वाराणसी : पिछले दिनों गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को लेकर काफी हंगामा मचा. समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने चौपाइयों का हवाला देकर रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बता दिया था. रामचरितमानस के जिन चौपाइयों पर विवाद है, उनमें से सुंदरकांड की एक चौपाई भी शामिल है - ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी. राजनेता इस चौपाई को दलित और महिला विरोधी बताते हैं. समर्थन और विरोध की राजनीति के बीच रामचरितमानस के इस दोहे को लेकर नया तथ्य सामने आया है.
वाराणसी के श्री बल्लभ राम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय के परीक्षा अधिकारी और प्रकांड विद्वान गणेश्वर शास्त्रीय द्रविड़ ने दावा किया है कि गीताप्रेस, गोरखपुर की ओर से प्रकाशित रामचरितमानस की चौपाई गलत है. उनका दावा है कि गोस्वामी तुलसीदास ने चौपाई में शूद्र शब्द लिखा ही नहीं.इस चौपाई में गोस्वामीजी ने क्षुद्रलिखा था, जिसका इस्तेमाल जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि क्रूर और घमंडी शख्सियतके लिए किया जाता है. गणेश्वर शास्त्रीय द्रविड़ का कहना है कि उनके रिसर्च में कई बातें सामने आई हैं, जो चौपाइयों की सत्यता को प्रमाणित करती हैं. इस रिसर्च के दौरान उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास रचित कुंडलिया रामायण का भी अध्ययन किया, जहां उन्होंने सुंदरकांड में क्षुद्र शब्द का प्रयोग किया है.
गणेश्वर शास्त्रीय द्रविड़ ने बताया कि जब रामचरितमानस को लेकर हंगामा मचा तो काशी के कुछ विद्वानों ने तुलसीदास जी की इन चौपाइयों पर रिसर्च शुरू किया. विद्वानों ने यह जानने की कोशिश की कि सृष्टि के सभी जीवों को समान भाव से देखने वाले संत क्या भेदभाव वाले शब्द का प्रयोग कर सकते हैं. संत गोस्वामी तुलसीदासजी से इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है ? रिसर्च टीम ने देश की कई अलग-अलग लाइब्रेरी से लेकर अन्य जगहों पर गोस्वामीजी की रचनाओं को पढ़ा.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में गणेश्वर शास्त्री ने कहा है कि जो शब्द गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस के पृष्ठ संख्या 337 पर कहे गए हैं, वह सही लिखे ही नहीं गए हैं. अपने दावे के समर्थन में शास्त्री बताते हैं कि तुलसीदास जी रचित कुंडलिया रामायण में शूद्र नहीं बल्कि क्षुद्र शब्द का प्रयोग किया गया है. गणेश्वर उन आरोपों को भी खारिज करते हैं , जिनमें अक्सर कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने शूद्र और नारी को ताड़ना योग्य बताया है.
उनका कहना है कि एक संत किसी भी जीव के लिए गलत शब्दों का प्रयोग कर ही नहीं सकता. एक काव्य के रूप में है तो उनमें चीजों को उस तरह से प्रस्तुत किया गया है. यदि तुलसीदासजी के द्वारा किसी जाति विशेष के ऊपर टिप्पणी की जाती तो निश्चित तौर पर शबरी को इतना सम्मान ना मिलता. तारा, स्वयंप्रभा, मंदोदरी नारी थी और रामचरितमानस में उन्हें हर जगह सम्मान ही मिला है. इसलिए इस चौपाई में शूद्र की जगह क्षुद्र का पाठ शुद्ध माना जाएगा.
गणेश शास्त्री एक और प्रिटिंग मिस्टेक को रेखांकित करते हैं. उन्होंने पशु और नारी को अलग-अलग शब्द के बजाय एक पशुनारी बताया है. उनका कहना है चौपाई में ढोल, गवार क्षुद्र एवं पशुनारी को ताड़ना के योग्य माना है. पशुनारी का अर्थ दुष्टबुद्धि वाली किसी महिला से है. जैसे ताड़का या फिर अन्य राक्षसी प्रवृत्ति की महिलाएं, जिन्हें दंडित किया जा सकता है.