भोपाल। यूनेस्को ने 2023 के साल को ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया, लेकिन लहरी बाई ने मिलेट्स को बचाने का संघर्ष उस समय शुरु कर दिया था. जब इस श्री अनाज की ताकत दुनिया के सामने आई भी नहीं थी. दादी से किस्से कहानियां सुनते हैं बच्चे...बैगा जाति की लहरी बाई ने अपनी दादी से जीवन के बीज संजोना सीखा. जिसे पीएम मोदी ने श्री अन्न नाम दिया. उस मोटे अनाज यानि मिलेट्स के बीज जब खत्म होने लगे तो लहरी बाई ने अपने घर के दो कमरों में बीज बैंक तैयार कर लिया.
इस बीज बैंक में तैयार हुए बीज लहरी बाई आस पास के जिलों तक पहुंचाती है और किसानों को बताती हैं कि मोटा अनाज उगाना क्यों जरुरी है. ईटीवी भारत से बातचीत में लहरी बाई ने कहा कि अकेली लड़की हूं, ज्यादा रेंग नहीं सकूं. दुनिया भर में ये ताकतवर दाना पहुंचाना हो तो और नई लहरी बाई जरुरी है.
लहरी बाई की बीमारी से बीज बैंक तक की कहानी: बचपन में लहरी बाई अक्सर बीमार रहती थीं. उनकी दादी ने जान लिया था कि ज्यादा चावल खाने और कोदू, कुटकी जैसे मोटे अनाज से दूर रहने की वजह से उनकी शारीरिक क्षमता कमजोर है. दादी का नुसखा लहरी पर आजमा कर खत्म भी हो सकता था, लेकिन लहरी ने दादी के बीज मंत्र को बीज बैंक के जरिए बचा लिया. उसने धीरे धीरे खेती में खत्म हो रहे इस श्री अन्न को सहेजना शुरु किया. बीज तैयार किए. किसानो को वो बीज दिए. फिर बीज तैयार किए.
ईटीवी भारत से बातचीत में लहरी कहती हैं, ये अनाज धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे, तो हमने बीज बैंक बनाया. अब मैं आस पास के जिलों में जाकर ये बीज किसानों को देकर आती हूं. खास बात ये है कि इसके बदले में भी लहरी बाई केवल अनाज ही लेती हैं. एक बीज से बीज बैंक तक की पूरी कवायद लहरी बाई की अपनी मेहनत थी.