ग्वालियर : भारत को आजादी दिलाने में कई लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी. इन महानायकों के बलिदान के कारण हिन्दुस्तान स्वतंत्र हो पाया था. आजादी की लड़ाई में महानायकों की अपनी विशेष भूमिका थी. मध्य प्रदेश के ऐसे ही एक महानायक अमर शहीद अमरचंद बांठिया थे, जिन्होंने अपना जीवन मातृभूमि के नाम समर्पित कर दिया था. भारत माता के कई वीरों का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है, लेकिन अमरचंद बांठिया भारत माता के ऐसे सपूत थे, जिनके बारे में इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं लिखा गया.
सिंधिया राजवंश के खजांची अमरचंद बांठिया का जन्म वहीं हुआ था, जहां महाराणा प्रताप के लिए अपनी धन-दौलत दान करने वाले भामाशाह जन्मे थे. वीर प्रसूता राजस्थान की धरती में शहीद अमरचंद्र बांठिया का जन्म 1793 में बीकानेर में हुआ था. बचपन से ही उन्होंने मन में ठान रखा था कि देश की आन-बान और शान के लिए कुछ कर गुजरना है. शहीद अमरचंद के पिता का पुश्तैनी कारोबार था. लेकिन घाटे के कारण उनके पिता को परिवार सहित ग्वालियर जाना पड़ा. ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा ने बांठिया खानदान को शरण दी. उन्हीं की सलाह पर बांठिया परिवार ने ग्वालियर में फिर से कारोबार जमाना शुरू किया.
बांठिया परिवार की मेहनत और ईमानदारी के चर्चे होने लगे. आर्थिक प्रबंधन में महारथ के चलते जयाजीराव सिंधिया ने अमरचंद बांठिया को रियासत का खजांची बना दिया था. किसी भी व्यापारी के लिए राजकोष का कोषाध्यक्ष बनाया जाना बड़ी बात थी. उस समय ग्वालियर के गंगाजली खजाने की जानकारी कुछ खास लोगों तक ही सीमित रहती थी. अब उसी खजाने की जिम्मेदारी अमरचंद बांठिया पर थी. बांठिया परिवार ग्वालियर में अपना नाम कमा रहा था. अमरचंद्र बांठिया की सादगी, सरलता और काम के प्रति जिम्मेदारी के सभी कायल थे. ये वो वक्त था, जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का माहौल जोर पकड़ने लगा था. छोटी-छोटी जगहों पर जनता और कुछ जागीरदार अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.
सन 1857 में आजादी की जंग तेज हो रही थी. अमरचंद भी आजादी के परवानों के किस्से इधर-उधर से सुना करते थे. कई बार उनके साथी उन्हें आजादी की लड़ाई में हथियार लेकर हिस्सा लेने के लिए उकसाते थे. तब वह कहते कि भाई हथियार तो मैं चला नहीं सकता, लेकिन वक्त आने पर कुछ ऐसा कर जाऊंगा कि क्रांति के पुजारी याद करेंगे.