हैदराबाद:पाकिस्तान से अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले मीडिया की सुर्खियां बनते रहते हैं. ताजा मामला पेशावर से आया जहां एक सिख हकीम की गोली मारकर हत्या कर दी गई. बंदूकधारी हमलावरों ने क्लीनिक चलाने वाले सतनाम सिंह नाम के शख्स को चार गोलियां मारी और मौके से फरार हो गए. पुलिस हर बार की तरह जांच की लकीर पीट रही है. इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS-K) ने इस हत्या की जिम्मेदारी भी ले ली है. लेकिन इस हत्या के बाद एक बार फिर से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत पर सवाल उठने लगे हैं ?
सिख हकीम की गोली मारकर हत्या डर के साए में जी रहे हैं अल्पसंख्यक
पाकिस्तान में हिंदुओं के अलावा ईसाई, सिख और पारसी समुदाय के लोग भी रहते हैं. इन सभी अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में हिंसा का सामना करना पड़ता है. बीते दिनों पीएम मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र में भारत की भारत की फर्स्ट सेक्रेटरी स्नेहा दुबे ने भी कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद का संरक्षक है और अल्पसंख्यकों का दमन करता है. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रही प्रताड़ना को लेकर भारत से लेकर दुनियाभर के देश चिंता जताते रहे हैं.
पाकिस्तान की तरफ से भी बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मानवाधिकार के बड़े-बड़े लेक्चर दिए जाते हैं. लेकिन पाकिस्तान कभी अपने गिरेबां में झांककर नहीं देखता. जहां पल-पल अल्पसंख्यक नर्कीय जीवन जीने को मजबूर हैं.आगे आपको बताएंगे कि आखिर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक कैसे होते हैं शोषण और नफरत का शिकार. पहले जानिये कि
पाकिस्तान में कितनी है अल्पसंख्यकों की आबादी ?
दिसंबर 2019 में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पाकिस्तान में साल 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 फीसदी थी. जो साल 2011 में घटकर करीब 3 फीसदी रह गई. शाह के मुताबिक अल्पसंख्यक आबादी में इन सालों में आया अंतर बताता है कि इस दौरान या तो अल्पसंख्यकों का धर्म परिवर्तन हो गया या वो भारत आ गए या उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि वो लोग भागने पर मजबूर हो गए.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी का सटीक आंकड़ा कोई नहीं जानता. फिर चाहे हिंदू हों या सिख या फिर ईसाई. हालांकि आबादी के कुछ आंकड़े पाकिस्तान की तरफ से जारी किए गए हैं.
पाकिस्तान में साल 2017 में जनगणना हुई. 21वीं सदी में ये पहली बार था जब पाकिस्तान में जनगणना हुई थी. इससे पहले साल 1998 में जनगणना हुई थी. साल 2017 में हुई जनगणना के आंकड़े इसी साल जारी किए गए थे जिसके मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी करीब 20.77 करोड़ है. जिसमें 96.47% मुस्लिम, 2.14% हिंदू, 1.27% ईसाई, 0.1% अहमदिया समुदाय और 0.02 % अन्य धर्म और समुदाय के लोग हैं.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ क्या-क्या होता है ?
पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है जहां की 96 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है. बाकी 3 से 4 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई व अन्य धर्मों की हैं. जिन्हें कई तरह के जुल्म झेलने पड़ते हैं. जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां तक बनते हैं.
1) जबरन धर्म परिवर्तन- पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. खासकर अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, ईसाई परिवारों के लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जाता है. लड़कियों का धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम युवकों से शादी के मामले भी सामने आते रहते हैं. पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन का खेल ऐसे चलता है कि उसका सटीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है.
पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक ज्यादातर कम उम्र की लड़कियों और गरीब परिवारों को लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है. धर्म परिवर्तन के ज्यादातर मामले तो सामने ही नहीं आते और धर्म परिवर्तन के तरीकों से ये साबित करना मुश्किल होता है कि ये जबरन या गैरकानूनी तरीके से कराए गए हैं या रजामंदी से हुए है. जो मामले सामने आते भी हैं, उनमें पीड़िता आरोपियों के खिलाफ बयान नहीं दे पातीं क्योंकि पाकिस्तान में धर्म छोड़ना जान जोखिम में डालने जैसा है.
जबरन धर्मांतरण झेलती है अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियां
पाकिस्तान में धर्मांतरण के खिलाफ काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक वहां पूरा सिस्टम ही अल्पसंख्यक लड़कियों के खिलाफ है. कानून में कई खामियां है जिनका फायदा उठाकर जबरन धर्मांतरण करवाया जाता है और अपराधी साफ बच निकलते हैं. ज्यादातर मामले सिंध और पंजाब प्रांत से सामने आते हैं जहां हिंदू, सिख और ईसाई ज्यादा रहते हैं. इस खेल में धार्मिक संस्थाएं और सिस्टम जैसे साथ-साथ चलता है. गौरतलब है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के हालातों को देखते हुए मानवाधिकार समूह अक्सर चिंता जताते रहे हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने 2019 की एक रिपोर्ट में कहा था कि सिंध और पंजाब जैसी जगहों पर हिंदू और ईसाई धर्म के समुदायों ने जबरन धर्मांतरण के मामलों के लगातार मामले दर्ज कराते रहे हैं.
पाकिस्तान में होते हैं हिंदू मंदिरों पर हमले
2) अल्पसंख्यकों के धर्म स्थल तोड़ना- पाकिस्तान में मंदिर तोड़ने के मामले भी आते रहते हैं. इसी साल पंजाब प्रांत के रहीम यार खान में हिंदुओं के एक मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी. इस दौरान हमलावरों ने मंदिर परिसर में आग लगाने और मूर्तियों को अपवित्र करने के साथ-साथ आस-पास मौजूद हिंदुओं के घरों पर भी हमला कर दिया. जिसे लेकर भारत ने पाक उच्चायोग के प्रभारी को तलब करके कड़ा विरोध भी दर्ज किया था.
इससे पहले बीते साल अक्टूबर में भी सिंध प्रांत के एक मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी. इससे पहले सिंध मे माता रानी भटियानी मंदिर, गुरुद्वारा श्री जन्म स्थान, खैबर पख्तूनख्वा में कई मंदिरों और गुरुद्वारों पर हमले के मामले सामने आ चुके हैं. रावलपिंडी शहर में 100 साल पुराने एक हिंदू मंदिर पर 10 से15 लोगों ने उस वक्त हमला किया जब उसका पुनर्निर्माण का काम चल रहा था.
3) ईश निंदा- एक महिला स्कूल प्रिंसिपल को ईश निंदा करने पर मौत की सजा सुनाई गई थी. दरअसल साल 2013 में महिला ने पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम का अंतिम पैगंबर मानने से इनकार किया था. उसने खुद को इस्लाम का पैगंबर होने का दावा किया था. इसी बात पर एक मौलवी ने कोर्ट में केस दायर किया, जिसपर उसे मौत की सजा सुनाई गई. पाकिस्तान में धर्म से जुड़े अपराधों के लिए ये कानून बनाया गया है. कहते हैं कि पाकिस्तान की जेलों में सैंकड़ों लोग ईश निंदा के आरोप में सजा काट रहे हैं. सजा काटने वालों में भले कुछ मुस्लिम भी शामिल हों लेकिन पाकिस्तान में ईश निंदा कानून अल्संख्यकों को प्रताड़ित करने का एक और हथियार साबित हो रहा है.
आपसी लड़ाई में इस्लाम के अपमान के आरोप लगाए जाते हैं और फिर ऐसे मामलों में आरोपी की मानसिक स्थिति की दलील भी कोर्ट में खारिज हो जाती है. ऐसे आरोपियों को पाकिस्तान में वकील भी नहीं मिल पाता. क्योंकि ऐसे मामलों की पैरवी से वकील भी पल्ला झाड़ लेते हैं. वैसे विडंबना देखिये जो पाकिस्तान अपने धर्म और उससे जुड़े पैगंबर या पवित्र पुस्तकों का अपमान नहीं सहता और ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है, उसी पाकिस्तान में दूसरे धर्म के लोगों के पूजा स्थलों पर हमला होता है और सरकार से लेकर नुमाइंदे बस लकीर पीटते रहते हैं.
4) हिंसा, हत्या, अपहरण, प्रताड़ना- पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत बहुत खराब है. व्यक्तिगत दुश्मनी से लेकर पेशेवर या आर्थिक झगड़े हिंसा में तब्दील होते हैं जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है. अल्पसंख्यकों के घरों पर हमला करने से लेकर संपत्ति का अवैध अधिग्रहण जैसे कई मामले भी सामने आते रहते हैं. अगर पाकिस्तान जैसे देश में 3 से 4 फीसदी अल्पसंख्यक हों तो उनकी हालत का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. क्योंकि उनकी बदहाली की हकीकत को पाकिस्तान पहले तो बाहर नहीं आने देता और अगर ईश निंदा, जबरन धर्मांतरण, हत्या, हिंसा, अपहरण जैसा अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना से जुड़ा कोई मामला बाहर आ भी जाता है तो उसे झूठा करार दे दिया जाता है.
पाकिस्तान मतलब अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार का हनन
पाकिस्तान के आला अफसर से लेकर नेता तक बड़े-बड़े मंचों पर मानवाधिकार की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन उनकी सरपरस्ती में ही अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार ताक पर रखे जाते हैं. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमलों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न के कई मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं.
बीते दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने मानवाधिकारों पर अपनी 2020 की रिपोर्ट पेश की थी. जिसमें पाकिस्तान में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन पर चिंता जताई गई है. इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याएं और अपहरण भी शामिल है. अमेरिकी मानवाधिकार रिपोर्ट में पाकिस्तान में ईश निंदा कानून की आलोचना की गई है. साथ ही धार्मिक आजादी और लोगों के अधिकारों को कुचलने खरी-खरी सुनाई गई है.
पाकिस्तान में अपहरण, जबरन धर्मांतरण और अल्पसंख्यकों पर प्रताड़ना के खिलाफ प्रदर्शन
जनगणना के आंकड़ो पर भी उठे सवाल
बीते 74 सालों में पाकिस्तान में ये छठी बार हुई जनगणना के आंकड़े थे. इस साल मई में जारी किए गए 2017 जनगणना के आंकड़ों पर विवाद भी खड़ा हुआ था. अल्पसंख्यकों के खिलाफ पक्षपात के आरोप पाकिस्तान सरकार पर लगे थे, क्योंकि आंकड़ों में धार्मिक अल्पसंख्यों की आबादी में कमी देखने को मिली थी. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि अल्पसंख्यकों की आबादी को जानबूझकर कम दिखाया गया है ताकि सियासी मोर्चे या संसद में उनका प्रतिनिधित्व बेहतर तरीके से ना हो.
2017 से पहले साल 1998 में पाकिस्तान में जनगणना हुई थी. 1998 में पाकिस्तान की आबादी करीब 13 करोड़ थी. दोनों जनगणनाओं के आंकड़ों का अंतर बताता है कि इन 20 सालों में पाकिस्तान की आबादी में 7.5 करोड़ का इजाफा हुआ है. जबकि अल्पसंख्यकों की आबादी कम हुई है. 1998 में हिंदुओं की आबादी करीब 20 लाख थी जो 2017 की जनगणना में 35 लाख के करीब बताई गई है. पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के एटॉर्नी नील केशव ने भारतीय मीडिया में पाकिस्तान की हिंदू आबादी को लेकर बड़ा दावा करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी इससे अधिक है. वहीं ईसाई समुदाय की आबादी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि आबादी में ईसाईयों की हिस्सेदारी 5 लाख भी नहीं दिखाई गई है.
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