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UP: मलिन बस्तियों का हाल बदहाल, ऐसे रंग भर रही 'स्माइल फॉर ऑल'

मलिन बस्तियों (slum) में रहने वाले लोग सिर्फ शिक्षा के मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि और भी कई मोर्चों पर दुश्वारियों का सामना करना रहे हैं. इन बस्तियों में जीवन बसर कर रहे लोग बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य, पानी और बिजली से भी वंचित हैं और शिक्षा का स्तर (education level) सबसे निचले पायदान पर है. लिहाजा, यहां के बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए स्माइल फॉर ऑल (smile for all) संस्था आगे आई है.

मलिन बस्तियों का हाल बदहाल
मलिन बस्तियों का हाल बदहाल

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Published : Aug 8, 2021, 8:24 PM IST

लखनऊ: भारत में मलिन बस्तियों (slum) की तस्वीर निराश करने वाली है. यहां शैक्षिक, आर्थिक (finance) और पारिवारिक पृष्ठभूमि का बच्चों के विकास पर गहरा असर पड़ा है. यहां के बच्चे हर मायने में आम बच्चों की अपेक्षाकृत पिछड़ेपन का शिकार हैं. यहां, जिन बच्चों के माता-पिता निरक्षर हैं वो अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति कम जागरूक हैं, लेकिन वर्तमान में निरक्षर अभिभावक भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाते जा रहे हैं. ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है प्रयागराज स्थित मिंटू पार्क मलिन बस्ती में. जहां, कई ऐसी लड़कियां है जो पढ़ना चाहती हैं, लेकिन वो आर्थिक तौर पर काफी कमजोर हैं. लिहाजा, स्माइल फॉर ऑल (smile for all) की टीम इन बच्चों को फ्री में शिक्षा मुहैया कराकर उनके सपनों को पंख लगा रही है.

शहरी मलिन बस्तियों का हाल.

वैसे तो मलिन बस्तियों में रहना ही अपने आप में काफी पीड़ादायक है. इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से वंचित हैं और यहां की तस्वीर बहुत भयावह है. शहरी मलिन बस्तियों (urban poor slums) में रहने वाले लोग सिर्फ शिक्षा के मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि और भी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इन बस्तियों में जीवन बसर कर रहे लोग बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य, पानी और बिजली से भी वंचित हैं. और शिक्षा का स्तर सबसे निचले पायदान पर है. खासकर, सरकार जहां बच्चों को स्कूल जाने एवं पढ़ाने की पहल के 'सर्व शिक्षा अभियान' के तहत 'सब पढ़ो सब बढ़ो' का नारा दे रही है.

मलिन बस्तियों के 30 फीसदी बच्चे ले रहे शिक्षा.

इन सबके बीच ये बदतर तस्वीर चिंतित करने वाली है. हालांकि, सामाजिक संगठन इस मामले में आगे आ रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है शहर के अमित कुमार पाण्डेय का, जो एक छात्र हैं. वो एक सामाजिक संगठन के साथ मिलकर मलिन बस्तियों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. वो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को शिक्षित करने की सराहनीय पहल कर रहे हैं. वो उन बच्चों का स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं, जिनके अभिभावक साल भर की फीस भी वहन नहीं कर सकते.

बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे.

मलिन बस्ती में रहने वाली पूजा कहती हैं वो गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. लिहाजा, वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मुहैया कर सकते. वहीं मुस्कान आंखों में आंसू लिए अपने सपने की बुनियाद को मजबूत कर रही हैं. वो भी आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. पिता की मृत्यु के बाद मां पर भाई बहन के भरण-पोषण और शिक्षा-दीक्षा दिलाने की जिम्मेदारी है, लेकिन मां मजबूर हैं, लिहाजा, अमित कुमार पांडेय की टीम इन बच्चों को सहारा बनी है.

शिक्षा लेने वालों में बालिकाएं ज्यादा.

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आपको बता दें कि स्माइल फॉर ऑल की टीम प्रयागराज के इंचार्ज अमित बीटेक हैं और वो सिविल सर्विसेस की तैयारी करते हैं. उनका कहना है कि स्लम एरिया की सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने के लिए बच्चों को बेहतर और क्वालिटी बेस्ड शिक्षा देकर उनके कंधों को मजबूत किया जा सकता है. उनकी संस्था ऐसे बच्चों को खोज-खोज कर दोबारा स्कूलों में प्रवेश दिला रही है, जिन्होंने आर्थिक तंगी के कारण प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही स्कूल छोड़ दिया. संस्था बच्चों को पठन-पाठन में किसी भी प्रकार कि दिक्कत न हो, इसलिए पठन-पाठन के लिए सामग्री भी मुफ्त में उपलब्ध कराती है.

बीच में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का प्रतिशत

15.53 प्रतिशत बच्चे बीच में छोड़ रहे स्कूल
दावा है कि अब तक प्रयागराज की कई मलिन बस्तियों से सैकड़ों से अधिक बच्चों को स्कूल से जोड़ा जा चुका है. संस्था बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए लगातार काम कर रही है. एक अध्ययन के मुताबिक, मलिन बस्तियों में रहने वाले शिक्षित अभिभावकों के बीस प्रतिशत बच्चे अभी भी निरक्षर हैं. ऐसे परिवारों में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण पाने वाले बच्चों की संख्या 30.58 फीसदी है. इनमें 14.32 प्रतिशत लड़के और 16.26 प्रतिशत लड़कियां शामिल हैं. बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले कुल 15.53 प्रतिशत बच्चों में से बालकों का प्रतिशत 10.43 फीसदी है और बालिकाओं का ये प्रतिशत 5.09 पर जाकर टिकता है.

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सामाजिक भेदभाव के कारण स्कूल छोड़ रहीं दलित बच्चियां
एक वेबसाइट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) 2017-18 के सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, माध्यमिक स्कूल स्तर पर अनुसूचित जाति के छात्रों की ड्रॉपआउट वार्षिक औसत दर की 21.8 प्रतिशत थी. एसटी (ST) छात्रों के मामलों में यह दर 22.3% पर था. यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, सामाजिक भेदभाव के कारण दलित लड़कियों को स्कूल से बाहर करने की दर सबसे अधिक है. गैर-दलित और गैर-आदिवासी समुदायों के 37% बच्चों के विपरीत 51% दलित बच्चे प्राथमिक विद्यालय से बाहर हो गए.

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