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जानिए द्वितीय विश्व युद्ध होने के पीछे क्या थी बड़ी वजह

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Published : Sep 2, 2021, 7:54 AM IST

1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 70 देशों की सेनाओं ने हिस्सा लिया था. जवानों की बात की जाए तो इसमें करीब 10 करोड़ से भी ज्यादा जवान शामिल हुए थे. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितना घातक युद्ध था. जानिए यह युद्ध क्यों हुआ.

द्वितीय विश्व युद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध

हैदराबाद : 1939 से 1945 तक चला द्वितीय विश्व युद्ध सबसे घातक युद्धों में से एक था. इस युद्ध में लगभग 70 देशों की सेनाएं शामिल हुई थीं. अगर सैनिकों की संख्या के हिसाब से बात की जाए तो इसमें लगभग 10 करोड़ से ज्यादा जवान शामिल हुए थे. द्वितीय विश्व युद्ध के पीछे मुख्य कारण माना जाए तो वह प्रथम विश्व युद्ध के बाद होने वाली वर्साय की संधि की कठोर शर्तें, आर्थिक मंदी, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद की शुरुआत, राष्ट्र संघ की विफलता, तुष्टीकरण की नीति को माना जा सकता है.

जर्मनी की आक्रामक विदेश नीति

प्रथम विश्व युद्ध के बाद विजयी राष्ट्र ने जर्मनी के भविष्य का फैसला करते हुए उसे वर्साय की संधि पर दस्तखत करने के लिए मजबूर कर दिया. जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया. इस पर 1935 के बाद से जर्मनी ने सक्रिय रूप से एक आक्रामक विदेश नीति अपनाई. उसने 1937 में पोलैंड पर आक्रमण करने से पहले फिर से सैनिकों की भर्ती की.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद असंतोष

  • वर्साय की संधि पर असंतोष
  • वर्साय की संधि ने जर्मनी के आकार को छोटा कर दिया. आर्थिक रूप से उसे काफी नुकसान हुआ.
  • जर्मनी की पूर्वी सीमाओं में बदलाव होना युद्ध का कारण बना.यहां के लोगों का मानना था कि वर्साय की संधि के कारण उनको नुकसान उठाना पड़ा. नाजियों जैसे चरमपंथी दलों द्वारा शोषण किया गया जिन्होंने संधि को खारिज कर दिया.

संयुक्त राष्ट्र संघ की विफलता

साल 1919 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से विश्व शांति को बनाए रखना था. संयुक्त राष्ट्र संघ सभी देशों को सदस्य बनाना चाहता था, ताकि विवादों को आपसी सहमति से सुलझाया जा सके. लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हुआ क्योंकि बहुत से देश इसमें शामिल ही नहीं हुए.

अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की कमजोरी और तुष्टिकरण की नीति
प्रथम विश्व युद्ध के बाद फ्रांस और ब्रिटेन भी राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे. वे जर्मन आक्रमण का प्रभावी ढंग से जवाब देने में असमर्थ थे. प्रथम विश्व युद्ध की तबाही के बाद ब्रिटेन एक और विश्व युद्ध से बचना चाहता था. इसके परिणामस्वरूप 1933-1939 तक हिटलर की आक्रामक विदेश नीति के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई गई. इस नीति ने हिटलर के आत्मविश्वास को बढ़ाया और यही वजह रही कि उसकी शक्ति बढ़ती गई. संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने भी द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दोनों देशों ने तेजी से अलगाववादी नीतियों का पालन किया, जहां तक संभव हुआ अंतरराष्ट्रीय विदेशी मामलों से खुद को दूर रखा. 1939 के नाज़ी-सोवियत समझौते के बाद सोवियत नाज़ियों के लिए तत्काल खतरा नहीं रह गए. इसने उन्हें सोवियत समर्थन से लेबेन्सराम के लिए युद्ध शुरू करने की अनुमति दी. इन वजहों ने द्वितीय विश्व युद्ध से पहले नाजी जर्मनी के लिए एक प्रभावी चुनौती की संभावना को कम कर दिया.

यूरोप में नए गठबंधन

1930 के दशक के दौरान पूरे यूरोप में नए गठबंधन बनाए गए. स्पेनिश गृहयुद्ध (1936-1939) ने इटली और जर्मनी को एकजुट करने में मदद की, जिन्होंने दोनों ने लोकतांत्रिक सरकार पर हमला करने वाले राष्ट्रवादी विद्रोहियों को सैन्य समर्थन की पेशकश की. हालांकि स्पेनिश गृहयुद्ध के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हुआ. अक्टूबर 1936 में, इटली और जर्मनी के बीच रोम-बर्लिन संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे.

अगले महीने नवंबर 1936 में जापान और जर्मनी के बीच एक कम्युनिस्ट विरोधी संधि, एंटी-कॉमिन्टर्न पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए. 1937 में इटली इस समझौते में शामिल हुआ. 1940 में तीनों देशों ने इन समझौतों को एक सैन्य गठबंधन में औपचारिक रूप दिया. जो देश इस गठबंधन का हिस्सा थे, उन्हें एक्सिस पॉवर्स के रूप में जाना जाने लगा. जब जर्मनी की आक्रामक विदेश नीति के साथ, मित्र राष्ट्रों के लिए एक वैकल्पिक सैन्य गठबंधन के निर्माण ने अस्थिर स्थिति को तेज कर दिया.

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