लखनऊ :उत्तर प्रदेश केकानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की गोरखपुर में पुलिस की पिटाई से मौत मामले में कई सवाल उठ रहे हैं. वारदात के चौथे दिन भी ऐसे कई सवाल हैं, जो गोरखपुर में कानून व्यवस्था को कठघरे में लाते हैं और आला अधिकारियों की भूमिका को संदिग्ध बताते हैं. मनीष गुप्ता की मौत के बाद उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को तो सीएम योगी ने नौकरी तो दे दी, लेकिन चार वर्षीय बेटे को यह कौन बताए कि उसके पिता के साथ क्या हुआ?
हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए सीएम के आदेश का इंतजार क्यों?
मनीष गुप्ता की मौत के बाद छह पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को लेकर पत्नी मीनाक्षी गुप्ता मंगलवार देर रात तक अड़ी रहीं. पोस्टमार्टम के बाद परिवार के लोगों ने लाश लेने और अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया. इस दौरान मृतक की पत्नी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाहर धरने पर बैठ गई. इसकी जानकारी जब सीएम योगी को हुई तो उन्होंने मीनाक्षी गुप्ता से बात की और मदद का आश्वासन दिया.
इसके बाद मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. मृतक के परिजनों ने इतना हंगामा और बवाल किया, फिर भी गोरखपुर की पुलिस का दिल नहीं पसीजा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीएम योगी के हस्तक्षेप के बाद ही पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया?
SSP ने मामले को गुमराह करने का प्रयास क्यों किया?
घटना के बाद SSP विपिन टांडा ने कहा था कि पुलिस की तलाशी के दौरान हड़बड़ाहट में मनीष गुप्ता गिर गया, जिससे चोट लगी. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. ये लोग गोरखपुर क्यों आए थे, इसकी जांच की जाएगी. इससे स्पष्ट है कि एसएसपी कहीं न कहीं मनीष की पिटाई करने वाले पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि एसएसपी ने यह नहीं कहा कि युवक के मौत की जांच कराई जाएगी.
एसएसपी ने होटल में ठहरे मनीष के दोस्तों की भूमिका जांच कराने की बात कहते हुए नजर आए थे. अब सवाल उठता है कि इस तरह के बयान देने पर भी अब तक एसएसपी विपिन टांडा पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जब विभाग अपने आरोपी पुलिसकर्मियों को बचाने में जुटा है तो फिर निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
आरोपी पुलिसकर्मियों को क्यों बचाना चाहते हैं आलाधिकारी?
मनीष गुप्ता के शव लेकर परिजन कानपुर पहुंचे और अपनी मांगों को लेकर अंतिम संस्कार नहीं किए. इसी दौरान बंद कमरे में गोरखपुर के जिलाधिकारी विजय किरण आनंद और एसएसपी विपिन टांडा मामले का सेटलमेंट करने के लिए पीड़ित परिवार वालों पर दबाव बना रहे थे, जिसका वीडियो वायरल हो गया.