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मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति घरों में ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र संबंधी कार्रवाई के हकदार : हाईकोर्ट

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Published : May 31, 2022, 2:03 PM IST

मद्रास हाई कोर्ट (Madras HC) ने कहा कि मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के दिव्यांगता प्रमाणपत्र संबंधी सभी कार्रवाई उसी जगह होनी चाहिए जहां वह रह रहे हैं. वह इस तरह की सुविधाओं के हकदार हैं (Mentally Disabled Persons Entitled To Have Assessment Done At Their Homes). पढ़ें पूरी खबर.

Madras HC
हाईकोर्ट

चेन्नई :मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों को दिव्यांगता प्रमाणपत्र के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ता है. मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है कि ऐसे व्यक्तियों की प्रमाणपत्र संबंधी कार्रवाई घर पर ही होनी चाहिए. मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 के तहत वह दिव्यांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने आवास पर मूल्यांकन कराने के हकदार हैं.

न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की एकल पीठ ने एक मानसिक अस्पताल में चिकित्सकीय रूप से दिव्यांग व्यक्ति को चिकित्सा मूल्यांकन के उद्देश्य से लाए जाने को लेकर कठिनाइयों पर ध्यान देने के बाद यह निर्देश जारी किया. कोर्ट ने कहा कि 'मूल्यांकन प्रक्रिया यथासंभव सरल होनी चाहिए, इससे संबंधित व्यक्ति को कोई कठिनाई नहीं होना चाहिए. ऐसे व्यक्तियों को सरकारी अस्पताल जैसे भीड़भाड़ वाले स्थान पर लाना उनके लिए काफी तनाव और चिंता का कारण है. कोई नहीं जानता कि घबराहट में क्या स्थिति पैदा हो जाए. इसलिए कोर्ट का ये मानना है कि मानसिक मंदता या मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति उस स्थान पर मूल्यांकन करने के हकदार हैं जहां वे रहते हैं.'

कोर्ट ने यह भी कहा कि 'अधिकारी इस बात पर जोर नहीं दें कि मानसिक मंदता / मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को प्रमाणित करने वाले संस्थान के परिसर में शारीरिक रूप से उपस्थित होना चाहिए.' न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 58 के तहत बिना किसी परेशानी या कठिनाई के दिव्यांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करना उनका अधिकार है. प्रमाण पत्र न होने पर उनको कुछ मौलिक अधिकारों और सुविधाओं तक पहुंच से वंचित होना पड़ सकता है, जो उनके लिए बहुत ही जरूरी हैं.

ये है मामला :कोर्ट ने ये आदेश उस याचिकाकर्ता की अपील पर दिया, जिनका 61 वर्षीय बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ है. वह खुद 1992 से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं. याचिकाकर्ता चाहते थे कि पेंशन बुक में एंट्री हो जाए ताकि उनकी मौत के बाद पेंशन का लाभ बेटे को मिल सके. इस प्रक्रिया के लिए बेटे का दिव्यांग प्रमाणपत्र होना जरूरी था. याचिकाकर्ता की बेटी ने प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए किलपौक में मानसिक स्वास्थ्य केंद्र संस्थान से संपर्क किया. संस्थान ने मद्रास मेडिकल कॉलेज की ओर से फरवरी 1992 में जारी प्रमाणपत्र की अनदेखी कर बेटे की शारीरिक उपस्थिति पर जोर दिया. बेटे को जबरदस्ती उस संस्थान में ले जाया गया जहां उसकी जांच की गई. हालांकि संस्थान ने फिर से कुछ और परीक्षण करने के लिए उसकी शारीरिक उपस्थिति पर जोर दिया. जो कुछ हुआ उससे बेटा सदमे में है. याचिकाकर्ता ने प्रमाणपत्र जारी करने संबंधी निर्देश देने की अपील की थी.

अदालत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 41 के तहत, राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमा के भीतर, बीमारी और अक्षमता के मामलों में और अन्य अवांछित मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को हासिल करने के लिए प्रभावी प्रावधान करेगा. अदालत ने यह भी कहा कि जिस राज्य में सरकार पहले ही 'इल्म थेदी कल्वी' योजना शुरू कर चुकी है, वही मॉडल मौजूदा मामलों में लागू किया जा सकता है.

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