हैदराबाद: देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अस्पताल में बेड, मेडिकल उपकरणों की कमी सबसे बड़ी समस्या है. अस्पतालों में बेड की कमी के कारण एंबुलेंस या व्हीलचेयर पर ऑक्सीजन दिए जाने की तस्वीरें देशभर से सामने आ रही हैं. महामारी के इस दौर में मरीजों को फिलहाल ऑक्सीजन वाले बेड की सबसे ज्यादा जरूरत है. अमेरिकी राष्ट्रपति के मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फौसी ने सुझाव दिया है कि लॉकडाउन, व्यापक स्तर पर टीकाकरण और बड़े पैमाने पर मेकशिफ्ट अस्पतालों (अस्थायी अस्पताल) का निर्माण भारत में मौजूदा संकट से लड़ने में मददगार साबित होगा. उन्होंने कहा कि कुल संक्रमितों में से आधे लोगों को आईसीयू की जरूरत है, अपर्याप्त चिकित्सा सुविधा और अप्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ कोविड-19 के खिलाफ देश की जंग को और भी गंभीर बना रहा है. उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन की कमी भी देश गंभीर हालात को बयां करती है. साथ ही उन्होंने कहा कि इस संकट से उबरने में हर देश को भारत की मदद करनी चाहिए.
मेकशिफ्ट या अस्थायी अस्पताल चीन ने पेश की थी मिसाल
कोविड-19 के शुरुआती दौर में चीन के उठाए कदम सभी देशों के लिए एक मिसाल है. चीन ने सेना की मदद से सिर्फ 10 दिन में सबसे बड़ा अस्पताल खड़ा कर दिया. जिसमें बेड कार्डबोर्ड के बने थे जो ऑक्सीजन पाइप से जुड़े हुए थे. हर बेड पर ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित की गई. इस तरह के बंदोबस्त हर राज्य में किए गए. शुरुआती दौर में ही इस तरह की तुरंत कार्रवाई से ना सिर्फ मौतों पर अंकुश लगा बल्कि वायरस को फैलने से रोकने में भी मदद मिली. इसके अलावा चीन ने कोविड-19 रोगियों के आइसोलेशन और उनके इलाज के लिए 14 मेकशिफ्ट अस्पताल बनाए. वुहान शहर में कोरोना का पहला केस मिलने के बाद, सरकार ने हुबेई में 42 हजार मेडिकल स्टाफ की भर्ती की.
चीन ने 10 दिन में बनाया था अस्पताल युद्ध स्तर पर काम करना होगा
रत भी चीन की तरह सेना की मदद से मेकशिफ्ट अस्पतालों का निर्माण करवा सकता है ताकि बेड की कमी को दूर किया जा सके. भारत में कई उदाहरण है जो दूरदर्शिता से लेकर योजना और सिस्टम के फेल होने की कहानी बयां करते हैं. बिहार को पीएम केयर्स फंड के तहत वेंटिलेटर दिए दिए लेकिन राज्य में इन्हें ऑपरेटर करने वाले टेकनीशियन की कमी है. हालात ये हैं कि जब मरीज मर रहे हैं तब भी सरकारी अस्पतालों में कई वेंटिलेटर पड़े हुए हैं लेकिन उनका इस्तेमाल मरीजों की जान बचाने के लिए नहीं हो पा रहा. अस्थायी अस्पतालों के निर्माण के सुझाव को छोड़िये, फरवरी में दिल्ली में एक मेकशिफ्ट स्वास्थ्य सुविधा को गिरा दिया गया था. उस वक्त रोजाना सिर्फ 200 मामले सामने आ रहे थे तो सरकार ने इस अस्पताल को चलाना जरूरी नहीं समझा. शुरुआत में, उत्तर प्रदेश में 503 कोविड अस्पताल थे जिनमें 1.5 बेड की व्यवस्था थी लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होती रही और जो फरवरी तक सिर्फ 83 कोविड अस्पताल और 17,000 बिस्तर रह गए. कर्नाटक में भी स्थिति उतनी ही खराब है. मौजूदा संसाधनों में सिर्फ 18,000 आईसीयू बेड जोड़े गए. कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने मेकशिफ्ट अस्पतालों को देबारा खोल दिया. डीआरडीओ अब कोविड-19 की जंग में शामिल हो गया है, जिसकी मदद से अस्थायी मेडिकल सुविधाओं को स्थापित किया जा रहा है. हाल ही में, उन्होंने दिल्ली में 500 बेड के एक मेकशिफ्ट अस्पताल का निर्माण किया है. डीआरडीओ गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी इसी तरह के अस्पताल बनाने की योजना बना रहा है. दूसरी ओर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) लखनऊ और नासिक में अस्थायी अस्पताल का निर्माण कर रहा है.
दिल्ली में DRDO द्वारा बनाया गया मेकशिफ्ट अस्पताल छात्रों की भागीदारी बहुत अहम
गोवा सरकार मेकशिफ्ट अस्पताल स्थापिक कर रही है. दिल्ली के वकीलों का एक समूह 50 बेड के अस्थायी अस्पताल को स्थापित करने के लिए साथ आया. भारतीय स्टेट बैंक ने दूसरी लहर से लड़ने के लिए 71 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी राह का रोड़ा है, लेकिन अस्थायी अस्पताल एक बेहतर विकल्प है. नारायण हेल्थ के संस्थापक डॉ. देवी शेट्टी कहते हैं कि भारत को जल्द ही एक लाख डॉक्टरों और 5 लाख नर्सों की जरूरत होगी. कोविड-19 वार्डों में मेडिकल और नर्सिंग के अंतिम वर्ष के छात्रों को जिम्मेदारी देकर मौजूदा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. केंद्र सरकार को आगामी स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने के लिए इन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है.
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