Manipur Violence: मणिपुर में महिला वकील की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
एक तथ्यान्वेषी मिशन के तहत हिंसाग्रस्त मणिपुर राज्य का दौरा करने वाली एक महिला वकील को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में राहत मिल गई. शीर्ष अदालत ने उक्त महिला को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया है. राज्य की पुलिस ने महिला के खिलाफ गंभीर धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी.
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 11, 2023, 4:35 PM IST
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Updated : Jul 11, 2023, 5:09 PM IST
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महिला वकील को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दे दी. इस महिला पर मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए तथ्यान्वेषी टीम के साथ जाने के बाद राजद्रोह का आरोप लगाया गया था. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आग्रह किया.
दवे ने कहा कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है और राज्य में मौजूदा स्थिति के बीच मणिपुर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना संभव नहीं है. हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रतिवाद किया कि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता था और कहा कि यह दावा करना उचित नहीं है कि उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना संभव नहीं था. मेहता ने अदालत को सूचित किया कि वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस पहले भी उच्च न्यायालय के समक्ष इसी तरह के मामले में पेश हुए थे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास एफआईआर की प्रति नहीं थी और मेहता से याचिकाकर्ता को एफआईआर की एक प्रति देने को कहा, साथ ही उनसे मामले पर अधिक जानकारी जुटाने को भी कहा. मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को 14 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और निर्देश दिया कि इस बीच याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में वकील दीक्षा द्विवेदी ने यह तर्क दिया कि वह एक स्वतंत्र वकील और पर्यवेक्षक के रूप में राष्ट्रीय महिला जांच मंच (एनआईएफडब्ल्यू) की दो-महिला टीम के साथ गई थीं और जुलाई के पहले सप्ताह में, जांच पूरी होने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई और एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई.
इसके बाद मणिपुर पुलिस ने उनके और अन्य लोगों के खिलाफ देशद्रोह, मानहानि आदि के तहत एफआईआर दर्ज की थी. वकील ने दावा किया कि प्रेस विज्ञप्ति की सामग्री देशद्रोही नहीं थी और न ही वे भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत कथित अन्य अपराधों को आकर्षित करती थीं.