टाचार करेंगे, तो हमारा भी संकल्प है कि उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे. सदन के पटल पर भी पीएम खुद कह चुके हैं कि ईडी और सीबीआई की वजह से सारे विपक्षी दल एक साथ हो रहे हैं. व्यंग्यात्म लहजे में पीएम मोदी ने कहा था कि चलो, विपक्षी दलों को ईडी को धन्यवाद करना चाहिए कि उनके बहाने सभी एक हो गए हैं.
आइए अब यह समझते हैं कि इन एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति किस तरह से होती है.
सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति - सीबीआई केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है. यानी यह पीएमओ के अंतर्गत है. पहले यह गृह मंत्रालय के अधीन होती थी. सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति तीन सदस्यों की एक कमेटी करती है. इसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता शामिल होते हैं. यदि लोकसभा में कोई भी प्रतिपक्ष का नेता नहीं है, तो सबसे बड़े दल का नेता शामिल होता है.
सीबीआई प्रमुख का कार्यकाल दो सालका होता है और इसे अधिकतम तीन सालों के लिए बढ़ाया जा सकता है. एक बार में एक साल के लिए कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है. कुल मिलाकर अधिकतम पांच साल तक वे पद पर बने रह सकते हैं.
सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया गृह मंत्रालय से शुरू होती है. गृह मंत्रालय देश के बेहतरीन आईपीएस अधिकारियों की सूची तैयार करता है. उसके बाद इस सूची को कार्मिक एंव प्रशिक्षण मंत्रालय को सौंप दिया जाता है.
ईडी प्रमुख की नियुक्ति - प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) वित्त मंत्रालय (फाइनेंस मिनिस्ट्री) के अंतर्गत है. यह अपना काम पीएमएलए एक्ट के मुताबिक करता है. ईडी डायरेक्टर की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम 2003 के अधीन की जाती है. इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है. कमेटी की अध्यक्षता सीवीसी आयुक्त करते हैं. कमेटी के सदस्यों में कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव, गृह सचिव, वित्त सचिव (राजस्व) शामिल होते हैं. इस कमेटी की अनुशंसा के आधार पर ईडी डायरेक्टर की नियुक्ति की जाती है.
ईडी के कार्य - यह मुख्य रूप से वित्तीय अपराधों की जांच करता है. अगर आपने गैर कानूनी तरीकों से संपत्ति अर्जित की है, तो ईडी आपकी जांच करेगी.
वर्तमान विवाद - ईडी निदेशक संजय मिश्रा को दिया गया एक्सटेंशन. संजय मिश्रा 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी हैं. 19 नवंबर 2018 से वह ईडी डायरेक्टर के पद पर हैं. शुरुआत में उनकी नियुक्ति दो सालों के लिए ही की गई थी, बाद में उनकी नियुक्ति की अवधि बढ़ाई गई. उनके बार-बार मिल रहे एक्सटेंशन को आधार बनाकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी. मंगलवार को इस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने संजय मिश्रा के कार्यकाल को 31 जुलाई तक सीमित कर दिया. संजय मिश्रा को लेकर विपक्षी पार्टियों ने कई शिकायतें की थीं.
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार के उस कानून को भी चुनौती दी थी, जिसके तहत ईडी प्रमुख और सीबीआई प्रमुख के कार्यकालों को अधिकतम पांच साल कर दिया था. कोर्ट ने केंद्र के इस कानून को सही ठहराया. कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति कमेटी इस पर विचार करती है, इसलिए इस पर न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फैसले का अर्थ यह हुआ कि अब सरकार किसी भी डायरेटक्टर का कार्यकाल बढ़ाती है, तो उसे उस कमेटी, जो नियुक्ति कमेटी है, उसकी सहमति लेनी पड़ेगी. उसके लिए यह बताना अनिवार्य होगा कि उनकी अवधि बढ़ाने के पीछे क्या कारण हैं.
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति - सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक कमेटी की अनुशंसा के आधार पर होगी. उस कमेटी में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता शामिल होंगे. इससे पहले सरकार अपने पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्ति कर देती थी. अभी तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नई प्रक्रियाओं के तहत नहीं हुई है. वैसे, केंद्र सरकार चाहे तो इस मामले पर कानून बना सकती है.
आपको बता दें कि 1989 तक चुनाव आयोग में एक ही आयुक्त होते थे. राजीव गांधी के समय में दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों को नियुक्त किया गया. वीपी सिंह की सरकार ने राजीव गांधी की सरकार के फैसलों को पलट दिया. अब चुनाव आयोग फिर से एक आयुक्त वाला हो गया. टीएन शेषण इसी दौरान चुनाव आयुक्त बने थे. नरसिंह राव की सरकार ने फिर से चुनाव आयोग को तीन सदस्यों वाला आयोग बना डाला. अभी तक पीएम के नेतृत्व में बनी कैबिनेट नियुक्ति कमेटी ही इस पर फैसला लेती थी.
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