हैदराबाद : कैंसर के इलाज के दौरान सीरियस साइड इफेक्ट होते हैं, जिसका असर पूरी जिंदगी तक बना रहता है. साइड इफेक्ट इसलिए होता है, क्योंकि कीमोथेरेपी ट्यूमर के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं पर भी हमला करती है. कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने और उन पर हमला करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने वाली इम्यूनोथेरेपी में साइड इफेक्ट का खतरा बना रहता है.
दुनिया भर के वैज्ञानिक कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी से होने वाले साइड इफेक्ट को कम करने की संभावना तलाश रहे हैं. अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स ने एक तकनीक ढूंढी है, जो कैंसर की दवा को मास्क्ड करती है. मास्क्ड तकनीक को इस तरह डिजाइन किया गया है, जिसमें दवा सिर्फ शरीर में मौजूद कैंसर के कोशिकाओं को टारगेट करती है.
मानव शरीर में जन्म के साथ ही इम्यून सिस्टम मौजूद रहता है. इस सिस्टम में मौजूद साइटोकिन्स नामक प्रोटीन बीमारियों के खिलाफ एक्टिव रहता है. जब कैंसर कोशिकाओं पर हमला करता है तो साइटोकिन्स टी-सेल्स को एक्टिव कर देता है. साइंटिस्टों का मानना है कि साइटोकिन्स प्रोटीन कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो सकता है. साइटोकिन्स प्रोटीन ट्यूमर को खत्म करने के लिए इम्यून सिस्टम को ट्रेनिंग दे सकता है. जानकारी के अनुसार साइटोकाइन इंटरल्यूकिन (IL-12) को 30 साल पहले खोजा गया था, मगर कैंसर के इलाज के लिए एफडीए ने इसकी अनुमति नहीं दी. तब यह आशंका जताई गई कि यह लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है. IL12 बताता है कि इम्यून सेल अणुओं का एक द्रव्यमान उत्पन्न करती हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं. साइंटिस्ट लंबे समय से इस पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या हेल्दी टिशूज को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसर सेल्स से लड़ने के लिए IL12 को फिर से तैयार किया जा सकता है.
सुरक्षित संस्करण के लिए मास्किंग : कैंसर सेल्स और हेल्दी सेल्स के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है. कैंसर सेल्स बहुत तेजी से बढ़ती हैं. कैंसल सेल्स कुछ एंजाइम पैदा करती हैं. ये एंजाइम आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं में कैंसर सेल्स को प्रवेश करने में मदद करते हैं. इस तरह वे धीरे-धीरे पूरे शरीर पर कब्जा कर लेते हैं. दूसरी ओर, स्वस्थ कोशिकाएं बहुत धीमी गति से बढ़ती हैं और इनमें से एंजाइम का बहुत कम प्रोडक्शन होता है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने IL12 का एक सेफ वर्जन डिवेलप करने के लिए कैंसर सेल्स और हेल्दी सेल्स के एंजाइम बनाने के तौर-तरीकों पर काम किया है.
आमतौर पर, IL12 प्रोटीन खुद को इम्यून सेल्स से बांध लेता है और फिर उन्हें एक्टिव करता है. वैज्ञानिकों इस रिसेप्टर बाइंडिंग साइट को कैप से ढंक देते हैं. ट्यूमर सेल्स के करीब आने और संबंधित एंजाइमों का पता लगाने के बाद ही कैप को हटाया जाता है. इससे IL12 प्रोटीन एक्टिव होते हैं और ट्यूमर पर हमला करने के लिए पास की टी-कोशिकाओं को उत्तेजित करते हैं.मास्क्ड IL-12 साइटोकिन्स का प्रयोग स्तन कैंसर के रोगियों से एकत्र किए गए ट्यूमर और हेल्दी टिश्यूज पर किया गया था. तब परीक्षण में यह सामने आया कि ट्यूमर सेल्स मास्क को हटा सकता हैं. जब चूहों में परीक्षण किया गया, तो यह पाया गया कि मास्क्ड IL-12 ने जानवरों के लीवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. फिर साइंटिस्ट इस नतीजे पर पहुंचे कि मास्क्ड IL-12 प्रोटीन स्वस्थ अंगों पर आक्रमण किए बिना ट्यूमर को टारगेट कर सकते हैं और एक मजबूत इम्यून सिस्टम को गति प्रदान कर सकते हैं.
स्तन कैंसर के जांच के मॉडल से पता चला है कि मास्क्ड कैंसर ड्रग से उपचार 90 प्रतिशत मामलों को ठीक कर सकता है जबकि आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली इम्यूनोथेरेपी सिर्फ 10 प्रतिशत मामलों का इलाज करती है. इम्यूनोथेरेपी को चेकपॉइंट इनहिबिटर कहा जाता है. कोलन कैंसर मॉडल में मास्क्ड IL-2 का सक्सेस रेट 100 फीसदी है. अब साइंटिस्ट क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी कर रहे है, जहां वे कैंसर रोगियों में मास्क्ड IL-2 के प्रभावों की स्टडी करेंगे.
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