वाराणसी: सूर्य आराधना का महापर्व मकर संक्रांति भगवान भाष्कर के उत्तरायण होने का काल है. दक्षिणायन में धरतीवासियों पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में ग्रह राज सूर्यदेव का जीव की उत्पत्ति और जीवन को साकार करने वाले भगवान भाष्कर हैं. बिना इनके जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. धरती पर सर्व प्रमुख ऊर्जा के केंद्र के रूप में भी विराजते हैं. पुराणों में भगवान सूर्य को आरोग्यता, ऐश्वर्य, धन, पुत्र, सुख, इच्छा, परिवार, विकास, मोक्ष तक की प्राप्ति का कारक माना गया है. ज्योतिषशास्त्र में उत्तरी गोलार्ध को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है.
दक्षिण गोलार्ध में पितरों का क्षेत्र माना जाता है. सूर्य देव के उत्तरायण काल मकर राशि से मिथुन राशि तक तथा दक्षिणायन काल कर्क राशि से धनु राशि तक अर्थात भगवान भाष्कर छह माह उत्तरायण व छह माह दक्षिणायन रहते हैं. वैसे तो मकर संक्रांति का पर्व हमेशा से ही 14 जनवरी को माना जाता है और लोग स्नान और दान 14 जनवरी को ही करते हैं. लेकिन, इस बार यह पर्व 14 नहीं बल्कि 15 को मनाया जाएगा.
इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी ज्योतिष आचार्य ने बताया कि सूर्य या किसी ग्रह का एक राशि से दूसरे राशि से प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है. जब ग्रहराज सूर्यदेव का धनु व मीन राशि पर संचरण होता है तो इसे खरमास कहा जाता है. इस बार सूर्यदेव का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को सुबह 9 बजकर 13 मिनट पर होगा. अत: इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी. संक्रांतिजनित पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 9:15 मिनट से सूर्यास्त तक रहेगा. इस बार मकर संक्रांति को अमृत योग अद्भुत संयोग होगा. यह अपने आप में बेहद खास है. ऐसा योग शताब्दी में एक या दो ही बार आता है. उत्तरायण में देवताओं का दिन व दैत्यों की रात्रि मानी जाती है. सम्पूर्ण भारत में यह पर्व मनाया जाता है. हम सभी इसे खिचड़ी के रूप में भी मनाते हैं. दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पोंगल के नाम से, पंजाब में लोहड़ी के रूप में, सिंधी समाज में इसे लाल लोही के नाम से मनाते हैं.