नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय को मीडिया ब्रीफिंग में खुलासे की प्रकृति के संबंध में तीन महीने में एक व्यापक नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया है. साथ ही सभी पुलिस महानिदेशक (DGP) को अपने सुझाव गृह मंत्रालय को बताने का भी निर्देश दिया है. इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है.
पीठ ने पुलिस अधिकारियों की संवेदनशीलता पर जोर देने के साथ ही कहा कि जांच के विवरण किस स्तर पर सामने आ सकते हैं, इसकी जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पुलिस द्वारा किया गया खुलासा वस्तुनिष्ठ प्रकृति का होना चाहिए न कि व्यक्तिपरक प्रकृति का जिसका आरोपी के अपराध पर असर हो. पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल एक अहम मुद्दा है क्योंकि इसमें पीड़ितों के हित के अलावा मामले में एकक्ष किए गए सबूत शामिल होते हैं.
वहीं आरोपी के संबंध में भी निर्दोषता का अनुमान लगाया जाता है कि जब तक कि वह दोषी साबित नहीं हो जाए, मीडिया रिपोर्ट से आरोपी की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग भी सार्वजनिक संदेह को जन्म देती है और कुछ मामलों में पीड़िता नाबालिग हो सकती है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि पीड़िता की गोपनीयता प्रभावित नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों और पीड़ितों के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता है.