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श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक मामले में कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक और जन्मभूमि परिसर से अतिक्रमण हटाने के मामले में दायर याचिका पर आज मथुरा जिला न्यायालय में सुनवाई हुई. 25 सितंबर को कृष्ण भक्त रंजना अग्निहोत्री की तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. आज शाम तक अदालत इस मामले में अपना फैसला सुना सकती है.

krishna
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Published : Jan 18, 2021, 4:41 PM IST

मथुरा : श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक और जन्मभूमि परिसर से अतिक्रमण हटाने के लिए दायर याचिका पर आज मथुरा जिला न्यायालय में आज सुनवाई हुई. इस दौरान वादी और प्रतिवादी पक्ष में एक घंटे बहस हुई. जिसमें शाही ईदगाह कमेटी के अधिवक्ता की आपत्ति के बाद कोर्ट ने अपने फैसले को सुरक्षित रखा. देर शाम तक अदालत इस मामले में अपना फैसला सुना सकती है. 25 सितंबर को कृष्ण भक्त रंजना अग्निहोत्री ने जन्मभूमि परिसर के मालिकाना हक और परिसर को अतिक्रमण मुक्त बनाने की मांग को लेकर दायर की थी. जिस पर कोर्ट में आज सुनवाई हुई.


श्रीकृष्ण जन्म भूमि का मालिकाना हक
श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर 13.37 एकड़ में बना हुआ है, इसमें 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि, लीला मंच, भागवत भवन और 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है. अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री सहित पांच अधिवक्ताओं ने 25 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्मस्थान के मालिकाना हक और परिसर को मस्जिद मुक्त बनाने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की थी.

कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला.
जन्मभूमि मामले में चार प्रतिवादी पक्षश्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान, शाही ईदगाह कमेटी, सुन्नी वक्फ बोर्ड और श्रीकृष्ण सेवा ट्रस्ट को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया है. प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने जिला न्यायालय कोर्ट में अपना-अपना वकालतनामा दाखिल कर चुके हैं.क्या है मांग12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसाइटी द्वारा किया गया. इसके बाद 20 जुलाई 1973 को जमीन डिक्री की गई. इस डिक्री को रद्द करने की मांग को लेकर सीनियर डिवीजन सिविल जज की कोर्ट में याचिका दायर की गई है. जिस पर आज सुनवाई हुई.शाही ईदगाह कमेटी ने की केस को खारिज करने की मांगजिला न्यायालय कोर्ट में शाही ईदगाह कमेटी अधिवक्ता तनवीर अहमद ने जन्मभूमि मामले को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी और कहा गया लोअर कोर्ट ने जन्मभूमि का मामला पहले ही खारिज कर दिया था, तो अपर कोर्ट में सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है. इसलिए यह मामला खारिज किया जाए.

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