दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

मसालों के 'शहंशाह' धर्मपाल का चंडीगढ़ से था खास रिश्ता - MDH Spice brand

सफलता की मिसाल कायम करने वाले मसाला किंग अब हमारे बीच नहीं रहे. उनका तीन दिसंबर को 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. विभाजन के समय वह भारत आ गए थे और दिल्ली में रहने लगे थे. महाशय धर्मपाल का चंडीगढ़ से भी खास रिश्ता रहा है. उनके खास दोस्त रवि प्रकाश बंसल से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.

mahashay dharmpal
फाइल फोटो

By

Published : Dec 3, 2020, 9:02 PM IST

नई दिल्ली/चंडीगढ़ :मसाला ब्रांड एमडीएच के टेलीविजन विज्ञापनों के जरिए घर-घर में अपनी पहचान बनाने वाले 'एमडीएच के दादाजी' के नाम से मशहूर महाशय धर्मपाल गुलाटी ने तांगा बेचकर दिल्ली के करोल बाग से अपने मसाला कारोबार की शुरुआत की. वह लगातार आगे बढ़ते रहे और 94 वर्ष की उम्र में देश के एफएमसीजी क्षेत्र में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ बने.

सफलता की मिसाल कायम करने वाले मसाला किंग अब हमारे बीच नहीं रहे. उनका बृहस्पतिवार (3 दिसंबर 2020) को 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.

चंडीगढ़ से खास नाता
महाशय धर्मपाल का मसालों का कारोबार, तो दुनियाभर में फैला है, लेकिन चंडीगढ़ से उनका खास रिश्ता रहा है.

एमडीएच मसालों की वजह से ही चंडीगढ़ के रवि प्रकाश और महाशय धर्मपाल के बीच दोस्ती हुई थी. ये दोस्ती साल 1975 में हुई जब महाशय धर्मपाल मसालों के लिए चंडीगढ़ में डिस्ट्रीब्यूटर खोज रहे थे. तब से लेकर अब तक ये दोस्ती चली आ रही थी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

रवि प्रकाश बंसल ने महाशय धर्मपाल को याद करते हुए बताया कि वो कारोबार की दुनिया की एक चमकती हुई शख्सियत थे. उन्होंने अपने कारोबार को ईमानदारी और मेहनत के साथ आगे बढ़ाया. वो खुद भी यही कहते थे की अगर कोई ईमानदारी के साथ मेहनत करता है, तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता.

'महाशय धर्मपाल मेरे घर पर रुकते थे'
रवि प्रकाश ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि वो पंजाब की मंडियों में मसालों को बेचने के लिए अक्सर आया करते थे. उनकी महाशय धर्मपाल से मुलाकात हुई और तब से उनकी दोस्ती हो गई. इसके बाद जब भी धर्मपाल चंडीगढ़ आते, तो उनके घर पर ही रुकते थे.

'पहले मेहंदी बेची और अब दुनियाभर में मसाले'
रवि प्रकाश ने बताया कि महाशय धर्मपाल ने जिंदगी में कई दुख देखे. जैसे कम उम्र में उनकी पत्नी का देहांत हो गया. इसके बाद उनके जवान बेटे की मौत हो गई, लेकिन वो इन दुखों से हारे नहीं, बल्कि लगातार आगे बढ़ते रहे. उन्होंने गरीबी के दिन भी देखें जब वो पाकिस्तान के सियालकोट में रहते थे. तब वहां मेहंदी बेचने का काम करते रहे, लेकिन बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली आ गया. यहां पर उनके पिता जलजीरा बेचते थे. इसके बाद महाशय धर्मपाल ने मसाले बेचने का काम शुरू किया और दुनियाभर में अपने कारोबार को फैला लिया.

'उनका जीवन सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है'
उन्होंने कहा ऐसे इंसान धरती पर कम ही आते हैं. जहां एक तरफ से अपने कारोबार को बुलंदियों पर पहुंचा रहे थे. वहीं दूसरी ओर मानवता की सेवा में भी आगे रहते थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में गरीब लोगों के लिए बहुत दान किया, अस्पताल बनवाए, गौशालाएं बनवाई. दिल्ली में माता चानन देवी नाम से एक बहुत बड़ा अस्पताल भी बनवाया. उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है.

विभाजन के बाद आए भारत
मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में 27 मार्च 1923 को हुआ था और विभाजन के बाद वह भारत आ गए. उनका परिवार विभाजन के दौरान अपना सब कुछ छोड़कर दिल्ली में रहने आ गया.

उनके पिता की सियालकोट में मसालों की दुकान थी, जिसका नाम 'महाशियां दी हट्टी' (एमडीएच) था, लेकिन दुकान को 'देगी मिर्च वाले' के नाम से जाना जाता था.

गुलाटी को कक्षा पांच के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने लकड़ी का काम सीखा, साबुन फैक्ट्री, कपड़े की फैक्ट्री और चावन मिल में काम किया.

एमडीएच की वेबसाइट पर उनकी जीवनी में लिखा है कि विभाजन के बाद वह 1,500 रुपये के साथ सितंबर 1947 में दिल्ली पहुंचे. उन्होंने 650 रुपये में एक तांगा खरीदा और कुछ दिनों के लिए इसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तक और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक चलाया.

उन्होंने अक्टूबर 1948 में करोल बाग के अजमल खान रोड में एक छोटी सी दुकान खोलकर अपने पुश्तैनी कारोबार को फिर से शुरू करने के लिए तांगा बेच दिया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

1919 में हुई थी एमडीएच की स्थापना

गुलाटी के पिता महाशय चुन्नी लाल गुलाटी ने 1919 में एमडीएच मसाले की स्थापना की थी और धर्मपाल ने इसे 1,500 करोड़ रुपये के साम्राज्य में बदल दिया.

कंपनी की आधिकारिक तौर पर स्थापना 1959 में हुई, जब गुलाटी ने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एक विनिर्माण इकाई स्थापित की.

90 प्रतिशत संपत्ति होगी दान
एमडीएच मसाले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किए जाते हैं, जिनमें ब्रिटेन, यूरोप, यूरोपीय संघ और कनाडा शामिल हैं. वर्ष 2017 में 21 करोड़ रुपये वेतन पाने वाले गुलाटी ने कहा कि वह अपने महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से अपनी लगभग 90 प्रतिशत संपत्ति दान करेंगे.

ट्रस्ट दिल्ली में एक 250 बिस्तर वाले अस्पताल का संचालन करता है, जिसमें झुग्गी-झोपड़ी के लोगों के इलाज की सुविधा के साथ ही चार विद्यालयों के लिए एक मोबाइल अस्पताल भी है. गुलाटी ने 20 से अधिक स्कूलों की स्थापना की.

2019 में पद्म भूषण से सम्मानित
2019 में देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी.

ये भी पढे़ं-मसालों के शहंशाह महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन

ABOUT THE AUTHOR

...view details