नई दिल्ली: मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मुइज्जू 8 जनवरी से शुरू होने वाली चीन यात्रा के लिए तैयार हैं, जो तुर्किये और संयुक्त अरब अमीरात के बाद उनकी दूसरी विदेश यात्रा होगी. इसे भारत के प्रति नीति में बदलाव के रूप में देखा जा सकता है.
उनकी चीन यात्रा को उस परंपरा को तोड़ने के रूप में भी देखा जा रहा है, जैसा कि उनके पिछले पूर्ववर्ती मानते थे कि भारत इस क्षेत्र में सबसे करीबी पड़ोसियों में से एक है. वर्षों से माले और भारत के बीच संबंध में जबरदस्त वृद्धि देखी है. लेकिन अब चूंकि मालदीव के राष्ट्रपति सत्ता संभालने के बाद से ही अपने चीन समर्थक रुख को लेकर काफी मुखर रहे हैं. तो सवाल यह है कि क्या भारत और मालदीव के बीच संबंध उसी गति से आगे भी जारी रहेंगे और क्या मालदीव पूरी तरह से चीन समर्थक रुख अपनाने जा रहा है? चीन पर भरोसा या भारत पर भरोसा?
विशेषज्ञों का मानना है कि जब भारत और मालदीव के संबंधों की बात आएगी तो हवा का रुख बदल जाएगा. मालदीव के लिए भारत की निरंतर सहायता और समर्थन ने दोनों देशों के बीच संबंधों में निकटता को चिह्नित किया है, लेकिन अभियान से भारत को बाहर करने के मुइज्जू के मजबूत आह्वान और भारत के साथ जलविद्युत समझौते को नवीनीकृत नहीं करने के फैसले ने नई दिल्ली को चिंतित कर दिया है.
ईटीवी भारत से बातचीत में भारत के पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने कहा, 'भू-राजनीतिक वास्तविकता यह है कि भारत एक बड़ा देश है, और यह एक बड़ा पड़ोसी है. पीएम मोदी की लक्षद्वीप की हालिया यात्रा ने मालदीव को एक मजबूत संदेश दिया है कि जहां तक चीन का सवाल है, वे जिस तरह से चाहें उससे जुड़ सकते हैं, लेकिन भारत के महत्व को एक सीमा से अधिक कम नहीं किया जा सकता.'
लक्षद्वीप, 32 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला 36 द्वीपों का एक द्वीपसमूह है, जो अपनी स्थिति और चीन से खतरे को देखते हुए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. श्रीलंका और मालदीव के साथ चीन की बढ़ती व्यस्तता को देखते हुए किसी भी संघर्ष की स्थिति में लक्षद्वीप सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है. अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने अपनी सरकार की विकास परियोजनाओं और पहलों के बारे में बात की, जो इंगित करता है कि नई दिल्ली की नजर द्वीपों पर है.
दरअसल, पीएम मोदी की यात्रा में यह भी कहा गया था कि भारत मालदीव की कीमत पर द्वीपसमूह में पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है. यह ध्यान रखना उचित है कि ऐसे समय में जब मानवीय आपदा आई हो, चाहे वह 2004 में सुनामी हो या यहां तक कि कोविड के दौरान, भारत ने मालदीव का सबसे पहले साथ दिया.
पूर्व राजनयिक ने ईटीवी भारत को बताया, 'भारत के इतने करीब होने और देश की क्षमता को देखते हुए मालदीव भारत के साथ सकारात्मक और अच्छे रिश्ते के बिना नहीं रह सकता. आगे चलकर हमें देखना होगा कि घरेलू राजनीतिक समीकरण कैसे बनते हैं.'
अशोक सज्जनहार ने कहा कि 'जहां तक चीन का सवाल है, वह भारत के पड़ोस में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेगा और भारत को घेरने की हर संभव कोशिश करेगा ताकि अपनी भूमिका न निभा सके और भारत और माले के बीच संबंधों की मजबूती कम हो जाए और बीजिंग का महत्व बढ़े.'