नई दिल्ली : विदेश मामलों की संसदीय समिति ने सरकार को म्यामांर के मुद्दे पर सलाह दी है. समिति ने दोनों देशों के बीच सुरक्षा मुद्दों के बीच समय-समय पर म्यांमार सरकार बातचीत करने की सिफारिश की है. खासतौर से समिति ने सरकार को अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठाने की सिफारिश की है. समिति ने भारत की पड़ोस प्रथम नीति पर अपनी 22वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की, जिसमें सरकार से यह भी अनुरोध किया गया है कि म्यांमार में विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन को उसके राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के कारण प्रभावित नहीं होना चाहिए.
समिति ने केंद्र से ऐसी परियोजनाओं को राजनीतिक उथल-पुथल से बचाने की दिशा में लगातार प्रयास करने और चल रही परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करने का भी आग्रह किया. 17वीं लोकसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट में, समिति ने कहा कि म्यांमार भारत की पड़ोस प्रथम नीति और एक्ट ईस्ट नीति दोनों के लिए एक प्रमुख भागीदार है. इसमें बताया गया है कि म्यांमार के साथ की जा रही नई पहलों की गति 2020 से धीमी हो गई है, पहले COVID-19 महामारी के कारण और फिर फरवरी 2021 में उस देश के सैन्य अधिग्रहण के बाद उत्पन्न राजनीतिक संकट के कारण.
हालांकि, भारत ने म्यांमार के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखा है और जब भी संभव हो पहलों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार इंडो-म्यांमार औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता भी प्रदान कर रही है, जिसमें दो केंद्र पाक्कोकू और मिंगयान में स्थापित किए गए हैं, और दो अन्य मोनिवा और थाटन में स्थापित किए जा रहे हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 में, भारत ने तमू में एक आधुनिक एकीकृत चेक पोस्ट की स्थापना के लिए एक परियोजना समझौते पर हस्ताक्षर किए. लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत 24 परियोजनाओं में से 21 परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं. समिति ने आगे कहा कि क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट परियोजना और भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग की प्रगति के लिए एक चुनौती रही है, जिससे सुझाव मिलता है कि देश में भारतीय विकास परियोजनाओं को राजनीतिक उथल-पुथल से प्रभावित नहीं होना चाहिए.