हैदराबाद : शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में ही मां भारती की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उनके इस जज्बे को देखकर देश के युवाओं को भी देश की आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा मिली. आज भी युवा उनके आदर्श और हिम्मत से सीख लेते हैं. आज भी घर-घर में भगत सिंह की देशभक्ति के किस्से सुनाए जाते हैं. इस दिन (23 मार्च) भगत सिंह के साथ सुखदेव और शिवराम राजगुरु ने भी भारत की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया. इन तीनों लोगों की शहादत को याद करने के लिए हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस (Shaheed Diwas) मनाया जाता है. भगत सिंह के देश के प्रति प्रेम के जज्बे को देखकर देश के युवाओं को भी देश की आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा मिली. भगत सिंह ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें देखते हुए कई लोगों ने क्रांतिकारी मार्ग को अपनाया.
दूसरी तरफ, पीएम मोदी ने शहीद दिवस पर देश के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने ट्वीट किया....
शहीद दिवस पर भारत माता के अमर सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन. मातृभूमि के लिए मर मिटने का उनका जज्बा देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। जय हिंद!
शहीद दिवस क्यों मनाते हैं?
23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था. बेहद कम उम्र में इन वीरों ने लोगों के कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी और इसी उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. कई युवा भारतीयों के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान भी, उनके बलिदान ने कई लोगों को आगे आने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया. यही कारण है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाता है.
बलिदान के पीछे की कहानी
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1970 में पंजाब के बंगा गांव में हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में पले बढ़े और छोटी आयु में उन्हें फांसी दे दी गई. राजगुरु का जन्म 1908 में पुणे में हुआ था. वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में भी शामिल हुए थे. सुखदेव 15 मई 1907 में हुआ था. उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में क्रांतिकारी सभाएं की और लोगों के दिलों में जोश पैदा किया. लाला लाजपत राय की हत्या के बाद कारण भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और कुछ अन्य लोगों ने आजादी के लिए संग्राम का मोर्चा संभाल लिया था.
अंग्रेजी शासन के हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे. जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगा रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया. हत्या के आरोप में 1931 में उन्हें 23 मार्च को लाहौर जेल में तीनों को फांसी दे दी गई. देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले ये वीर सूपत आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं....