लखनऊ: भारत में मलिन बस्तियों (slum) की तस्वीर निराश करने वाली है. यहां शैक्षिक, आर्थिक (finance) और पारिवारिक पृष्ठभूमि का बच्चों के विकास पर गहरा असर पड़ा है. यहां के बच्चे हर मायने में आम बच्चों की अपेक्षाकृत पिछड़ेपन का शिकार हैं. यहां, जिन बच्चों के माता-पिता निरक्षर हैं वो अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति कम जागरूक हैं, लेकिन वर्तमान में निरक्षर अभिभावक भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाते जा रहे हैं. ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है प्रयागराज स्थित मिंटू पार्क मलिन बस्ती में. जहां, कई ऐसी लड़कियां है जो पढ़ना चाहती हैं, लेकिन वो आर्थिक तौर पर काफी कमजोर हैं. लिहाजा, स्माइल फॉर ऑल (smile for all) की टीम इन बच्चों को फ्री में शिक्षा मुहैया कराकर उनके सपनों को पंख लगा रही है.
वैसे तो मलिन बस्तियों में रहना ही अपने आप में काफी पीड़ादायक है. इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से वंचित हैं और यहां की तस्वीर बहुत भयावह है. शहरी मलिन बस्तियों (urban poor slums) में रहने वाले लोग सिर्फ शिक्षा के मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि और भी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इन बस्तियों में जीवन बसर कर रहे लोग बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य, पानी और बिजली से भी वंचित हैं. और शिक्षा का स्तर सबसे निचले पायदान पर है. खासकर, सरकार जहां बच्चों को स्कूल जाने एवं पढ़ाने की पहल के 'सर्व शिक्षा अभियान' के तहत 'सब पढ़ो सब बढ़ो' का नारा दे रही है.
इन सबके बीच ये बदतर तस्वीर चिंतित करने वाली है. हालांकि, सामाजिक संगठन इस मामले में आगे आ रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है शहर के अमित कुमार पाण्डेय का, जो एक छात्र हैं. वो एक सामाजिक संगठन के साथ मिलकर मलिन बस्तियों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. वो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को शिक्षित करने की सराहनीय पहल कर रहे हैं. वो उन बच्चों का स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं, जिनके अभिभावक साल भर की फीस भी वहन नहीं कर सकते.
मलिन बस्ती में रहने वाली पूजा कहती हैं वो गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. लिहाजा, वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मुहैया कर सकते. वहीं मुस्कान आंखों में आंसू लिए अपने सपने की बुनियाद को मजबूत कर रही हैं. वो भी आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. पिता की मृत्यु के बाद मां पर भाई बहन के भरण-पोषण और शिक्षा-दीक्षा दिलाने की जिम्मेदारी है, लेकिन मां मजबूर हैं, लिहाजा, अमित कुमार पांडेय की टीम इन बच्चों को सहारा बनी है.