उत्तरकाशी:22 मार्च 2020 को भारत में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगा था. संक्रमण से बचने के लिए देश-दुनिया में लोगों को घरों में कैद होना पड़ा. साथ ही जो लोग देश और प्रदेश से बाहर थे, वह सब अपने घरों की और लौट आए, लेकिन उसके साथ वो अपना रोजगार भी छोड़ आए. इन घर लौटे प्रवासियों को रोजगार न मिलने पर मजबूरन जीविका के लिए मनरेगा में दिहाड़ी मजदूर का काम करना पड़ रहा है.
कोरोना की वजह से पहाड़ के कई लोगों को मैदानी इलाकों में रोजगार को छोड़कर घर की ओर लौटना पड़ा. लेकिन इस सब के बीच उत्तराखंड सरकार लौटे प्रवासियों को रोजगार देने के लिए तत्पर दिखाई दी. वहीं आज पहाड़ में कई युवा ऐसे हैं, जो कि विदेशों या प्रदेश के अन्य राज्यों के बड़े-बड़े होटलों में काम करने के बाद विदेश में नौकरी करने की सभी औपचारिकताओं को पूरा कर चुके थे. लेकिन देश-दुनिया में आए कोरोना ने इनके कदम गांव में ही रोक दिए.
ईटीवी भारत ने ऐसे ही कई युवाओं से बात की. सिरोर गांव के हरीश नेगी बताते हैं कि वह 2016 से मस्कट (ओमान) में होटल लाइन में नौकरी कर रहे थे. पिछले वर्ष कोरोनाकाल में बड़ी मुश्किल से वापस घर पहुंचे तो स्थिति थोड़ा सामान्य होने पर वापसी की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन पहाड़ों में कोई सशक्त रोजगार न होने के कारण अब उन्हें मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार की आजीविका को चलाना पड़ रहा है.
वहीं दूसरी और सिरोर गांव के ही अखिलेश भट्ट कहते हैं कि वह जयपुर के एक बड़े होटल में काम करते थे. साल 2020 में उन्होंने पौलैंड जाने के लिए अप्लाई किया था. जहां से उनका कॉल लेटर भी आया और वीजा के औपचारिकताएं पूरी हो चुकी थी. जैसे ही भट्ट विदेश जाने का ख्वाब सजा रहे थे, तब तक कोरोनाकाल ने सभी सपनों को चकनाचूर कर दिया और अब अखिलेश भट्ट भी मनरेगा के कार्यों से अपना रोजगार चला रहे हैं.