वायनाड (केरल): कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) ने कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों भारतीयों को बचाने में रक्षक की भूमिका निभाई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार द्वारा लागू की गई इस योजना द्वारा देश के असहाय लोगों को दी गई राहत और सुरक्षा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे.
मनरेगा को कांग्रेस नीत संप्रग सरकार की नाकामियों का एक 'जीता-जागता स्मारक' बताने को लेकर मोदी की आलोचना करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देने वाली इस योजना की गंभीरता को नहीं समझा और वह नहीं जानते हैं कि इसने (मनरेगा ने) देश के श्रम बाजार को कैसे परिवर्तित कर दिया और कैसे यह लाखों लोगों के लिए अंतिम सहारा बन गया.
वायनाड से सांसद राहुल ने कहा कि नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन से देश की अर्थव्यस्था खस्ताहाल हो गई है. ऐसे में यह योजना आम आदमी की आजीविका को बचाने के लिए अब कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. वह यहां अपने संसदीय क्षेत्र के एक आदिवासी बहुल ग्राम पंचायत नेनमेनी में मनरेगा कामगारों को संबोधित कर रहे थे. राहुल ने कहा, 'मैंने कोविड (महामारी) के दौरान देखा कि लाखों लोग बेरोजगार हो गए और मनरेगा ने उन्हें बचाया. बेशक, प्रधानमंत्री ने तब मनरेगा पर टिप्पणी नहीं की. और उन्होंने बाद में भी मनरेगा के बारे में कुछ नहीं कहा.'
उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है कि यह स्पष्ट हो चुका है कि जिस योजना को मोदी ने संप्रग की नाकामियों का जीता-जागता स्मारक बताया था, उसने असल में महामारी के दौरान भारत को बचाया. उन्होंने याद किया कि जब संप्रग सरकार यह योजना लेकर आई थी, तब नौकरशाहों और अन्य ने इसे धन की भारी बर्बादी करार देते हुए इसका काफी प्रतिरोध किया था. राहुल ने कहा कि लेकिन इस योजना का उद्देश्य गरिमा के साथ देश का निर्माण करना है, राष्ट्र के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अपने लोगों का उपयोग करना और श्रम की गरिमा सुनिश्चित करना है.