नई दिल्ली : पांच राज्यों में अब विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग की तैयारियां चल रही हैं. पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में भी 28 फरवरी और 5 मार्च को दो चरणों में मतदान होगा. इस बार मणिपुर के बाहर के लोग भी इस राज्य के चुनावी समीकरणों पर नजर गड़ाए बैठे हैं. सभी राजनीतिक विश्लेषक यह तौल रहे हैं कि मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी की वापसी होगी या नहीं. इसके अलावा बीजेपी के रणनीतिकार में केंद्र की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के नतीजों को लेकर दिलचस्पी बनी हुई है.
भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी बनाई है, जिसका मकसद साउथ ईस्ट एशियाई देशों के साथ पूर्वोत्तर के सांस्कृतिक और जातीय संबंधों का लाभ उठाना है. इस पॉलिसी के तहत नॉर्थ-ईस्ट के जरिए म्यांमार और जापान तक जुड़ने की तैयारी की गई है. इसके अलावा मणिपुर में विकास का एजेंडे के अलावा दो महत्वपूर्ण मुद्दों का भविष्य भी इस चुनाव परिणाम में तलाशे जा रहे हैं. उनमें से एक है नगा शांति वार्ता और दूसरा है आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA). मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लिए ये दोनों मुद्दे खासा मायने रखते हैं, इसलिए राज्य में सत्ता में आने वाली पार्टी को इसका ख्याल रखना होगा.
नॉर्थ-ईस्ट पर गहरी नजर रखने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजय सिंह भी मानते हैं कि इस बार मणिपुर विधानसभा चुनाव आसान नहीं है. इस राज्य में सरकार वही बनाएगा, जो मैतेई समुदाय की भावनाओं का सम्मान करेगा. मैतेई समुदाय के लोग नगा शांति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं. उनका कहना है कि इस बार एक ओर बीजेपी पर सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच उलझे नगा मुद्दे पर बातचीत को ठंडे बस्ते में डालने का दबाव होगा, दूसरी ओर उसे नगा लोगों से वार्ता जारी रखनी भी होगी. अगर तालमेल नहीं बना तो नगा प्रभुत्व वाला NSCN (IM) मणिपुर के पहाड़ी इलाकों और नगालैंड में विद्रोह को हवा दे सकता है.
आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की लगभग 63 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू मैतेई ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. यहां की 35 प्रतिशत ट्राइबल आबादी पहाड़ियों में बसी है. इन ट्राइबल्स में लगभग 20 प्रतिशत नगा हैं जबकि लगभग 15 प्रतिशत कुकी-चिन वंश के हैं. बाकी 2 फीसदी आबादी में बंगाली, नेपाली और अन्य शामिल हैं. मणिपुर विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 60 है. राजनीतिक तौर से देखें तो इनमें से 40 मैतेई बहुल घाटी में हैं, जबकि शेष 20 सीटों पर नागा और कुकी जनजाति के वोटर जीत-हार तय करते हैं.