दिल्ली

delhi

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 13, 2024, 5:37 PM IST

ETV Bharat / bharat

इस बार 15 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति, जानिए क्यों हुआ तिथि में परिवर्तन

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व 14 जनवरी को ही मनाया जाता है. लेकिन, इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा. इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि मकर संक्रांति का मनाया जाना सूर्यदेव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के समय पर निर्भय करता है.

Etv Bharat
Etv Bharat

मकर संक्रांति पर्व को लेकर पंडित ऋषि द्विवेदी से बातचीत

वाराणसी: सूर्य आराधना का महापर्व मकर संक्रांति भगवान भाष्कर के उत्तरायण होने का काल है. दक्षिणायन में धरतीवासियों पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में ग्रह राज सूर्यदेव का जीव की उत्पत्ति और जीवन को साकार करने वाले भगवान भाष्कर हैं. बिना इनके जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. धरती पर सर्व प्रमुख ऊर्जा के केंद्र के रूप में भी विराजते हैं. पुराणों में भगवान सूर्य को आरोग्यता, ऐश्वर्य, धन, पुत्र, सुख, इच्छा, परिवार, विकास, मोक्ष तक की प्राप्ति का कारक माना गया है. ज्योतिषशास्त्र में उत्तरी गोलार्ध को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है.

दक्षिण गोलार्ध में पितरों का क्षेत्र माना जाता है. सूर्य देव के उत्तरायण काल मकर राशि से मिथुन राशि तक तथा दक्षिणायन काल कर्क राशि से धनु राशि तक अर्थात भगवान भाष्कर छह माह उत्तरायण व छह माह दक्षिणायन रहते हैं. वैसे तो मकर संक्रांति का पर्व हमेशा से ही 14 जनवरी को माना जाता है और लोग स्नान और दान 14 जनवरी को ही करते हैं. लेकिन, इस बार यह पर्व 14 नहीं बल्कि 15 को मनाया जाएगा.

इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी ज्योतिष आचार्य ने बताया कि सूर्य या किसी ग्रह का एक राशि से दूसरे राशि से प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है. जब ग्रहराज सूर्यदेव का धनु व मीन राशि पर संचरण होता है तो इसे खरमास कहा जाता है. इस बार सूर्यदेव का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को सुबह 9 बजकर 13 मिनट पर होगा. अत: इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी. संक्रांतिजनित पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 9:15 मिनट से सूर्यास्त तक रहेगा. इस बार मकर संक्रांति को अमृत योग अद्भुत संयोग होगा. यह अपने आप में बेहद खास है. ऐसा योग शताब्दी में एक या दो ही बार आता है. उत्तरायण में देवताओं का दिन व दैत्यों की रात्रि मानी जाती है. सम्पूर्ण भारत में यह पर्व मनाया जाता है. हम सभी इसे खिचड़ी के रूप में भी मनाते हैं. दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पोंगल के नाम से, पंजाब में लोहड़ी के रूप में, सिंधी समाज में इसे लाल लोही के नाम से मनाते हैं.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि उत्तर भारत में इस शुभ अवसर पर पंतग भी उड़ाई जाती है. हालांकि, प्राय: वर्ष मकर संक्रांति माघ स्नान के प्रमुख पांच स्नानों में से एक होता है. लेकिन, इस बार पौष माह में मकर संक्रांति पड़ रही है. तुलसीदास जी कहते हैं कि माघ मकरगति रवि जब होई अर्थात माघ मास में मकर से जब सूर्य का संचरण होता है, उसका बड़ा ही महत्व होता है. मकर संक्रांति पर काशी, प्रयाग, गंगासागर में गंगा स्नान का बहुत बखान पुराणों में मिलता है. जो लोग गंगा स्नान न कर पाये, वे स्वस्थान पर ही नदी, कुंआ, बावड़ी इत्यादि पर मां गंगा का स्मरण कर स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है. मकर संक्रांति पर गंगा या गंगासागर में स्नान का अत्यधिक महत्व बताया गया है.

कहा गया है कि सब तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार. इस दिन स्नान के बाद भगवान भाष्कर को अर्ध्य देना चाहिए. तदुपरांत, सूर्य चालीसा, सूर्य मंत्र, गायत्री मंत्र, आदित्यह्दयस्रोत इत्यादि का पाठ-जप करना चाहिए. इस दिन किए गए दान का सर्वाधिक महत्व होता है. दान में कंबल, घृत, ऊनी वस्त्र, अन्न, स्वर्ण, तिल, गुड़, खिचड़ी आदि का दान असहायों, गरीबों और ब्राह्मणों को देना चाहिए, जिससे अनंत फल की प्राप्ति होती है. उत्तरायण के सूर्य का पुराणों में महत्व सर्वोपरि बताया गया है. द्वापर में महाभारत काल बाणशैय्या पर पड़े भीष्म पितामह ने सूर्यदेव के उत्तरायण होने अर्थात मकर संक्रांति पर ही देहत्याग किया था. वहीं, इसी दिन कपिलमुनि के श्राप से सगर के 60 हजार पुत्रों को भी तर्पण से इसी दिन मां गंगा ने मुक्ति दी थी.

यह भी पढ़ें:रामलला की प्राण प्रतिष्ठा: प्रसाद में मिलेंगे देसी घी में बने मोतीचूर के लड्डू, रामरज और राम मंदिर की फोटो

यह भी पढ़ें:'सीता-राम' के सामने राम मंदिर में होगी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा, गूंजेंगे वैदिक मंत्र

ABOUT THE AUTHOR

...view details