चंडीगढ़ :आज हमारे देश ने मिल्खा सिंह (Milkha singh) जैसे अनमोल रत्न को खो दिया है. पूरा देश इस कभी ना पूरी होने वाली क्षति से शोक में है. इससे मिल्खा सिंह के करीबियों पर क्या बीत रही है, इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते. मिल्खा सिंह के अंतिम दर्शन करने पहुंचे उनके दोस्त केदारनाथ शर्मा को तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उनका मिल्खा आज इस दुनिया में नहीं है.
मिल्खा सिंह और केदारनाथ शर्मा की दोस्ती साल 1948 से थी. ईटीवी भारत से केदारनाथ शर्मा ने बताया कि जब मिल्खा सिंह का परिवार आजादी के बाद पहली बार भारत आया तो वो हिमाचल के सोलन में आए थे. उन्हें याद है उस वक्त मिल्खा सिंह पतले-दुबले से थे. वहां उनकी दोस्ती हुई और अब तक बनी रही.
मिल्खा सिंह के दोस्त केदारनाथ शर्मा 'जब मिल्खा दौड़ते तो उन्हें मां की आवाज सुनाई देती'
केदारनाथ शर्मा ने बताया कि वो उनसे हर बात साझा करते थे. उन्होंने मिल्खा सिंह से जुड़ी ऐसी बात बताई, जिसे जानकर आपके भी राेंगटे खड़े जाएंगे. केदारनाथ शर्मा ने बताया कि बंटवारे में अपने माता-पिता की हत्या होना और अपने करीबियों को खोना मिल्खा सिंह के लिए असहनीय था.
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उन्हें याद है कि मिल्खा सिंह ने बताया था कि वह दौड़ते हैं, तो उन्हें कुछ भी नहीं दिखता. उन्हें ऐसी आवाजें आती हैं जैसे उनकी मां बंटवारे के वक्त चिल्ला रही थी कि भाग मिल्खा भाग. मिल्खा सिंह ने उन्हें कहा था कि मुझे दौड़ते वक्त आज भी वही आवाजें सुनाई देती हैं और मैं दौड़ने में पूरी जान लगा देता हूं.
'जमीन से जुड़े व्यक्ति थे मिल्खा'
केदारनाथ शर्मा कहते हैं कि मिल्खा सिंह हमेशा अपनी जड़ों को पकड़ कर रहना पसंद करते थे. वो देश के सबसे बड़े धावक रहे, उन्होंने बहुत से अंतरराष्ट्रीय इनाम भी जीते, इसके बावजूद वो बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. उन्हें देखकर कभी ऐसा लगता ही नहीं था कि वे इतने बड़े व्यक्ति हैं.
मिल्खा सिंह का निधन
बता दें कि मिल्खा सिंह को पिछले महीने कोरोना हुआ था. इसी हफ्ते बुधवार को उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी, जिसके बाद उन्हें कोविड वार्ड से जनरल आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था. फिर दोबारा गुरुवार की शाम को उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई. मिल्खा सिंह की हालत ज्यादा बिगड़ गई अस्पताल के डॉक्टर्स ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं सके. उनके परिवार के एक प्रवक्ता ने बताया कि उन्होंने रात 11:30 पर आखिरी सांस ली.