पटना: 23 जून की बैठक में मोदी बनाम ऑल की तस्वीर दिखेगी, लेकिन कई ऐसे सवाल हैं जिनका सामना विपक्षी एकता की मुहिम को करना होगा. विपक्षी एकता का चेहरा कौन?, क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? क्या TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे? वहीं सीट शेयरिंग सबसे बड़ी चुनौती के बन सकती है. उससे भी बड़ी बात क्या कांग्रेस दूसरों को जगह देगी?
विपक्षी एकता का चेहरा कौन?: साल 2014 से ही देश में लोकसभा चुनाव मोदी के चेहरे के नाम पर जीता जाता रहा. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटें और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं थी. 2019 में तो अकेले हिंदी पट्टी में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 50 फीसदी के करीब वोट शेयर के साथ 141 सीटें जीतीं थीं.
कांग्रेस पार्टी का भी अपना अलग एजेंडा है. कांग्रेस पार्टी जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा रोकने के एजेंडे पर बहस चाहती है. वहीं जदयू भी अपने एजेंडे पर काम कर रही है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने के लिए संपूर्ण विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार देना चाहिए.
क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? :राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही कहा था कि वे नरेंद्र मोदी सरकार का विकल्प प्रदान करने के लिए सभी विपक्षी दलों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर एकता बनाने को राजी करेंगे. लेकिन अब इसपर भी सहमति बनती नहीं दिख रही है. बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने साफ कर दिया है की ऐसा कोई कार्यक्रम करने का फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है.
अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं :विपक्षी दलों के बीच का अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं है. केंद्र द्वारा पारित अध्यादेश दिल्ली सरकार की अधिकांश शक्तियों को समाप्त कर रहा है. इस मसले पर आप पार्टी विपक्ष का साथ चाहती है. वहीं कांग्रेस इस मसले पर खुलकर कुछ भी कहने से बच रहा है. वहीं समाजवादी पार्टी, ममता की टीएमसी के बीच भी तालमेल बैठाना टेढ़ी खीर साबित होगी.
क्या सहयोगी दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे:विपक्षी एकता को लेकर दलों की बैठक अभी तो पहला कदम मात्र है. TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है. इन सभी पार्टियों का इतिहास या तो एक दूसरे के खिलाफ लड़ने का रहा है या गठबंधन का बुरा अनुभव झेल चुके हैं. उदाहरण के लिए पिछले साल ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार पर आम सहमति के लिए विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, लेकिन कांग्रेस से समर्थन नहीं मिला. वहीं आप पार्टी काफी हद तक कांग्रेस के वोट अपने खाते में लाकर ही पहचान बना सकी है. इधर अखिलेश यादव की भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं.