नई दिल्ली/गाजियाबाद :इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद हर किसी का सपना मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर लाखों रुपये कमाना और सुकून की जिंदगी जीना होता है. ग्रेटर नोएडा के रहने वाले रामवीर तंवर भी इंजीनियरिंग के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर सुकून की जिंदगी जी सकते थे, लेकिन रामवीर तंवर ने पर्यावरण को बचाने के लिए मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ दी.
दिल्ली-NCR में तालाब लुप्त होते जा रहे हैं. कहीं तालाब डंपिंग ग्राउंड बन चुके हैं, तो कहीं पर भू माफियाओं ने तालाबों पर कब्जा कर रखा है. पर्यावरण प्रेमी रामवीर तंवर ने तालाबों को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है. रामवीर तंवर तकरीबन पांच सालों से तालाबों को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे हैं. बीते पांच सालों में रामवीर दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में 50 से ज्यादा तालाबों को पुनर्जीवित कर चुके हैं.
रामवीर तंवर बीते चार सालों से SAY EARTH एनजीओ चला रहे हैं. एनजीओ के माध्यम से तंवर देश के विभिन्न राज्यों में तालाबों को पुनर्जीवित करते हैं. तंवर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम करना शुरू कर दिया था. इस दौरान उन्होंने "जल चौपाल" के नाम से एक मुहिम चलाई थी. मुहिम में तंवर अपने कॉलेज के छात्रों के साथ गांव देहातों में जाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करते थे.
तंवर बताते हैं कि मुहिम के दौरान इस बात का अंदाजा हुआ कि केवल लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने से काम नहीं चलेगा. तब उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को लेकर ग्राउंड पर कवायद करनी शुरू कर दी. पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम करने के लिए उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी तक छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद तंवर ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पर्यावरण संरक्षण को लेकर ट्रेनिंग ली.
पर्यावरण प्रेमी रामवीर तंवर बताते हैं कि गाज़ियाबाद नगर निगम द्वारा इस साल 46 तालाबों का जीर्णोद्धार करने का लक्ष्य रखा गया है. नगर निगम की इस मुहिम में "Say Earth" NGO भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है. NGO द्वारा 26 तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, जिसमें से अधिकतर तालाबों का जीर्णोद्धार पूरा हो चुका है. जबकि कई तालाबों में थोड़ा बहुत काम होना बाकी है जो कि आने वाले दो महीने में पूरा कर लिया जाएगा. कई ऐसे तालाबों को भी पुनर्जीवित किया गया है जो कूड़ा घर बने हुए थे या फिर भू माफियाओं के कब्जे में थे. भू माफियाओं के कब्जे से तालाबों को मुक्त कराने में प्रशासन का भी योगदान रहा है.