नई दिल्ली : लक्षद्वीप प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसने स्कूलों में मध्याह्न भोजन के मेनू से मांस को हटाने और इसके स्थान पर फल और सूखे मेवे शामिल करने का फैसला इसलिए किया क्योंकि द्वीपवासी नियमित तौर पर अपने घरों में मांस का सेवन करते हैं लेकिन फल और सूखे मेवे नहीं खाते हैं.
प्रशासन की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि 'लक्षद्वीप में मांस और चिकन आम तौर पर सभी घरों में नियमित भोजन का हिस्सा होते हैं. दूसरी ओर द्वीपवासियों के बीच फलों और सूखे मेवों की खपत बहुत कम है. इस प्रकार मध्याह्न भोजन योजना के मेन्यू से मांस और चिकन को छोड़कर फल और सूखे मेवे पूरी तरह से इस योजना के उद्देश्य के अनुरूप हैं.'
प्रशासन का हलफनामा शीर्ष अदालत के उस आदेश के जवाब में आया है जिसमें मध्याह्न भोजन से मांस को हटाने के फैसले को चुनौती देने वाले एक निवासी की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा गया था. कोर्ट ने आदेश दिया था कि अगले आदेश तक स्कूली बच्चों को मांस परोसा जाना जारी रखा जाए. लक्षद्वीप प्रशासन ने कहा है कि मानसून में मांस प्राप्त करना मुश्किल होता है और भंडारण की उचित सुविधा भी नहीं होती है, जिससे छात्रों को बदले हुए मेनू के साथ समझाने में आसानी होती है.
डेयरी फार्मों को बंद करने की बात उठाए जाने पर प्रशासन ने कहा है कि फार्म केवल 20,000 की कुल आबादी में से 300-400 लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे थे, जिससे सरकारी खजाने को लगभग 96 लाख रुपये का नुकसान हुआ.
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