ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया मकर संक्रांति का महत्व वाराणसी:पूरे देश में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है. आम तौर पर मकर संक्रांति के पर्व पर स्नान, दान व ध्यान का खासा महत्व माना जाता है. इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी और दान देने के साथ पतंग उड़ाने की भी परंपरा है. लोग इसे धार्मिक महत्व का विषय मानते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इसका धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. इसके साथ ही कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें नहीं करना चाहिए.
जी हां पतंग उड़ाना, तिल, गुड़, खिचड़ी का सेवन करना इस पर्व में उल्लास का विषय माना जाता है. लेकिन, उल्लास के साथ इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है. कहा जाता है कि इन समानों के सेवन से व्यक्ति को खासा लाभ मिलता है. मकर संक्रांति के कृत्य की क्या वैज्ञानिक मान्यता है. इस दिन क्या नहीं करना चाहिए. इसको लेकर ईटीवी भारत ने ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी से खास बातचीत की.
संक्रांति की पौराणिक ही नहीं बल्कि होती है वैज्ञानिक मान्यता
बातचीत में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि मकर संक्रांति का त्योहार प्रकृति का त्योहार होता है. इसका मन, मस्तिष्क और विचारों पर भी असर पड़ता है. इसलिए त्योहारों पर दान व स्नान का विशेष महत्व है. ऐसे में मकर संक्रांति पर स्नान-दान का विशेष महत्व है. यदि पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस दिन स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. वहीं, दूसरी ओर वैज्ञानिक दृष्टि से मानें तो मकर संक्रांति पर सूर्य से निकलने वाली ऊष्मा शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती है. यही वजह है कि लोग बहते जल में स्नान करते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है.
तिल गुड़ खाने से शरीर रहता है स्वस्थ
उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति का पर्व शीत ऋतु के आरंभ में पड़ता है. ऐसे में स्वास्थ्य के बेहतर होने में भी इसका एक बड़ा योगदान होता है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर लोग धार्मिक मान्यताओं के लिए तिल गुड़ को दान करते हैं. लेकिन, इसका अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है. यदि वैज्ञानिक दृष्टि की बात करें तो तिल, गुड़ और बादाम में ऊष्मा होती है. शीत ऋतु में ये सभी खाद्य पदार्थ शरीर को गर्म रखते हैं. इसके साथ ही पाचन क्रिया में लाभदायक होते हैं. इसलिए संक्रांत में इसके सेवन का महत्व माना जाता है. इसके साथ ही ऊष्म चीजों को दान किया जाता है, जिसमें तिल, गुड़, नए अनाज का चावल, दाल, कपड़े व अलाव शामिल होते हैं.
पतंग उड़ाना उल्लास नहीं स्वास्थ्य का है विषय
आचार्य पंडित त्रिपाठी बताते हैं कि इस पर्व में पतंग उड़ाने के लिए अपनी पौराणिक मान्यता है. उन्होंने बताया कि पतंग उड़ाने को लेकर अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं से जोड़ा जाता है. लेकिन, इसका वैज्ञानिक महत्व स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ होता है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर सर्दी के मौसम में लोग अपने घरों में कंबल में रहना पसंद करते हैं. लेकिन, उत्तरायण के दौरान सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा सेहत के लिए बेहद लाभदायक होती है. इसलिए सूर्य उपासना संग पतंग उड़ाने के द्वारा लोग सूर्य की ओर उन्मुख होते हैं और पतंग उड़ाते हैं. इसके साथ ही सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करने का भी प्रयास करते हैं. उन्होंने बताया कि संक्रांति के दिन सूर्य की गर्मी शीत ऋतु में होने वाले सभी रोगों को भी समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह एक तरीके से औषधि के रूप में कार्य करती है. इसलिए पतंगबाजी उल्लास के साथ सेहत के लिए भी जरूरी होती है.
खिचड़ी करती है आपमें बंधुत्व की भावना का विकास
पंडित त्रिपाठी बताते हैं कि मूल रूप से मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी खाने की भी परंपरा है. उन्होंने बताया कि खिचड़ी में चावल सूर्य का और उड़द की दाल शनि का प्रतीक माने जाते हैं. यूं तो सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं. लेकिन, उसके बावजूद भी यह कभी एक साथ नहीं आते. ऐसे में इन दोनों का एक साथ सेवन करना इस बात को भी दर्शाता है कि यह त्यौहार आपके बंधुत्व का है. इस पर्व पर सभी प्रकार के गिले-शिकवे भूलकर आपसी सहयोग के साथ रहना चाहिए.
संक्रांति के दिन भूल कर भी न करें ये काम
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन बहुत सारे कार्यों को संपादित किया जाता है. लेकिन, इसके साथ ही कुछ ऐसे कार्य होते हैं, जिन्हें संक्रांति के अवसर पर नहीं करना चाहिए. क्योंकि, उसका न सिर्फ़ मान्यताओं पर असर पड़ता है, बल्कि व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा की ओर भी उन्मुख होता है. उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन व्यक्ति को स्नान के पश्चात व्रत रहने की परंपरा है. लेकिन, यदि व्रत न रहे तो इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए, बासी या बचा हुआ खाना नहीं खाना चाहिए. इससे शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है. इस दिन किसी भी तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए. इसमें लहसुन, प्याज और मांस मुख्य रूप से शामिल होते हैं. उन्होंने बताया कि यह तामसी भोजन व्यक्ति के अंदर गुस्सा, इर्ष्या, द्वेष जैसे नकारात्मक भाव का संचार करते हैं.
इस दिन वृक्ष को न ही काटना चाहिए न ही किसी का अपमान करना चाहिए
उन्होंने बताया कि संक्रांति पर मुख्य रूप से व्यक्ति को आहार-विहार और व्यवहार तीनों पर संयम रखना चाहिए. यदि व्यक्ति ऐसा करता है तो पूरा साल इसके लिए संयम व सकारात्मक ऊर्जा का द्योतक बनता है.
नोट: लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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