नई दिल्ली :मणिपुर पूर्वोत्तर का ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में राष्ट्रीय दल के साथ स्थानीय क्षेत्रीय पार्टी भी सरकार की रूपरेखा तय करती हैं. 2022 यानी इस बार के हालात कुछ अलग हैं. बीजेपी सरकार में अपने गठबंधन पार्टनर नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. उसका मुकाबला कांग्रेस के नेतृत्व वाली मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस से भी होगा.
कांग्रेस ने छह दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है, जिसे मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस (MPSA) नाम दिया गया है. इस गठबंधन में कांग्रेस (Congress), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और जेडी (एस) शामिल है. 60 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए कुल दो चरणों में वोटिंग होगी. पहले चरण में विधानसभा की 38 सीटों पर मतदान 27 फरवरी को होगा. 22 सीटों के लिए दूसरे चरण की वोटिंग 3 मार्च को होगी. मणिपुर में भी मतगणना 10 मार्च को होगी.
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 और भाजपा को 21 सीटों पर जीत मिली थीं. मगर अभी बीजेपी के पास 31 विधायक हैं और उसे 4 विधायकों वाली एनपीएफ और 3 विधायकों वाली एनपीपी का समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस से कम सीट जीतने के बावजूद चुनाव भाजपा ने नेशनल पीपल्स पार्टी, नागा पीपल्स फ्रंट, लोजपा के अलावा दो अन्य विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. तब अमित शाह ने असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत विस्वसरमा को सरकार बनवाने का जिम्मा सौंपा था. एन बीरेन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. 28 सीटें जितनी वाली कांग्रेस के पास अब सिर्फ 13 विधायक बचे हैं.
मणिपुर में पहली बार वर्ष 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 33 सदस्यीय विधानसभा की स्थापना की गई थी. तब विधानसभा में 30 सदस्य चुने जाते थे जबकि तीन का मनोनयन सरकार करती थी. इस दौरान दस साल तक कांग्रेस सत्ता में रही. जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और विधानसभा में सदस्यों की संख्या 60 हो गई. इनमें से 20 सीटें शिड्यूल ट्राइब्स और शिड्यूल कास्ट के लिए रिजर्व हैं. पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के बाद मणिपुर की राजनीति क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के सहारे आगे बढ़ी. मणिपुर पीपुल्स पार्टी (MPP) ने 1972 में निर्दलीयों के साथ सरकार बनाई. 1974 से 77 तक कांग्रेस फिर सत्ता में आई.
आपातकाल के बाद वहां दो साल के लिए जनता पार्टी की सरकार बनी. इसके बाद कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच 20 साल तक सत्ता की खींचतान होती रही. निर्दलीय और छोटे दल मौके के हिसाब पाला बदलते रहे. उलटफेर के चक्कर में 1972 के बाद से 2001 तक मणिपुर में 8 बार राष्ट्रपति शासन भी लगा. वर्ष 2007 और 2012 में कांग्रेस ने लगातार जीत हासिल कर सरकार बनाई. उसकी सत्ता 2017 में बदल गई, पहली बार बीजेपी ने लगातार पांच साल तक शासन किया.
पिछले 49 साल के दौरान मणिपुर के कई स्थानीय क्षेत्रीय दल आए, जो चुनावों में छाए रहे. 2012 मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी ने 5 सीटें जीतीं थीं. नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने भी 4 सीटों पर कब्जा किया. मगर उस साल कांग्रेस को मिली भारी जीत के कारण सरकार में इनका दखल नहीं हुआ. 2012 में तृणमूल कांग्रेस ने 7 सीटें जीत कर मणिपुर में एंट्री ली थी. 2007 में मणिपुर पीपुल्स पार्टी ने 5, राष्ट्रीय जनता दल ने 3 और एनसीपी ने 5 सीट जीती थीं. 2002 में समता पार्टी और फेडरल पार्टी ऑफ मणिपुर को भी चुनावी सफलता मिली थी. इसके अलावा रामबिलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल, जनता दल यूनाइटेड भी यहां के चुनावों में सीट हासिल करती रही है.
मणिपुर के जातीय फैक्टर, मेतई समुदाय का दबदबा