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अटल जी का उत्तराखंड से था विशेष नाता, इस स्कूटर से जुड़ी हैं यादें

आज भारतीय राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है. अटल जी का उत्तराखंड से विशेष अनुराग था. यहां की शांत वादियां उन्हें लुभाती थीं. अटल जी को एक राजनेता के रूप में भी उत्तराखंड के लोग बहुत पसंद करते थे. अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में उत्तराखंड की स्थापना कराकर वो राज्यवासियों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ गए. उनके जन्मदिन पर ईटीवी भारत की का विशेष लेख.

अटल जी का उत्तराखंड से था विशेष नाता
अटल जी का उत्तराखंड से था विशेष नाता

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Published : Dec 25, 2020, 8:55 AM IST

देहरादून : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा था. दशकों की लंबी मांग के बाद अगर नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के मानचित्र पर अलग राज्य के रूप में वजूद में आ पाया तो इसमें सबसे निर्णायक भूमिका अटल जी की थी. राज्य गठन के अलावा प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक पैकेज और विशेष राज्य के दर्जे से भी नवाजा था.

अटल जी को उत्तराखंड बहुत पसंद था.

अटल जी ने राज्य आंदोलनकारियों को दिया था आश्वासन
उत्तराखंड राज्य के निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला था. 42 लोग अलग राज्य के लिए शहीद हो चुके थे. 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान अटल जी ने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था. वाजपेयी ने इस भरोसे को कायम भी रखा और उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में ही उत्तराखंड बना.

उत्तराखंड में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी.

2003 में उत्तराखंड के दिया था विशेष औद्योगिक पैकेज
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो नैनीताल आए थे. उस समय राज्य की पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में थी. मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के अनुरोध पर अटल जी ने उत्तराखंड के लिए दस साल के विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा की थी. यह उत्तराखंड के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने नए-नवेले राज्य को खुद के पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया था.

अटल जी के साथ बीजेपी नेता भगत सिंह कोश्यारी.

दून में स्कूटर पर घूमते थे अटल जी
उत्तराखंड को लेकर अटल जी के लगाव का आलम ये था कि वो अक्सर ही यहां आया करते थे. उन्हें पहाड़ों की रानी मसूरी बहुत आकर्षित करती थी. जब भी अवसर मिलता, वह मसूरी जाते और पहाड़ी की शांत वादियों में आत्ममंथन कर राजनीति के आगे के समर के लिए खुद को तैयार करते.

अटल जी का उत्तराखंड से था गहरा नाता.

देहरादून में उनके गहरे पारिवारिक मित्र नरेंद्र स्वरूप मित्तल रहते थे. जब भी वाजपेयी जी देहरादून आते, उनके साथ काफी वक्त गुजारते थे. स्व. नरेंद्र स्वरूप मित्तल के पुत्र बीजेपी नेता पुनीत मित्तल ने उनके साथ बिताए दिनों को याद करते हुए बताया कि वे बचपन से ही अटल जी को घर आते हुए देखते रहे हैं. अटल जी जब भी देहरादून आते थे, उन्हीं के घर रुकते थे. उनके पापा के साथ स्कूटर पर घूमते थे.

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मित्तल परिवार के स्कूटर से जुड़ी 'अटल' यादें
वहीं अटल जी को याद करते हुए बीजेपी नेता पुनीत मित्तल ने उनके घर में मौजूद एक पुराने स्कूटर के बारे में भी बताया जिससे आज भी अटल बिहारी वाजपेयी की यादें जुड़ी हुई हैं. बीजेपी नेता पुनीत मित्तल बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सभी पार्टी कार्यकर्ताओं से बेहद लगाव रखते थे. यही कारण है कि एक बार जब वह देहरादून पहुंचे तो उन्होंने पार्टी के एक कार्यकर्ता के बारे में पूछा.

लोहाघाट की यादों में अटल जी.

ऐसे में जब उनके पिताजी नरेंद्र स्वरूप मित्तल ने बताया की उस पार्टी कार्यकर्ता की तबीयत खराब है तो अटल जी तुरंत उनके पिताजी के स्कूटर में बैठकर उस कार्यकर्ता के घर उनका हालचाल जानने पहुंच गए. वह स्कूटर आज भी उनके घर में मौजूद है जिसे देखकर वह अक्सर अटल जी के सरल स्वभाव को याद करते हैं.

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झील संरक्षण के लिए दिया था 200 करोड़ का पैकेज
भारतीय राजनीति के अजातशत्रु व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले ही इस दुनियां में नहीं रहे, मगर नैनीताल वासियों के दिलो-दिमाग में वो अमर हैं. 2003 में प्रधानमंत्री रहते जब वो नैनीताल आए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के आग्रह पर उन्होंने ना केवल झील संरक्षण के लिए दो सौ करोड़ की घोषणा की थी बल्कि इस बजट की बदौलत ही नैनी झील समेत आसपास की झीलें प्रदूषण मुक्त हो सकी थी. इससे भी बड़ी बात ये थी कि अटल जी ने उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक पैकेज और विशेष राज्य के दर्जे से भी नवाजा था.

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अटल जी की कविता

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,

जीता जागता राष्ट्रपुरुष है.

हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,

पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं.

पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं.

कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है.

यह चंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है,

यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है.

इसका कंकर-कंकर शंकर है,

इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है.

हम जिएंगे तो इसके लिए

मरेंगे तो इसके लिए.

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