नई दिल्ली: उत्तराखंड की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रेखा आर्य के अधिकारियों और कर्मचारियों को शिवालयों में जलाभिषेक करने के लिए पत्र लिखे जाने को लेकर विवाद खड़ा होता दिख रहा है. उनके इस पत्र का ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनबाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (एआईएफएडब्ल्यूएच) ने विरोध करते हुए इसे भाजपा शासित राज्य सरकार द्वारा एकीकृत बाल विकास सेवाओं को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास बताया है. साथ ही संघ ने कहा है की बेटियों को असल में बचाना ही है तो उत्तराखंड सरकार फरवरी 2022 से लंबित मजदूरी और अनुपूरक पोषाहार के लिए बकाया राशि का भुगतान तत्काल जारी करे.
एआईएफएडब्ल्यूएच महासचिव ए आर संधू ने एक बयान में कहा कि यह भारत के संविधान और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने का एक चौंकाने वाला उल्लंघन है. उन्होंने यह भी कहा कि यह कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और महिलाओं और लड़कियों को जीवित रहने के लिए भोजन और स्वास्थ्य की बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के लिए पीसीपीएनडीटी अधिनियम को लागू करने के लिए राज्य की जिम्मेदारी की शर्मनाक वापसी है.
उन्होंने आगे कहा कि यह विडंबना ही है कि उत्तराखंड में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं के वेतन भुगतान व पूरक पोषाहार की राशि फरवरी 2022 से लंबित है. एआईएफएडब्ल्यूएच से संबद्ध उत्तराखंड आंगनबाड़ी सेविका सहायिका संघ के बकाया भुगतान की मांग को लेकर संघर्ष कर रहा है और हम सभी बकाया राशि के तत्काल भुगतान की मांग करते हैं. उन्होंने यहा भी कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका विभिन्न धर्मों और व्यक्तिगत मान्यताओं से ताल्लुक रखती हैं. इसमें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, आदिवासी और नास्तिक भी शामिल हैं जिनके अलग-अलग व्यक्तिगत विश्वास हैं. किसी भी सरकार या मंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वह उन्हें आधिकारिक कार्य के हिस्से के रूप में धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए कहे.