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मनरेगा ने कोविड के दौरान लाखों लोगों के लिए रक्षक की भूमिका निभाई: राहुल गांधी - कोविड में मनरेगा लाखों लोगों रक्षक भूमिका निभाई

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा है कि पीएम मोदी ने मनरेगा को गंभीरता नहीं समझा. उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो गई है. राहुल गांधी वायनाड में एक आदिवासी बहुल ग्राम पंचायत में मनरेगा कामगारों को संबोधित कर रहे थे.

MNREGA played savior lakhs of people covid
कोविड में मनरेगा लाखों लोगों रक्षक भूमिका निभाई

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Published : Jul 2, 2022, 7:43 PM IST

वायनाड (केरल): कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) ने कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों भारतीयों को बचाने में रक्षक की भूमिका निभाई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार द्वारा लागू की गई इस योजना द्वारा देश के असहाय लोगों को दी गई राहत और सुरक्षा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे.

मनरेगा को कांग्रेस नीत संप्रग सरकार की नाकामियों का एक 'जीता-जागता स्मारक' बताने को लेकर मोदी की आलोचना करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देने वाली इस योजना की गंभीरता को नहीं समझा और वह नहीं जानते हैं कि इसने (मनरेगा ने) देश के श्रम बाजार को कैसे परिवर्तित कर दिया और कैसे यह लाखों लोगों के लिए अंतिम सहारा बन गया.

वायनाड से सांसद राहुल ने कहा कि नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन से देश की अर्थव्यस्था खस्ताहाल हो गई है. ऐसे में यह योजना आम आदमी की आजीविका को बचाने के लिए अब कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. वह यहां अपने संसदीय क्षेत्र के एक आदिवासी बहुल ग्राम पंचायत नेनमेनी में मनरेगा कामगारों को संबोधित कर रहे थे. राहुल ने कहा, 'मैंने कोविड (महामारी) के दौरान देखा कि लाखों लोग बेरोजगार हो गए और मनरेगा ने उन्हें बचाया. बेशक, प्रधानमंत्री ने तब मनरेगा पर टिप्पणी नहीं की. और उन्होंने बाद में भी मनरेगा के बारे में कुछ नहीं कहा.'

उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है कि यह स्पष्ट हो चुका है कि जिस योजना को मोदी ने संप्रग की नाकामियों का जीता-जागता स्मारक बताया था, उसने असल में महामारी के दौरान भारत को बचाया. उन्होंने याद किया कि जब संप्रग सरकार यह योजना लेकर आई थी, तब नौकरशाहों और अन्य ने इसे धन की भारी बर्बादी करार देते हुए इसका काफी प्रतिरोध किया था. राहुल ने कहा कि लेकिन इस योजना का उद्देश्य गरिमा के साथ देश का निर्माण करना है, राष्ट्र के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अपने लोगों का उपयोग करना और श्रम की गरिमा सुनिश्चित करना है.

उन्होंने कहा, 'इस योजना को हमारे लोगों को बचाने के लिए लाया गया था और किसी तरह से यह धर्मार्थ कार्य नहीं था.' उन्होंने कहा कि वह संसद में मनरेगा के खिलाफ मोदी को बोलते और इसे संप्रग सरकार की नाकामियों का जीता-जागता स्मारक करार देते हुए सुनकर स्तब्ध हो गए थे. उन्होंने मनरेगा को समाधान का महज एक हिस्सा बताते हुए कहा कि देश की अर्थव्यस्था और रोजगार सृजन इस कार्यक्रम के इंजन हैं और यदि वे उपयुक्त तरीके से काम नहीं करेंगे तो मनरेगा अनुपयोगी हो जाएगा. राहुल ने कहा, 'समाज में सद्भावना की जरूरत है. ये कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनका देश सामना कर रहा है. हमें इसका समाधान करने के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए.'

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उन्होंने मनरेगा कामगारों को राष्ट्र निर्माता बताया और इनके कार्य को महत्व नहीं देने को लेकर मीडिया की आलोचना की. राहुल ने कहा कि मीडिया क्रिकेट और हॉलीवुड की बातें करता है, लेकिन वह साधारण कामगारों के अनुकरणीय कार्य को पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दे रहा है. उन्होंने केंद्र से मनरेगा कार्य दिवस को बढ़ा कर 200 दिन करने और इसके तहत काम करने वाले कामगारों का दैनिक पारिश्रमिक बढ़ा कर 400 रुपये करने तथा योजना का विस्तार धान की खेती जैसे क्षेत्रों में करने की मांग पर विचार करने का आग्रह भी किया.

(पीटीआई-भाषा)

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